ऑफलाइन गेम-बाढ़

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार इस समय ब्लू-व्हेल समेत तमाम गेम मार मचाये हुए हैं. कंप्यूटर गेम्स पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है- खेलों के प्रति मानव का सहज रुझान है, कंप्यूटर पर जाकर भी बंदा खेल ही करता है, जबकि कंप्यूटर पर कुछ दूसरे किस्म के उत्पादक काम करना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 21, 2017 6:20 AM
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
इस समय ब्लू-व्हेल समेत तमाम गेम मार मचाये हुए हैं. कंप्यूटर गेम्स पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है- खेलों के प्रति मानव का सहज रुझान है, कंप्यूटर पर जाकर भी बंदा खेल ही करता है, जबकि कंप्यूटर पर कुछ दूसरे किस्म के उत्पादक काम करना भी संभव है.
इस मुल्क में कई लोग कंप्यूटर पर ऐसे जुटे दिखते हैं, मानो बहुत गंभीर काम कर रहे हो, गहराई से जांच करने पर पता चलता है कि वह तो तीन पत्ती खेल रहे थे. एक कंप्यूटर गेम ब्लू व्हेल इन दिनों बहुत ही पापुलर हो लिया है. कंप्यूटर गेम्स पर जान जा सकती है, यह सुनकर कई लोग कंप्यूटर गेम्स को आत्महत्या का औजार मानकर खेलने में जुट लेते हैं. तमाम नेता कोशिश करते हैं कि उनके विरोधी नेता ब्लू व्हेल या कोई और मारक गेम खेलने में जुट लें.
गेम्स तरह तरह के होते हैं, सब की समझ में ना आते, पर बाढ़ हरेक साल आ जाती है. बाढ़ को भी एक आॅफलाइन गेम की तरह समझा जाये, तो समझ में आता है कि बाढ़ नामक आॅफलाइन गेम में हर साल पब्लिक हारती है और ठेकेदार-अफसर जीतते ही हैं. इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि इस मुल्क में जीतना हो, तो ठेकेदार-अफसर होना चाहिए, पब्लिक तो हारती है.
बाढ़ से बहुत फायदा होता है- ठेकेदार को, नेता को, अफसर को. ठेकेदार को फायदा यह होता है कि उसका बनाया हुआ घटिया पुल जो वैसे ही छह महीने में टूट जाना था, बाढ़ में टूटकर बाढ़ के खाते में चला जाता है और उसे पुल बनाने का नया ठेका मिल जाता है. अफसरों के मजे यूं आ जाते हैं कि फिर उनसे कोई और कुछ ना पूछता कि अस्पताल में डाॅक्टर क्यों नहीं, सड़कों पर गड्ढे क्यों है. सारा फोकस बाढ़ पर आ जाता है और बाकी समस्याएं समाप्त सी हो जाती है.
नेताओं की तो फुलटू मौज आ जाती है, हैलीकाॅप्टर पर बैठकर बाढ़ का जायजा खुद लीजिये और तमाम रिश्तेदारों को भी करवाईये. नेता भी समस्या मुक्त हो जाते हैं कोई ना कहता उनसे कि मेरे बच्चे को एडमीशन करवा दीजिये या मेरे बच्चे को अस्पताल में भरती करवा दीजिये.
बाढ़ में फंसी पब्लिक ब्रेड के एक पैकेट को परम नियामत मानकर खुश हो जाती है और जान बचने को ही लाख या पंद्रह लाख मिलने की उपलब्धि मानकर मगन रहती है. एक बार जान बची यानी एक लाख मिले, इस तरह से बाढ़ में एक आम आदमी भी पच्चीस-तीस बार लखपति हो लेता है.
हर साल यह होता है, यानि हर साल बाढ़ कईयों को कई बार लखपति बनाती है. इस तरह से हम देख सकते हैं कि बाढ़ का गहरा आर्थिक महत्व भी है.

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