Teachers Day Special: जीवनशाला की शिल्पकार है मां

मां वही शिक्षक है, जिनसे हम सबों के सपनों की शुरुआत होती है. जो हमारे अंदर स्कूल-कॉलेज की शिक्षा से अलग सामाजिक, मानवीय शिक्षा का ईल्म भरती है, ताकि हम एक नेक इंसान बन सकें. शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने जीवन के संस्कारशाला की इस पहली गुरु को प्रणाम!

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2022 11:00 AM

प्रत्युष प्रशांत

कहते हैं कि सपने देखने की शुरुआत उस शिक्षक के साथ होती है, जो आपमें यकीन करता है, जो आपको खींचता है, धक्का देता है और आपको अगले पठार तक ले जाता है, फिर आपको पीछे से थोड़ा-सा थपथपा देता है और आप आसमान छू लेते हैं. मां वही शिक्षक है, जिनसे हम सबों के सपनों की शुरुआत होती है. जो हमारे अंदर स्कूल-कॉलेज की शिक्षा से अलग सामाजिक, मानवीय शिक्षा का ईल्म भरती है, ताकि हम एक नेक इंसान बन सकें. शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने जीवन के संस्कारशाला की इस पहली गुरु को प्रणाम!

हमारे जीवन में दुखों के तमाम पतझड़ को दूर कर, हरे-भरे वसंत की तरह जीवन को सकारात्मकता से सींचती हुई हम सबों की मां, किसी भी शिक्षक से कम तो कतई नहीं है. वह पहली है, जो न केवल देती है पहला शब्द, अक्षर ज्ञान और पहला मानवीय जीवन का बोध, जो जीवन भर हमारे साथ रहता है. शिक्षक दिवस के अवसर पर जीवन के पाठशाला की पहली शिक्षक मां है, जो अपने बच्चों में संस्कार के बीज बोकर उसे परिवार, समाज और देश के लिए एक महत्वपूर्ण ईकाई बनाती है.

जीवन को दिशा देती है मां

हर बच्चे की जीवनशाला में उसकी मां ही उसकी पहली गुरु होती है. वही उसे सामाजिक जीवन में नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाती है. जीवन में शिक्षा का मूल्य बताती है. समय का सदुपयोग करना, सही-गलत की पहचान के साथ उसे एक नेक इंसान बनना सिखाती है. जीवन की पहली पाठशाला, जिसे जीवनशाला कहते हैं, उसमें अक्षर-ज्ञान का दान मां ही तो करती है, इसलिए मां ही हम सबों की पहली साझी शिक्षिका है, जो हमारे जीवन को एक दिशा देती है. मां जीवन के पाठशाला में न सिर्फ पहली शिक्षिका है, बल्कि हमारे जीवन में तमाम मानवीय मूल्यों की नींव रखनेवाली एक शिल्पकार भी है.

मां के क्लास की छुट्टी नहीं होती

हम सबों को पढ़ाई-लिखाई की पाठशाला-कॉलेज के शिक्षक-प्रोफेसरों से एक तय समय के बाद छुट्टी मिल जाती है, पर मां के क्लास से हम सबों को कभी छुट्टी नहीं मिलती. मां जानती है कि कोर्स में पढ़ी किताबों को जीवन में उतारना अधिक जरूरी है. क्या पढ़ा, क्या सीखा, हम कहां हम गलतियां कर रहे हैं… के साथ-साथ मां ही है, जो बताती है कि कौन हमारे सच्चे दोस्त हैं और कौन नहीं. जीवन के अंतिम क्षणों तक मां ही शिक्षक की भूमिका में होती है, जो हर संकट से लड़ने-भिड़ने की ताकत देती है. वह हमारी जीत पर खुश भी होती है और हमारी हार पर फिर से प्रयास करने का दम भी भरती है. हम सबों की मां आल टाइम टीचर होती है, जो कभी छुट्टी पर नहीं होती.

हमेशा जीतने का हौसला देती है मां

कहते हैं कि सपने देखने की शुरुआत उस शिक्षक के साथ होती है, जो आपमें यकीन करता है, जो आपको खींचता है, धक्का देता है और आपको अगले पठार तक ले जाता है. कभी-कभी आपको पीछे से थोड़ा-सा थपथपा देता है और आप आसमान छू लेते हैं. मां वही शिक्षक है, जिनसे हम सबों के सपनों की शुरुआत होती है और वह हम पर सबसे अधिक यकीन करती है. हमेशा धक्का देती है कि हम कर सकते हैं, हम जीत सकते हैं, और जब हम घबराने लगते हैं तो सिर भी थपाथपा देती है, हम सफलता पा लेते हैं. हर मां अपने जीवनशाला में चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित, समय के साथ आने वाले उतार-चढ़ाव को बखूबी जानती है. समय के सबक को हर मां जीवन का सबक बनाती है, कभी खाना बनाते समय हमको अन्न के महत्व के बारे में समझाती है, तो बजार-हाट करते समय छोटी-छोटी बचत कैसे करें, इसका पाठ पढ़ाती है. इस तरह हमें जीवन की कक्षा में होशियार बनाती है.

मां होती है किताब सरीखी

हर मां प्रेरणा देती है, जरूरत है बस उसको जानने-पहचानने की. सबों का दिल जीतना, कभी न रुकना, खुद निर्णय लेना, अपनी कीमत खुद जानना, यह हर मां का वह गुण है, जिसे हम रोज अपने घरों में देखते हैं, पर कभी ध्यान नहीं देते. इन गुणों को अपनाकर, उससे सबक लेकर हम स्वयं को बेहतर बना सकते हैं. इन गुणों से ही हर मां जीवनशाला की हर परीक्षा में उर्तीण होती है. हर मां के व्यक्तित्व के ये गुण हर किसी के लिए अनमोल तोहफे से कम नहीं हैं. मां को सिर्फ मां नहीं, एक दोस्त, शिक्षक या मार्गदर्शक की तरह देखें, क्योंकि वे हम सबों के जीवन में दिशा-सूचक यंत्र की तरह काम करती है, ताकि हम रास्ता भटक न जाये. बिना किसी ट्यूशन फीस के आजीवन उस सामाजिक व्यवहार और मौलिक ज्ञान का संस्कार हमारे अंदर भरती है, जो किसी स्कूल-कॉलेज या यूर्निवसिटी में नहीं मिल सकता.

हम ईश्वर की वंदना करते हैं, तो सबसे पहले उसे मातृ-रूप में देखते हैं- ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव…’ जब भी हम कष्ट में होते हैं, तो मुंह से एक ही शब्द निकलता है- मां. बच्चे का पहला विद्यालय घर होता है और उसकी पहली गुरु मां ही होती है, जो उसके भीतर संस्कारों के बीज डालती है. हमें यह समझ लेना चाहिए कि मां के ऋण से हम कभी उऋण नहीं हो सकते.

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