रस्सी का करतब इसलिए दिखाती हूं ताकि मां को आराम की जिंदगी दे सकूं

मैं बेहद गरीब परिवार से हूं. हमलोग दो वक्त खाने का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं. मैं रस्सी पर चलने का करतब दिखा कर पैसे कमाती हूं. यह हमारी पुश्तैनी कला है, जो मुझे मेरी मां ने और मां को उनकी मां ने सिखायी थी. इसके अलावा कोई काम नहीं आता, इसलिए […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 26, 2017 12:42 PM
मैं बेहद गरीब परिवार से हूं. हमलोग दो वक्त खाने का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं. मैं रस्सी पर चलने का करतब दिखा कर पैसे कमाती हूं. यह हमारी पुश्तैनी कला है, जो मुझे मेरी मां ने और मां को उनकी मां ने सिखायी थी. इसके अलावा कोई काम नहीं आता, इसलिए चाहती हूं कि एक दिन पूरी दुनिया में इस कला से मुझे पहचाने. अभी मैं आठ वर्ष की हूं और क्लास टू में पढ़ती हूं.
कभी तो मुझे अपना काम बड़ा अच्छा लगता है, पर कभी चिंता भी होती है, क्योंकि लोगों में नट खेल का आकर्षण कम होता जा रहा है. पुराने समय में इससे कई लोग जुड़े थे, पर अब हम जैसे कुछ गिने-चुने लोग ही है, जो इससे अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं. मैं जब दो वर्ष की थी, तब से करतब दिखा रही हूं.
कई मेलों व उत्सवों में भी प्रदर्शन कर सकी हूं. विशेष अवसरों पर खास कर सोनपुर मेले में अच्छी कमाई हो जाती है और हमारी कला को एक पहचान भी मिलती है.
कुछ समय पहले एक लड़की, जो अंग्रेजी में बात कर रही थी, वह खेल खत्म होने पर मेरे पास आयी और मुझसे ऑटोग्राफ मांगा. उस वक्त मुझे बड़ी खुशी हुई. मेरी मां तो यह देख कर रोने ही लगी.बहुत अच्छा तब लगता है, जब लोग मेरे काम की तारीफ करते हैं.
कई बार रस्सी पर चलने के दौरान मुझे चोट भी लगती है, पर मैं फिर से खड़ी हो जाती हूं. इस खेल के लिए गहरा ध्यान, समर्थन और संतुलन की जरूरत पड़ती है. हर दिन मैं इस खेल में खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं, ताकि अपनी मां को एक आराम की जिंदगी दे सकूं.

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