Happy Holi : भांग की तरह आनंद की वस्तु नहीं स्त्री

कई बार स्त्रियों के जीवन से जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या के सूत्र किसी होली से जा जुड़ते हैं. ऐसा तब होता है जब खुद को बंधनमुक्त करने का ये त्योहार, अधैर्य का यह उत्सव, स्त्री को सहज भागीदार नहीं समझता. उसे आम्र मंजरियों, कमल पवन रंग और भांग की तरह आनंद उठाने की वस्तु मात्र समझा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 2, 2018 5:32 AM
कई बार स्त्रियों के जीवन से जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या के सूत्र किसी होली से जा जुड़ते हैं. ऐसा तब होता है जब खुद को बंधनमुक्त करने का ये त्योहार, अधैर्य का यह उत्सव, स्त्री को सहज भागीदार नहीं समझता.
उसे आम्र मंजरियों, कमल पवन रंग और भांग की तरह आनंद उठाने की वस्तु मात्र समझा जाता है. स्वयं को सहज स्वाभाविक छोड़ना ठीक है, पर स्वयं के अंदर के जानवर को दूसरे इंसान पर खुला छोड़ देना सही नहीं. दुखद यह भी है कि आज भी देश के कई कोनों में विधवा स्त्री के सफेद वस्त्र पर रंग का एक छींटा भी उसके किरदार पर प्रश्नचिंह की तरह लग देता है.
ऐसा नहीं कि लड़कियां रंग नहीं खेलतीं . रंगो में सराबोर लड़कियां-स्त्रियां आसानी से मिल जाती हैं हर होली में. बेबाक और तेजतर्रार लड़कियां वैसे भी अब दुर्लभ नहीं रहीं. वे खूब धमाचौकड़ी मचाती हैं. रंगती हैं, रंगाती हैं.
आसमान तक उनके कह-कहे जा पहुंचते हैं. बादलों को ईर्ष्या हो, तो होती रहे, पर क्या वे वास्तव में सचमुच कभी भी स्वयं को पूरी तरह से स्वतंत्र छोड़ पाती हैं, बेफिक्र, बेलौस और बिंदास जितना कि लड़के? क्या कभी उनका ध्यान अपने कपड़ों या व्यवहार की तथाकथित अशोभनीयता से हट पाता है. शायद नहीं, क्योकि उन्मुक्तता को आज भी लड़कियों के संदर्भ में उच्छृंखलता मानी जाती है.
रंगों का यह त्योहार सभी के लिये शुभ मंगल तभी बनेगा, जब हम इसका सही अर्थ समझेंगे. बुरा न मानिए, दिल पर बोझ न लीजिए. आखिर होली है. देखिए घर की महिलाओं ने मिल कर तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किये हैं! इनका आनंद लीजिए. रंग-गुलाल उड़ाइए और होली की खुशियां बांटिए.