आज महावीर जयंती, जैन धर्म की प्रमुख बातें

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की आज जयंती है. उनकी जयंती चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनायी जाती है. आज का दिन जैन धर्म के मानने वालों के लिए बहुत खास होता है यह उनका सबसे प्रमुख त्योहार है. भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में बिहार राज्य के कुंडग्राम में हुआ था. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 29, 2018 10:41 AM

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की आज जयंती है. उनकी जयंती चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनायी जाती है. आज का दिन जैन धर्म के मानने वालों के लिए बहुत खास होता है यह उनका सबसे प्रमुख त्योहार है.

भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में बिहार राज्य के कुंडग्राम में हुआ था. उनका जन्म इच्छवाकु राजवंश में हुआ था, उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और मां का नाम त्रिशला था. जैन धर्म में विवेक को सर्वोपरि माना गया है. भगवान महावीर ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया, जिसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. जैन धर्म की 10 खास बातें इस प्रकार हैं-

1. जैन धर्म एक धार्मिक पुस्तक, शास्त्र पर निर्भर नहीं है. ‘विवेक ही धर्म है.’
2. जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्मांचरण से पहले आवश्यक है.
3. देश, काल और भाव के अनुसार ज्ञान दर्शन से विवेचन कर उचित—अनुचित, अच्छे—बुरे का निर्णय करना और धर्म का रास्ता तय करना.
4. आत्मा और जीव तथा शरीर अलग—अलग हैं, आत्मा बुरे कर्मों का क्षय कर शुद्ध—बुद्ध परमात्मा स्वरूप बन सकती है.
5. जैन दर्शन में परमात्मा अकर्ता है. प्रत्येक जीव, आत्मा को कर्मफल अच्छे—बुरे स्वतंत्र रूप में भोगने पड़ते हैं. परमात्मा को, कर्मों को क्षय कर तथा आत्म स्वरूप प्राप्त करने के बाद परमात्म पद प्राप्त होता है.
6. जिनवाणी में किसी व्यक्ति की स्तुति नहीं है. बल्कि गुणों को महत्व दिया गया है जैनधर्म गुण उपासक है.
7. हमारे बाहर में कोई शत्रु नहीं है. शत्रु हमारे अंदर है. काम, क्रोध राग—द्वेष आदि शत्रु हैं. हम इन राग और द्वेष को जीत कर वीतरागी बन सकते हैं.
8. ज्ञान और दर्शन के सभी दरवाजे खुले हैं. अनेकांतवाद के अनुसार दूसरे धर्म पंथ भी सही हो सकते हैं. उनके साथ अस्तित्व तथा समदृष्टि रखना और समादर देना.
9. अन्य धर्मों की तुलना में जैन धर्म में अपरिग्रह पर अधिक जोर दिया है. आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह और मोह आसक्ति से वर्जित है.
10. जैन धर्म में नर और नारी को समान स्थान है. श्रावक—श्राविका, श्रमण—श्रमणिका के रूप में बराबर स्थान तथा अधिकार है.

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