कोयला पर घटती निर्भरता
साल 1966 के बाद यानी लगभग छह दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है कि बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे आयी है.
शेष विश्व की तरह भारत भी बिजली उत्पादन के लिए लंबे समय से कोयले पर निर्भर रहा है. तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन भी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति का बड़ा आधार रहे हैं. ये स्रोत बड़े पैमाने पर प्रदूषण के कारण रहे हैं. कोयले के खनन और ढुलाई से भी पर्यावरण को नुकसान होता है तथा तेल एवं गैस की खरीद पर बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है. देश में गैस और तेल उत्पादन से भी अनेक समस्याएं पैदा होती हैं. पर स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग में बढ़ोतरी से इनके उपयोग में उत्साहजनक कमी आने लगी है. साल 1966 के बाद यानी लगभग छह दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है कि बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे आयी है. इस वर्ष जनवरी से मार्च की अवधि में देश में 13,669 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता जोड़ी गयी है, जो एक रिकॉर्ड है. इस क्षमता में स्वच्छ ऊर्जा का हिस्सा 71.5 प्रतिशत है.
स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में है. इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि भारत सरकार ने 2030 तक बिजली उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों के योगदान को 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. उस समय सीमा से पहले ही इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ठोस आधार तैयार हो रहा है. यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हमें अपनी विकास आकांक्षाओं तथा बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए ऊर्जा की बड़ी आवश्यकता है. इस कारण जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता स्वाभाविक है तथा अभी कई वर्षों तक हमें उनकी जरूरत है. फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु संकट के समाधान के लिए स्वच्छ ऊर्जा को प्राथमिकता दे रहे हैं. यह बड़े संतोष की बात है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी कोयले के इस्तेमाल का अनुपात घटता जा रहा है.
जी-7 के देशों में पिछले साल कोयले की मांग 1900 के बाद सबसे कम रही. समूह में शामिल विकसित देशों ने बीते माह 2035 तक कोयले से बिजली उत्पादन को पूरी तरह बंद करने का संकल्प लिया है. धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित रखने के लिए उत्सर्जन अत्यंत निम्न स्तर पर लाना जरूरी है. इस दिशा में यह वर्ष बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है. इस प्रक्रिया में भारत विश्व के समक्ष एक आदर्श उदाहरण के रूप में स्थापित हुआ है. सरकार स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए जहां आम लोगों को प्रोत्साहित कर रही है तथा घरों में सौर ऊर्जा पैनल लगाने के लिए सहयोग कर रही है, वहीं बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए बड़ी परियोजनाओं को भी साकार किया जा रहा है.