शॉर्ट टर्म गेम नहीं है राजनीति!
जब कांग्रेस और भाजपा में फर्क करने के लिए नेतृत्व सामने आता है, तब भाजपा बाजी मार ले जाती है. आज भले ही कांग्रेस को शिवसेना से वैचारिक धरातल पर कोई परहेज न हो, लेकिन यदि उसने अपने को वैचारिक धरातल पर अलग नहीं किया और नेतृत्व के स्तर पर कोई बेहतर विकल्प नहीं दिया, […]
जब कांग्रेस और भाजपा में फर्क करने के लिए नेतृत्व सामने आता है, तब भाजपा बाजी मार ले जाती है. आज भले ही कांग्रेस को शिवसेना से वैचारिक धरातल पर कोई परहेज न हो, लेकिन यदि उसने अपने को वैचारिक धरातल पर अलग नहीं किया और नेतृत्व के स्तर पर कोई बेहतर विकल्प नहीं दिया, तो पार्टी का भविष्य संदिग्ध है. राहुल गांधी हों या सोनिया गांधी, ये दोनों नेता कांग्रेस पार्टी से बड़े नहीं हो सकते. राजनीति कोई शार्ट-टर्म गेम नहीं.
राजनीतिक दलों को लंबी रेस के घोड़े तैयार करने होंगे. इसके लिए उन्हें ऊर्जावान, योग्य, महत्वाकांक्षी और अभिव्यक्ति में कुशल नेतृत्व की प्रयोगशाला की जरूरत होगी. जो दल राजनीति में विचारधारा और महत्वाकांक्षा का बेहतर सम्मिश्रण कर सकेंगे, भविष्य उन्हीं का है.
महाराष्ट्र में यह सम्मिश्रण नहीं हो पाया. चूंकि यहां विचारधारा को तिलांजलि देकर महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने का काम किया गया, इसलिए इस प्रयोग की सफलता संदिग्ध है.
डॉ हेमंत कुमार, भागलपुर, बिहार