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Parenting Tips: क्या अपने बच्चे से बात करने का कोई सही तरीका है? जानें क्या है एक्सपर्ट्स का कहना

Parenting Tips: जब आप अपने बच्चे से बात करते हैं तो वे अलग अलग तरह की आवाज और गतिविधियों से परिचित होते हैं. सवाल यह है कि क्या बच्चे इन सभी बातों को समझ पाते हैं? वैसे तो, पैदा होने से पहले शिशु गर्भ में ही अपनी मां की आवाज के साथ-साथ गर्भ में सुनी गई अन्य भाषा ध्वनियों के बारे में भी अच्छी तरह से जान चुके होते हैं.

Parenting Tips: आपने ऐसे कई दिल को छू लेने वाले वीडियो देखे होंगे जिसमें माता-पिता या देखभाल करने वाले लोग छोटे बच्चों के साथ किसी भी विषय पर लंबी ‘‘बातचीत’’ करते हैं. आम तौर पर यह केवल मजेदार गपशप होती है, जिसका कोई विशेष मतलब नहीं होता. ऐसी बातचीत अक्सर बड़ी प्यारी होती है. यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि बच्चे अपनी मां या देखभाल करने वाले की आवाज सुनकर कैसे खिल उठते हैं या उन्हें अपने हाव-भाव, विशेष तरह की आवाज निकालकर प्रतिक्रिया देते हुए दिखाई देते हैं. जब हम बच्चों से इस तरह बात करते हैं तो क्या होता है? क्या उनसे उसी लहजे और अंदाज में बात करना बेहतर है जैसे हम अन्य बड़ों से बात करते समय करते हैं. या फिर शिशुओं से धीमी, ऊंची आवाज में, सुर-ताल में बात करना ठीक है? आइए जानते हैं कि अब तक के शोध से क्या पता चला है?

अपने शिशुओं से बात करना मायने रखता है

जब आप अपने बच्चे से बात करते हैं तो वे अलग अलग तरह की आवाज और गतिविधियों से परिचित होते हैं. सवाल यह है कि क्या बच्चे इन सभी बातों को समझ पाते हैं? वैसे तो, पैदा होने से पहले शिशु गर्भ में ही अपनी मां की आवाज के साथ-साथ गर्भ में सुनी गई अन्य भाषा ध्वनियों के बारे में भी अच्छी तरह से जान चुके होते हैं. यहां तक कि शोध में पता चला कि शिशु अनजान भाषा के बजाय गर्भ में सुनी गई भाषा को सुनना ज्यादा पसंद करते हैं. किसी अत्यंत परिचित व्यक्ति की गोद में रहने, जानी पहचानी ध्वनियां उत्पन्न करने से शिशु के लिए एक सुरक्षित स्थान, माहौल का निर्माण होता है, जो सीखने के अवसरों से भरपूर होता है. बच्चे अपने माता-पिता के संवाद करने के तरीके को सुनकर और देखकर बातचीत करने की शैली के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं. वास्तव में, बच्चे अपने माता-पिता के हाव-भाव की नकल करते हैं जो समय के साथ उनकी शब्दावली बनाने में मदद कर सकता है.

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अगर कहने को कुछ नहीं हो, तो क्या होगा?

अगर आप अपने बच्चे से अकेले बातचीत करने के पक्षधर नहीं हैं तो चिंता नहीं करें. इससे वे कुछ खोएंगे नहीं. वयस्क भाषा बेहद जटिल होती है और भाषा के साथ बहुत अनुभव की आवश्यकता होती है. शुरुआती शब्दों की पहचान में मदद करने और भाषा की संरचना पर ध्यान देने को बढ़ावा देने वाले सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है वयस्कों द्वारा शिशु से बात करने का सरल तरीका इस्तेमाल करना. ‘‘पैरेंटीज’’ भाषा का एक सरलीकृत रूप है जिसे माता-पिता अक्सर शिशुओं से बात करते समय उपयोग करते हैं. इसमें शिशुओं से उच्च पिच वाली ध्वनियों (महीन और पतली ध्वनि) और धीमे स्वर में, गाने और खुशनुमा अंदाज में बात की जाती है. ऐसा पाया गया है कि शिशु मानक भाषण की तुलना में बोलने की इस शैली को सुनना पसंद करते हैं.

क्या करें?

शिशु के नौ महीने की उम्र से भाषा सीखने को बढ़ावा देने का एक प्रभावी तरीका यह है कि आप देखें कि आपके बच्चे का ध्यान किस चीज पर है और उसके बारे में बात करें. यह भी देखें कि आपका बच्चा किस चीज को देख रहा है, किस चीज से खेल रहा है, किस चीज की ओर इशारा कर रहा है या किस चीज को देखकर बोलना चाह रहा है. शिशु मस्तिष्क विशेषज्ञ जेन हर्बर्ट और उनके सहकर्मियों द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि माता-पिता को अपने 11 महीने के बच्चों के साथ एक महीने तक प्रतिदिन 15 मिनट इस तरह की बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए 15 और 18 महीने की उम्र में ऐसी बातचीत शब्दावली विकास को बढ़ावा देने में प्रभावी थी. कुल मिलाकर, सिर्फ केंद्रित बातचीत करने से नहीं बल्कि खेल खेलकर, गाने के जरिए और जोर जोर से पढ़ने जैसी गतिविधियां करने से बच्चे के लिए एक समृद्ध भाषाई माहौल बनता है.

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