नौकरशाही पर नकेल

लोकतंत्र के सुचारू रूप से संचालित होने के लिए सबसे जरूरी शर्त यह है कि शासन-प्रशासन के शीर्ष पर बैठे लोकसेवक अपनी कमाई और संपत्ति के बारे में पारदर्शी हों. जगजाहिर तथ्य है कि बड़े घपले-घोटाले तथा भ्रष्टाचार को नेताओं और नौकरशाहों की मिली-भगत से ही अंजाम दिया जाता है. अधिकारियों द्वारा अवैध और अनैतिक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 28, 2017 6:14 AM

लोकतंत्र के सुचारू रूप से संचालित होने के लिए सबसे जरूरी शर्त यह है कि शासन-प्रशासन के शीर्ष पर बैठे लोकसेवक अपनी कमाई और संपत्ति के बारे में पारदर्शी हों. जगजाहिर तथ्य है कि बड़े घपले-घोटाले तथा भ्रष्टाचार को नेताओं और नौकरशाहों की मिली-भगत से ही अंजाम दिया जाता है. अधिकारियों द्वारा अवैध और अनैतिक तरीके से अकूत धन-संपदा जमा करने के कई मामले विभागीय जांच और अदालती सुनवाई की प्रक्रिया में हैं.

लोकसेवा में पारदर्शिता बढ़ाने के इरादे से कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कार्यरत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से 31 जनवरी तक अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने का निर्देश जारी किया है. जो अधिकारी निर्दिष्ट समयावधि में विवरण जमा नहीं करेंगे, उन्हें प्रोन्नति नहीं दी जायेगी और न ही विदेशों में पदस्थापित किया जायेगा, क्योंकि संपत्ति के ब्यौरे के अभाव में उन्हें सतर्कता विभाग से हरी झंडी नहीं मिल सकेगी.

यह निर्देश बीते साल भी जारी किया गया था, लेकिन कार्मिक विभाग की वेबसाइट बताती है कि 2015-16 की अवधि के लिए 280 प्रशासनिक अधिकारियों ने अचल संपत्ति का विवरण जमा नहीं कराया है, जबकि उसकी आखिरी तारीख इस साल की 31 जनवरी थी. यह आंकड़ा एक तो इन नौकशाहों की हेठी के बारे में इंगित करता है और दूसरे यह बताता है कि विभाग के निर्देश को नहीं मानने के बाद भी इनके विरुद्ध ठोस कार्रवाई नहीं की गयी है.

ऐसे अधिकारियों के उदाहरण अन्य अफसरों पर खराब असर डाल सकते हैं और अगले वर्ष जनवरी की तय तारीख तक अनेक अधिकारी अपना विवरण नहीं जमा कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि कोई बड़ा कदम उनके खिलाफ नहीं उठाया जायेगा.

यह भी विडंबना ही है कि कुछ हजार अधिकारियों की छोटी तादाद पर कार्मिक और सतर्कता विभाग कायदे से निगरानी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में पारदर्शिता लाने के मंसूबों की कामयाबी पर सवालिया निशान लग जाता है. यहां यह भी प्रश्न उठता है कि अपनी संपत्ति का विवरण जमा करने के नियम का पालन ही जब इतने सारे अफसर नहीं कर रहे हैं, तो फिर इनसे आम जनता की सेवा समुचित रूप से करने की अपेक्षा और आशा कैसे की जाये. वर्ष 2011 से इस संबंध में नियम लागू हैं और अधिकारियों को अब तक अपने विवरण जमा कराने को अपनी जवाबदेही के रूप में आत्मसात कर लेना चाहिए था.

आखिर जब वे हर साल आयकर, बीमा, भविष्य निधि, बैंक ऋण आदि से जुड़ी सूचनाएं और दस्तावेजी प्रक्रिया को तो पूरा करते ही हैं, तो फिर संपत्ति की जानकारी देने में कोताही का कोई तुक नहीं है. नेताओं को भी ऐसे लापरवाह और शक के घेरे में आये अधिकारियों का बचाव नहीं करना चाहिए और विभागीय नियमों के अनुरूप ब्यौरे जमा होने चाहिए, ताकि प्रशासन ठीक से अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सके.

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