2जी मामले में फैसला : जज ने कहा-राजा ने नहीं, पीएमओ के अधिकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री से तथ्य छिपाये

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने ए राजा के पत्र के सबसे प्रासंगिक और विवादित हिस्से को उनसे छिपाया और तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने के लिए तत्कालीन दूरसंचार मंत्री को दोषी नहीं माना जा सकता है. विशेष अदालत ने अपने फैसले […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 21, 2017 8:52 PM

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने ए राजा के पत्र के सबसे प्रासंगिक और विवादित हिस्से को उनसे छिपाया और तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने के लिए तत्कालीन दूरसंचार मंत्री को दोषी नहीं माना जा सकता है. विशेष अदालत ने अपने फैसले में यह टिप्पणी की. सीबीआइ ने आरोप लगाया था कि राजा ने पत्रों में सिंह को 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस देने संबंधी नीति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों मसलन पहले आओ, पहले पाओ और आवेदन की अंतिम तिथि पर गुमराह किया.

विशेष सीबीआइ न्यायाधीश ओपी सैनी ने 2जी स्पेक्ट्रम के तीन अलग-अलग मामलों में सभी आरोपियों को बरी करते हुए कहा, ए राजा के पत्र के सबसे प्रासंगिक तथा विवादित हिस्सों को तत्कालीन प्रधानमंत्री से छिपानेवाले ए राजा नहीं थे, बल्कि पुलक चटर्जी ने टीकेए नायर के साथ मिलकर यह किया है. शीर्ष के नौकरशाहों के खिलाफ बेहद तल्ख टिप्पणियां करते हुए न्यायाधीश ने कहा, अंत में अभियोजन पक्ष के इस दावे में मुझे कोई दम नजर नहीं आता है कि या तो तत्कालीन प्रधानमंत्री को ए राजा की ओर से गुमराह किया गया या फिर उनके सामने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया. सैनी ने कहा कि इस बारे में सीबीआई की दलीलें तथ्यों से परे थीं ताकि अदालत के जेहन को पूर्वाग्रह से ग्रस्त किया जा सके.

उन्होंने कहा, अभियोजन ने बड़े नाम लेकर और देश के प्रधानमंत्री के अधिकार की बात करते हुए दलीलें दी थीं ताकि अदालत के जेहन को पूर्वाग्रह से प्रभावित किया जा सके. अदालत ने कहा कि मनमोहन सिंह के समक्ष तथ्यों को कथित तौर पर गलत तरीके से पेश करने का दोष राजा को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री के कार्यालय ने ही उनके समक्ष पूरे तथ्य पेश नहीं किये. चटर्जी के एक नोट का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि वह प्रधानमंत्री को भेजे गये राजा के पत्र से कहीं अधिक बड़ा था.

अदालत ने कहा, प्रधानमंत्री बेहद व्यस्त अधिकारी होते हैं. इतने बड़े नोट को पढ़ने का वह वक्त कहां से निकाल पाते. प्रधानमंत्री से फाइलों में डूब जाने की उम्मीद नहीं की जाती. उनके लिए पुलक चटर्जी के इस नोट को पढ़ने से कहीं आसान ए राजा के पत्र को पढ़ना और समझना होता. यह आसान और बेहतर होता. राजा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख विभिन्न मुद्दों पर दूरसंचार विभाग के फैसले के बारे में सूचित किया था. इसमें नये लाइसेंस के लिए आशय-पत्र जारी करने और अपर्याप्त स्पेक्ट्रम होने के कारण बड़ी संख्या में आवेदनों को देखने की बात भी शामिल थी.

2जी लाइसेंस आवंटन में राजस्व को भारी नुकसान के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) तथा सीबीआइ के आकलन को झटका देते हुए विशेष अदालत ने कहा कि कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम किया और एक घोटाला पैदा कर दिया, जबकि कुछ हुआ ही नहीं था. कैग ने अपनी रिपोर्ट में आकलन व्यक्त किया था कि 2जी घोटाले की वजह से राजस्व को 1.76 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का भारी नुकसान हुआ. इससे उस समय की संप्रग सरकार हिल उठी थी.

सीबीआइ ने अपने आरोपपत्र में कहा था कि 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन में राजस्व को 30,984 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. उच्चतम न्यायालय ने दो फरवरी 2012 को लाइसेंस आवंटन निरस्त कर दिये थे. 2जी से संबंधित तीन मामलों में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और अन्य कोगुरुवारको बरी करनेवाले न्यायाधीश ने कहा कि दूरसंचार के संबंधित सरकारी अधिकारियों के विभिन्न कार्यकलापों और अकर्मण्यता की वजह से हर किसी ने समूचे मामले में एक बड़ा घोटाला देखा.

राजा और अन्य से संबंधित सीबीआइ के मामले में अदालत ने अपने 1,552 पन्नों के आदेश में कहा, हालांकि अधिकारियों के विभिन्न कार्यकलापों और अकर्मण्यता के चलते, जैसा कि ऊपर उल्लिखित है, किसी ने भी दूरसंचार विभाग के रुख पर भरोसा नहीं किया और हर किसी ने एक बड़ा घोटाला देख जब कुछ हुआ ही नहीं. इन कारकों ने लोगों को एक बड़े घोटाले के बारे में अटकलों के लिए विवश किया. सैनी ने कहा, इस तरह, कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम कर और चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर एक घोटाला पैदा कर दिया. विशेष न्यायाधीश ने यह भी कहा कि दूरसंचार विभाग के नीतिगत फैसले विभिन्न फाइलों में बिखरे हुए थे और इसलिए उनका पता लगाना तथा उन्हें समझना मुश्किल था.

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