महिलाएं आगे

जिस बिहार में महिलाओं के मताधिकार को लेकर लंबी जद्दोजहद चली हो, उस बिहार में महिलाओं ने रिकॉर्डतोड़ मतदान किया. पुरुषों की तुलना में उनका वोट प्रतिशत पांच फीसदी ज्यादा रहा. पहले चरण में दस जिलों की 49 सीटों पर महिलाओं का वोट प्रतिशत जहां 59.5 फीसदी रहा, तो पुरुषों का 54.5 फीसदी. 2010 के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 13, 2015 11:59 PM
जिस बिहार में महिलाओं के मताधिकार को लेकर लंबी जद्दोजहद चली हो, उस बिहार में महिलाओं ने रिकॉर्डतोड़ मतदान किया. पुरुषों की तुलना में उनका वोट प्रतिशत पांच फीसदी ज्यादा रहा.
पहले चरण में दस जिलों की 49 सीटों पर महिलाओं का वोट प्रतिशत जहां 59.5 फीसदी रहा, तो पुरुषों का 54.5 फीसदी. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा थी. चुनाव में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने की वजह क्या हो सकती है? खासतौर से महिलाओं की इस नयी भूमिका की व्याख्या तरह-तरह से की जा रही है.
आधी आबादी की इस भूमिका पर इसलिए भी दिलचस्पी ली जा रही है कि हमारे समाज में सामंती मूल्य कूट-कूट कर भरे रहे हैं. जिस समाज में महिलाओं के लिए घर की देहरी लांघना वर्जित रहा हो, घर-समाज के निर्णयों में उनकी कोई भूमिका नहीं मानी जाती हो और उनके साथ हर स्तर पर भेदभाव बरता जाता हो, उस समाज में पुरुषों से अधिक मतदान महिलाओं के जरिये हो, तो वाकई यह किसी परिकथा से कम नहीं लगता. पर यह परिकथा है नहीं. महिलाओं की यह नयी भूमिका हमारे समाज में आ रहे बदलाव का संकेत भी है. समाज के अंदरूनी परतों में बदलाव की निरंतरता कायम रही है.
खेत-खलिहानों से लेकर शहरों में कामकाजी महिलाओं की न सिर्फ संख्या बढ़ रही है, बल्कि वह अपनी पहचान के साथ खड़ी भी हो रही हैं. इस क्रम में आधी आबादी के सामाजिक सरोकार बढ़े हैं. अलग-अलग सामाजिक मुद्दों पर महिलाओं की पहलकदमी सामने आयी है. सामाजिक विकृतियों के खिलाफ उनका मुखर होना बताता है कि चेतना के स्तर पर वे कितनी संवेदनशील हैं. हम अपने आसपास ऐसे दर्जनों उदाहरण देख सकते हैं कि चुनौती देती हुई वे सड़क पर उतर आयीं. यही नहीं, श्रम के मोरचे पर भी वे मर्दों से आगे खड़ी हैं.
खेतों में मजदूरी करनेवाली महिलाओं की तादाद 60 फीसदी से भी ज्यादा है. पुरुषों में श्रमिकों की तादाद 50 फीसदी से कम है. यह गौर करनेवाला तथ्य है. आज के आर्थिक दौर में महिलाओं की हिस्सेदारी को कमतर कैसे आंका जा सकता है? उनमें शिक्षा हासिल करने के प्रति जगी लालसा ने पूरी तसवीर को पलटने में बड़ी भूमिका निभायी है.
महिलाओं की साक्षरता दर अगर बढ़ रही है, तो इसके पीछे महिलाओं की भूमिका है. लोकतांत्रिक संस्थाओं में लड़ कर उन्होंने अपने लिए जगह बनायी और खुद को साबित भी कर रही हैं. पर यह भी सच है कि आधी आबादी की आजादी की लड़ाई अभी अधूरी है.

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