पर्यावरण संतुलन के लिए प्राचीन दौर में लौटना होगा

वर्तमान समय में मध्य भारत व उत्तर-पूर्व भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है. इसके चलते भू-जल का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है. धरती के सभी तालाब, कुएं, नाहर, झील सूखने लगे हैं. अब नदियों पर भी संकट के बादल उमड़ते नजर आ रहे हैं. आखिरकार प्रकृति के इस सुंदर दृश्य का खेल […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 12, 2019 7:26 AM
वर्तमान समय में मध्य भारत व उत्तर-पूर्व भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है. इसके चलते भू-जल का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है. धरती के सभी तालाब, कुएं, नाहर, झील सूखने लगे हैं. अब नदियों पर भी संकट के बादल उमड़ते नजर आ रहे हैं.
आखिरकार प्रकृति के इस सुंदर दृश्य का खेल मानव के क्रियाकलाप ने ही तो बिगाड़ा है. एक ओर बढ़ती जनसंख्या के चलते पेड़ों की कटाई, तो दूसरी ओर गली-गली पक्की सड़कों का निर्माण ने धरती के तापमान को बढ़ाने का काम किया है. इसके चलते वर्षा का जल धरती की पेट में नहीं जा पा रहा है, जो कहीं न कहीं भू-जल स्तर पर अपना प्रभाव दिखा रहा है.
साथ ही हम आधुनिकीकरण के चक्कर में प्राचीन वर्षा जल संचय की विधि को भूलते जा रहे हैं. यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से बिल्कुल भी उचित नहीं है. पुन: हमें अपने प्राचीन काल के दौर में लौटना होगा और जो भूल कर चुके हैं. उसे सुधारकर आगे बढ़ना होगा, तभी पर्यावरण में संतुलन संभव है.
नितेश कुमार सिन्हा, जानपुल चौक (मोतिहारी)

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