बैंकों से कर्ज लेने की बढ़ रही प्रवृत्ति

आजकल बहुत कुछ हिदायत भरे अंदाज में रिजर्व बैंक कहता है. लोकतंत्र का यह अलौकिक तंत्र हर चौथाई साल में कर्ज सस्ता-महंगा भी करता है. लोग समझें न समझें, जानकार मानते हैं कि तरक्की के लिए बदलाव जरूरी है. एक जमाने में कर्ज में डूबा व्यक्ति खुशहाली से महरूम, समाज की नजरों में गिरा हुआ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 12, 2019 7:26 AM
आजकल बहुत कुछ हिदायत भरे अंदाज में रिजर्व बैंक कहता है. लोकतंत्र का यह अलौकिक तंत्र हर चौथाई साल में कर्ज सस्ता-महंगा भी करता है. लोग समझें न समझें, जानकार मानते हैं कि तरक्की के लिए बदलाव जरूरी है. एक जमाने में कर्ज में डूबा व्यक्ति खुशहाली से महरूम, समाज की नजरों में गिरा हुआ इंसान होता था.
आज खुशहाली की खातिर कर्ज के हौज में डुबकी लगाने को हर कोई बेताब है. कर्ज की पहुंच बावर्चीखाने से दीवानखाने तक आसान हो गयी है. कर्ज की बदौलत रोटी, कपड़े, मकान के दिन भी बुलंदी पर हैं, तभी तो रिजर्व बैंक के ताजा सस्ते कर्ज का एलान हर तबके को ईद का तोहफा दे गया.
एमके मिश्रा, मां आनंदमयीनागर, रातू (रांची)

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