मेरे पिता न तो चालाक राजनीतिज्ञ हैं और न ही अवसरवादी:मनमोहन की बेटी दमन

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पद से हटने के बाद सवालों के घेरे में हैं और उन पर संजय बारू से लेकर नटवर सिंह तक सभी सवाल उठा रहे हैं. ऐसे में उन्हें बचाने के लिए उनकी बेटी दमन सिंह ने मोरचा संभाल लिया है. स्ट्रक्टिली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरन नाम की किताब […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 6, 2014 8:05 AM

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पद से हटने के बाद सवालों के घेरे में हैं और उन पर संजय बारू से लेकर नटवर सिंह तक सभी सवाल उठा रहे हैं. ऐसे में उन्हें बचाने के लिए उनकी बेटी दमन सिंह ने मोरचा संभाल लिया है.

स्ट्रक्टिली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरन नाम की किताब में दमन ने साफ कहा है कि उनके पिता न तो चालाक राजनीतिज्ञ हैं और न ही अवसरवादी. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को दिये इंटरव्यू में उन्होंने मनमोहन सिंह की जिंदगी से जुड़े कई पक्षों का खुलासा किया है. एक सवाल के जवाब में दमन ने कहा कि मेरे पिता ने 2009 के चुनाव में कहा था कि हम दोबारा सत्ता में नहीं आ रहे हैं.

उन्हें ऐसा लगता था, लेकिन ये बात उन्होंने बहुत गंभीरता से नहीं कही थी. जब उनसे उनके पिता और नरसिंह राव के बीच संबंधों के बारे में पूछा गया, तो दमन ने बताया कि नरसिंह राव ने मेरे पिता को फोन किया और रातों-रात उन्हें देश का वित्त मंत्री बना दिया. देश का बजट पेश करने के लिए उनके पास केवल एक महीने का समय था. उस समय अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे हाल में थी. देश की आर्थिक नीति में जो भी आमूल बदलाव किये गये उनके आइडिया मेरे पिता ने दिये थे, लेकिन वो सब नरसिंह राव जी की वजह से हुआ.

आर्थिक सुधारों के जनक नरसिंह राव ही हैं. संजय बारू, नटवर सिंह की किताबों में मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा का ठेस पहुंचाने वाले खुलासों के बारे में दमन ने कहा कि मैंने दोनों में से कोई किताब नहीं पढ़ी है. अमूमन मैं ऐसी किताबें नहीं पढ़ती हूं.

* कांग्रेस में ही हुआ विरोध

दमन का कहना है कि भारत में तब तक कोई बदलाव लाना मुश्किल है, जब तक व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त न हो जाये. लोकतंत्र में व्यवस्था ऐसे ही चलती है. लोगों पर ऊपर से कोई क्रांतिकारी फैसला नहीं थोपा जा सकता. जब पापा ने बदलावों की शुरुआत की, तो कांग्रेस पार्टी में ही उनको विरोध का सामना करना पड़ा. दमन ने कहा कि सी सुब्रमण्यम की मेरे पिता बहुत प्रशंसा करते थे. किताब लिखते हुए मुझे मालूम चला कि सुब्रमण्यम ने ही हरित क्रांति को आगे बढ़ाया, लेकिन राजनीतिक स्तर पर उन्हें अमेरिकी एजेंट कहा गया. सुब्रमण्यम को अपनी सीट गंवानी पड़ी.

* राहुल गांधी के निर्णय से हुए थे दुखी

दमन ने कहा कि जब राहुल गांधी ने अपराधी सांसदों के बारे में आये अध्यादेश को वापस लेने का अचानक और जिस अंदाज में फैसला लिया, उस समय मनमोहन अमेरिका की यात्रा पर थे. वास्तव में मनमोहन को इस फैसले से कष्ट हुआ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह इस कष्ट को जाहिर करते. ऐसा भी नहीं है कि जो उनके बारे में कहा गया उसे उन्होंने सुना या देखा नहीं. बहुत सारी चीजों से उन्हें परेशानी हुई. वह मेरे और आपकी की ही तरह संवेदनशील हैं. वे सोचते हैं कि उनकी भावनाओं का प्रसार करना जरूरी नहीं है. राजीव गांधी के योजना आयोग को जोकरों की टोली कहनेवाले बयान से मनमोहन सिंह के आहत होने के सवाल पर दमन ने कहा कि उस समय वे योजना आयोग में नहीं थे.

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