संतुष्टि के लिए राफेल विमानों के मूल्य का बारीकी से परीक्षण किया, तुलना हमारा काम नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अपनी अंतरात्मा की संतुष्टि के लिए 2007 के मूल आशय पत्र (आरएफपी) के तहत राफेल लड़ाकू विमान की कीमत और 2016 में अंतर-सरकार समझौते के तहत इसकी कीमत का बारीकी से परीक्षण किये जाने के बावजूद वह कीमत की तुलना में नहीं जा सकता क्योंकि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 14, 2018 9:57 PM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अपनी अंतरात्मा की संतुष्टि के लिए 2007 के मूल आशय पत्र (आरएफपी) के तहत राफेल लड़ाकू विमान की कीमत और 2016 में अंतर-सरकार समझौते के तहत इसकी कीमत का बारीकी से परीक्षण किये जाने के बावजूद वह कीमत की तुलना में नहीं जा सकता क्योंकि यह अदालत का काम नहीं है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि राफेल विमानों की कीमत के मुद्दे पर गौर करने की शुरुआती अनिच्छा के बावजूद न्यायालय की अंतरात्मा की संतुष्टि के लिए केंद्र को सीलबंद लिफाफे में विमान की कीमत का विवरण पेश करने का निर्देश दिया गया था. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षतावाली पीठ ने कहा कि सरकार ने भारत और फ्रांस के बीच समझौते के बिंदुओं के उल्लंघन के साथ ही कीमतों की संवेदनशीलता और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर विमान की मूल लागत के सिवाय इसकी कीमत का विवरण संसद को भी नहीं दिया है. न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत की अंतरात्मा की संतुष्टि के लिए केंद्र सरकार ने अपनी अनिच्छा के बावजूद विमान की कीमतों से संबंधित सामग्री उसके समक्ष पेश की. पीठ ने अपने फैसले में कहा, हमने 2007 के मूल आशय पत्र के तहत सिर्फ विमान की कीमत तथा इसमें होनेवाली वृद्धि और अंतर-सरकारी समझौते के तहत कीमत के विवरण का बारीकी से परीक्षण किया है.

हमने प्रत्येक चीज की कीमत के बारे मे स्पष्टीकरण नोट का भी अवलोकन किया है. पीठ ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत का विवरण भारत और फ्रांस के बीच समझौते के अनुच्छेद 10 के दायरे में आता है. यह इस समझौते के तहत वर्गीकृत सूचना और सामग्री के आदान प्रदान को गोपनीयता प्रदान करता है और यह 25 जनवरी, 2008 को दोनों सरकारों के बीच हुए सुरक्षा समझौते प्रावधानों से शासित होगा. पीठ ने कहा, निश्चित ही इस तरह के मामलों में कीमतों की तुलना करना इस न्यायालय का काम नहीं है. हम और अधिक नहीं कहेंगे क्योंकि संबंधित सामग्री को गोपनीयता के दायरे में ही रखना होगा.

न्यायालय ने यह भी कहा कि वायु सेना प्रमुख ने भी इन विमानों में लगनेवाले साजो सामान सहित इसकी कीमतों के खुलासे के बारे में अपनी राय व्यक्त की है कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. फैसले के अनुसार केंद्र सरकार का दावा है कि 36 राफेल विमानों की खरीद में व्यावसायिक लाभ भी है और इसके रख-रखाव तथा हथियारों के पैकेज के संदर्भ में अंतर-सरकार समझौते में बेहतर शर्तें हैं. न्यायालय ने कहा कि हालांकि कीमतों का विवरण नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के साथ साझा की गयी थीं और कैग की रिपोर्ट पर संसद की लोक लेखा समिति ने विचार किया था और कैग की रिपोर्ट का संपादित अंश ही संसद में पेश किया गया था जो सार्वजनिक दायरे में है.

न्यायालय में अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा, विनीत ढांडा, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण के अलावा आप पार्टी के सांसद संजय सिंह ने सार्वजनिक दायर में उपलब्ध सामग्री के आधार पर 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों में वृद्धि को चुनौती दी थी.

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