फूल खिले हैं, अन्न घर आयेंगे

मिथिलेश कु. राय रचनाकार कक्का खेतों की ओर से गुनगुनाते हुए आ रहे थे. बोले कि देखो, वसंत आ रहा है. उन्होंने बताया कि गेहूं के खेत के चारों ओर जो उन्होंने सरसों बोये थे, उनमें अब फूल आने लगे हैं. यह सब कहते हुए कक्का बच्चों की तरह खिल उठे थे. कह रहे थे […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 31, 2018 5:32 AM
मिथिलेश कु. राय
रचनाकार
कक्का खेतों की ओर से गुनगुनाते हुए आ रहे थे. बोले कि देखो, वसंत आ रहा है. उन्होंने बताया कि गेहूं के खेत के चारों ओर जो उन्होंने सरसों बोये थे, उनमें अब फूल आने लगे हैं. यह सब कहते हुए कक्का बच्चों की तरह खिल उठे थे. कह रहे थे कि देखो तो अब हवा भी कैसे अपना रुख बदलने लगी है. खेतों में फसलों को गौर से देखो, तो ऐसा लगेगा कि जैसे हवा फसल संग कोई नृत्य कर रही है. फसल कभी इस ओर तो कभी उस ओर समूह में ऐसे डोलती रहती है कि निहारते हुए मन नहीं थकता है.
फिर उन्हें जैसे कुछ याद आ गया. बोले कि पता है यह मौसम वसंत का मौसम क्यों हो जाता है और सबके चेहरे फूल से क्यों खिल जाते हैं? कक्का का कहना था कि सिर्फ फूलों के खिलने से वसंत नहीं आता है.
वसंत तो इसलिए धरती पर उतर आता है, क्योंकि कुछ दिन पहले के बोये बीज नन्हें-नन्हें पौधों से बढ़कर अब बड़े हो गये होते हैं और जहां तक नजरें जाती हैं, वहां तक की धरती को हरी साड़ी में ढंक लेते हैं. कक्का कह रहे थे कि गेहूं, राजमा और मक्के के बीजों को जिस उम्मीद से बोये गये थे और फिर उसकी सिंचाई और गुड़ाई की गयी थी, पौधों में उस उम्मीद के पूरा होने के लक्षण देखकर चेहरे पर वसंत जैसा भाव फैल जाता है. तिस पर सरसों के पीले-पीले फूल और खेसारी के हरे-हरे फूल, जीवन को कोई गीत गुनगुनाने का बहाना दे देता है.
कक्का का कहना था कि खेतों में सरसों के खिले फूलों को देखकर देखो तो चिड़ियां कैसे चीं-चीं करतीं कभी इधर भाग रही हैं, कभी उधर उड़ रही हैं. खिले हुए फूलों को देखकर उसे भी पता चल जाता है कि वसंत आ गया है. इन फसलों में दाने आयेंगे और उनके खाने-पीने की कोई चिंता नहीं रह जायेगी. खाने के लिए इतना होगा सामने कि वे देख-देखकर ही फूली नहीं समायेंगी.
कक्का ने बताया कि एक चिड़िया को उन्होंने मटर के हलके नीले फूलों की तरफ ताककर कुलांचे भरते हुए भी देखा. तभी कक्का को तितलियों और भंवरों की याद आ गयी. कहने लगे कि कुछ ही दिन में अनगिन रंग-बिरंगी तितलियां फर्र-फर्र कर उड़ती फिरेंगी और भंवरे कैसे यहां से वहां डोलते दिखेंगे. आखिर सबको इस मौसम से बड़ी आस रहती है.
फूलों में छुपे पराग तितलियों और भंवरों को मिलता है और वे खुशी से झूमते रहते हैं. वे कह रहे थे कि वसंत का मौसम सब को अन्न का आश्वासन देता है कि फूलों से खेत भर गये हैं. अब वह दिन दूर नहीं, जब अन्न से पौधे झुक जायेंगे!
कक्का ने यह भी बताया कि देखना कि कुछ दिनों में रंग अपना रंग कैसे बदलता है. उन्होंने बताया कि माघ बीतते न बीतते यह जो रंग पीला है और हरा है, वह रंग सुनहरे में बदल जायेगा और तब दूर से भी खेत सोने की खान नजर आयेंगे, जिस पर जब भी किसी की नजर पड़ेगी, उसका ही मन खिल उठेगा. कक्का कह रहे थे कि उसी वसंत का सूचक बनकर आया है यह वसंत!

Next Article

Exit mobile version