पाचन शक्ति ठीक करने का यह है आसान उपाय, कब्ज में भी कारगर

नीलम कुमारी, टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड रोगों में ही नहीं अपितु सामान्य स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए भी हर्रे (हरड़)का प्रयोग नियमित करना चाहिए. शास्त्र में इसकी सात जातियां बतायी गयी है. विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवंती और चैतकी. व्यावहारिक दृष्टिकोण से तीन प्रकार की होती है. छोटी हर्रे, पीली हर्रे और बड़ी हर्रे. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 11, 2017 12:02 PM

नीलम कुमारी, टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड

रोगों में ही नहीं अपितु सामान्य स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए भी हर्रे (हरड़)का प्रयोग नियमित करना चाहिए. शास्त्र में इसकी सात जातियां बतायी गयी है. विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवंती और चैतकी. व्यावहारिक दृष्टिकोण से तीन प्रकार की होती है. छोटी हर्रे, पीली हर्रे और बड़ी हर्रे. यह तीनों एक ही वृक्ष के फल है. संस्कृत में इसे हरीतकी, हैमवती, अभया, हिंदी में हर्रे, हरड़, हर, अंगरेजी में चेबुलिक मनायरोबलान कहा जाता है. इसका वानस्पतिक नाम टरमिनेलिया चेबुला है. यह कॉम्ब्रेटेसी परिवार का पौधा है. इसका उपयोगी भाग फल है.

ऐसे करें पहचान : इसका वृक्ष विशाल लगभग 80-100 फीट ऊंचा होता है. पत्ते तीन से आठ इंच लंबे, दो से चार इंच चौड़े और छह से आठ की जोड़ी में होती है़ फूल छोटा, सफेद या पीले रंग का होता है. फल एक से डेढ़ इंच लंबा अंडाकार, पृष्ठ भाग पर पांच रेखाओं से युक्त, कच्चा में हरा, पकने पर धूसर पीला रंग का हो जाता है़ प्रत्येक फल में एक बीज होता है़ पके हुए फलों का संग्रहण अप्रैल-मई माह में करना चाहिए.

इनमें है उपयोगी : यह कफ वात व पित जनित रोगों में उपयोगी है. पाचन शक्ति बढ़ती है़ खांसी, सांस, कुष्ठ, बवासीर, पुराना ज्वर, मलेरिया, गैस, अपच, प्यास, त्वचा रोग, पेशाब की जलन, आंखों के रोग, दस्त, जॉन्डिस आदि में लाभदायक है. खट्टेपन से वात रोगों को दूर करती है. चटपटेपन से पित रोग और कसैलेपन से कफ का नाश करती है. इसका सेवन बरसात में सेंधा नमक के साथ, जोड़ों में मिश्री के साथ, हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ, बसंत ऋतु में शहद के साथ, गर्मी में गुड़ के साथ करना चाहिए. घृतकुमारी के साथ इसका चूर्ण प्रयोग करने से लीवर मजबूत होता है. साइटिका में इसका चूर्ण को एरंड के तेल के साथ मिला कर प्रयोग किया जाता है.

गैस व अपच : खाना खाने से पहले इसे लेने से भूख बढ़ती है़ बाद में खाने से खाना आसानी से पचता है़

कब्ज : छोटी हर्रे का चूर्ण लगभग चार से छह ग्राम रात में भोजन करने के एक से दो घंटे बाद पानी के साथ प्रयोग करने से कब्ज की समस्या दूर हाेती है़

गठिया : इसका चूर्ण गुड़ व गिलोथ के काढ़े के साथ प्रयोग करने से गठिया में आराम मिलता है़

श्वांस का दौरा : इसे तंबाकू की तरह चिलम में रखकर पीने से सांस की समस्या दूर होती है़

मुख रोग : मुख व गले के रोगों में इसका काढ़ा बना कर कुल्ला किया जाता है़

रोग प्रतिरोधक क्षमता : इसका चूर्ण दो ग्राम गुड़ के साथ खाना चाहिए़ छोटी हर्रे को सुपारी की तरह छोटा-छोटा टुकड़ा कर लें और दिन में खाना खाने के बाद लगभग एक टुकड़े को मुंह में डाल कर अच्छी तरह से चबाना चाहिए़ नियमित प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है़

नोट : चिकित्सीय परामर्श के बाद ही उपयोग करें.

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