रोगों का भ्रम बनाता है रोगभ्रमी

वैसे तो हर व्यक्ति शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहता है और रोगों से बचना चाहता है. लेकिन कई बार कुछ लोगों को ऐसा भ्रम होता है कि उन्हें कोई ऐसा रोग है जिससे उनका बचना असंभव है. इस स्थिति को ‘रोगभ्रमी’ कहते हैं. यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन 30 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2014 1:18 PM
वैसे तो हर व्यक्ति शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहता है और रोगों से बचना चाहता है. लेकिन कई बार कुछ लोगों को ऐसा भ्रम होता है कि उन्हें कोई ऐसा रोग है जिससे उनका बचना असंभव है. इस स्थिति को ‘रोगभ्रमी’ कहते हैं. यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन 30 से 50 वर्ष की उम्र में अधिक होता है. इस रोग में रोगी को महसूस होता है, जैसे-उसे टीबी, कैंसर या एड्स हो गया है.
वह कभी सीना, गले या पेट में दर्द की शिकायत करता है और कभी शरीर पर चींटी रेंगने जैसी बात बताता है. चिंता बढ़ जाने पर नींद नहीं आती है. वह लोगों से कट जाता है. उसे लगता है कुछ ही दिनों का मेहमान है. वह डॉक्टरों के यहां चक्कर लगाता है. कई प्रकार की जांच कराता है. जांच में सब सामान्य निकलता है, तो वह डॉक्टरों को ही गलत बताता है. यदि कुत्ता उसे छू कर भी निकल जाये तो उसे लगता है कि कुत्ते ने उसे काट लिया है.
कारण : परिवार में माता या पिता का अत्यधिक बीमार होना, कमजोर व्यक्तित्व, अत्यधिक संवेदनशीलता, कुंठा, बचपन में लंबी बीमारी का शिकार होना, असफलता आदि.
उपचार : रोगभ्रमी को मेडिकल परीक्षण पर विश्वास नहीं रहता. यदि रोगी से लक्षण के बारे में विस्तृत रूप से पूछा जाये, तो वह बताने में असमर्थ रहता है. इसके इलाज में समय लगता है. व्यवहार चिकित्सा, सूझ चिकित्सा एवं परिवार चिकित्सा से इन्हें फायदा मिलता है. परिवारवालों का सहयोग एवं धैर्य इनके इलाज में कारगर साबित होता है.
डॉ बिन्दा सिंह
क्लिनिकल
साइकोलॉजिस्ट, पटना
मो : 9835018951