दोहरी जिम्मेवारियां और महिलाओं का स्वास्थ्य, जानें कुछ खास बातें
नीलू सिन्हा... किसी भी समाज की व्यवस्था जब अपने विकास क्रम में होती है, तो वहां महिलाएं पुरुषों की साथ कंधे-से-कंधा मिला कर जिम्मेवारियों को सांझा करती हैं. इतिहास इस बात का गवाह है कि समाज की विकास में अपना योगदान देने के लिए जहां एक ओर महिलाओं ने घर की चौखट लांघी हैं, वहीं […]
नीलू सिन्हा
किसी भी समाज की व्यवस्था जब अपने विकास क्रम में होती है, तो वहां महिलाएं पुरुषों की साथ कंधे-से-कंधा मिला कर जिम्मेवारियों को सांझा करती हैं. इतिहास इस बात का गवाह है कि समाज की विकास में अपना योगदान देने के लिए जहां एक ओर महिलाओं ने घर की चौखट लांघी हैं, वहीं दूसरी और इसकी वजह से उन्हें दोहरी जिम्मेवारियों की मार भी झेलनी पड़ी है.
हमारे परंपरागत भारतीय समाज में आज भी पुरुषों से सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में सक्षम होने की उम्मीद की जाती है, वहीं महिलाओं से आर्थिक योगदान के अलावा घर-परिवार की पूर्ण व्यवस्था का दायित्व संभालने की भी अपेक्षा की जाती है. आजकल की तेज भागती जिंदगी में महिलाएं कई तरह के किरदार जैसे- मां, पत्नी, केयरटेकर, बहन, बहु सहित एक श्रेष्ठ कामगार और सहयोगी की भूमिका निभा रही है. इस दोहरे बोझ ने महिलाओं में स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाले हैं. यह सच है कि पेशेवर जिम्मेवारियों के साथ ही आज महिलाएं तकरीबन हर क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व तोड़ रही हैं, किंतु इन सबके बीच वे जाने-अंजाने अपनी सेहत को नजरअंदाज कर रही हैं. न चाहते हुए भी स्वयं ही अपने जीवन के साथ खिलवाड़ भी कर रही हैं. आमतौर पर महिलाओं के स्वास्थ के प्रति परिवार का रूख भी बेहद उदासीन है.
सबके स्वास्थ की देखभाल में अपनी होती है अनदेखी
सबके स्वास्थ का ध्यान रखनेवाली महिलाओं के जब अपने स्वास्थ की बात आती है, तो वे बेहद लापरवाह हो जाती हैं. वे भूल जाती हैं कि घर के अन्य सदस्यों की तरह उन्हें भी उचित पोषण और नियमित हेल्थ चेकअप की जरूरत हैं. डॉ शिखा की मानें, तो महिलाएं यदि परिवार को सुखी देखना चाहती हैं, तो पहले वे अपनी सेहत पर ध्यान दें. महिलाएं परिवार की नींव होती हैं. गृहस्थी की व्यवस्था, सबकी देखभाल से लेकर बाहरी जिम्मेवारियां भी बखूबी निभाती हैं. ऐसे में अगर वे बीमार पड़ जायेंगी, तो परिवार की नींव चरमरा जायेगी.
क्या कहते हैं आंकड़ें
78% कामकाजी महिलाएं किसी-न-किसी लाइफस्टाइल डिसऑर्डर से हैं पीड़ित.
60% फीसदी महिलाओं को 35 साल की उम्र तक दिल की बीमारी होने का खतरा है.
57% महिलाएं कम उपयोग करती हैं खाने में फल-सब्जियां.
42% महिलाओं को पीठ दर्द, मोटापा, अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की शिकायत
83% महिलाएं अपने स्वास्थ्य के िलए नहीं करती हैं किसी तरह का व्यायाम.
50% कामकाजी महिलाओं में हृदय रोग की अधिक संभावना.
सबके स्वास्थ की देखभाल में अपनी होती है अनदेखी
सबके स्वास्थ का ध्यान रखनेवाली महिलाओं के जब अपने स्वास्थ की बात आती है, तो वे बेहद लापरवाह हो जाती हैं. वे भूल जाती हैं कि घर के अन्य सदस्यों की तरह उन्हें भी उचित पोषण और नियमित हेल्थ चेकअप की जरूरत हैं. डॉ शिखा की मानें, तो महिलाएं यदि परिवार को सुखी देखना चाहती हैं, तो पहले वे अपनी सेहत पर ध्यान दें. महिलाएं परिवार की नींव होती हैं. गृहस्थी की व्यवस्था, सबकी देखभाल से लेकर बाहरी जिम्मेवारियां भी बखूबी निभाती हैं. ऐसे में अगर वे बीमार पड़ जायेंगी, तो परिवार की नींव चरमरा जायेगी.
खुद से भी कर लें प्यार
घरेलू हो या कामकाजी, महिलाओं को नियमित रूप से अपने स्वास्थ की जांच करवाते रहना चाहिए. 40 की उम्र के बाद तो प्रतिवर्ष जरूरी जांच कराएं, क्योंकि इस अवस्था में मेनोपॉज होता है, जिसके फलस्वरूप हॉर्मोनल चेंजेज होते हैं. ऐसे में कोई लक्षण दिखें, तो समुचित इलाज संभव हो सकता है.
हड्डियों की जांच
उम्र बढ़ने के साथ हमारी हड्डियां मुलायम और कमजोर हो जाती हैं. यदि हमारे भोजन में उचित मात्रा में कैल्शियम न हो, तो ओस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है. यहबीमारी ज्यादा गंभीर होने पर चलने और अपने रोजमर्रा के कामों को करने में भी परेशानी पैदा कर सकता है.
व्यायाम भी जरूरी
संतुलित आहार के अलावा महिलाओं को 15 मिनट ही सही, लेकिन व्यायाम-योग के लिए भी समय जरूर निकलना चाहिए. इससे शरीर लचीला तथा स्फूर्तिवान बना रहता है. पांच-दस मिनट का योग पूरी तरह से तनावमुक्त कर देता है.
स्त्री रोग विशेषज्ञ की राय
दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शुक्ला कहती हैं कि उनके पास आनेवाले मरीजों के आंकड़े बताते हैं कि अनियमित दिनचर्या एवं खान-पान की वजह से महिलाओं में आजकल पीसीओएस (पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) की शिकायतें भी बढ़ रही हैं. इस कारण महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या भी देखने को मिल रही हैं. विभिन्न सर्वेक्षणों में एक सामान्य बात यह उभर कर सामने आयी है कि लाइफस्टाइल डिसऑर्डर की सबसे बड़ी वजह महिलाएं खुद ही हैं.
कामकाजी और घरेलू दोनों ही तरह की महिलाओं पर जब रिसर्च की गयी और पाया कि दोनों ही तरह की महिलाएं एक वर्ष में जितनी रकम अपने सौंदर्य प्रसाधनों और ब्यूटी पार्लर पर खर्च करती हैं, उससे आधी रकम भी वह अपने खान-पान या स्वास्थ्य पर खर्च नहीं करतीं, जबकि हम सब जानते हैं कि स्वस्थ शरीर सौंदर्य प्रसाधनों का मोहताज नहीं.
