Exclusive: सनी देओल ने खोले राज, कहा- ”पिताजी से अब भी लगता है डर…”

बॉलीवुड अअभिनेता सनी देओल ने एकबार फिर अपने धमाकेदार एक्‍शन के साथ वापसी की हैं. उनकी फिल्‍म ‘घायल वंस अगेन’ ने सिनेमाघरों में दस्‍तक दे दी है. फिल्‍म का निर्देशन खुद सनी देओल ने ही किया है. यह उनकी फिल्‍म ‘घायल’ की सीक्‍वल है जो सुपरहिट रही थी. हाल ही में उन्‍होंने अपने कुछ खास […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 5, 2016 1:01 PM

बॉलीवुड अअभिनेता सनी देओल ने एकबार फिर अपने धमाकेदार एक्‍शन के साथ वापसी की हैं. उनकी फिल्‍म ‘घायल वंस अगेन’ ने सिनेमाघरों में दस्‍तक दे दी है. फिल्‍म का निर्देशन खुद सनी देओल ने ही किया है. यह उनकी फिल्‍म ‘घायल’ की सीक्‍वल है जो सुपरहिट रही थी. हाल ही में उन्‍होंने अपने कुछ खास पलों को साझा किया. पेश है अनुप्रिया अनंत और उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के मुख्य अंश.

आज भी प्रासंगिक है फिल्म

मेरा मानना है कि आज भी घायल वंस अगेन प्रासंगिक है. लोगों के जेहन में आज भी सारी बातें याद है. और उस दौर में भी भ्रष्टाचार तो था ही. आज भी है. इस बार मैं फिल्म में यह लेकर आ रहा हूं कि आज वह आदमी किस तरह जेल से निकलने के बाद किस तरह की सोसाइटी में रह रहा होगा. आज बलवंत राय किस तरह का है. सोसाइटी किस तरह बदली है. मेरा मानना है कि सोसाइटी बदलती है यूथ के साथ.17-18 साल के बाद जब वह कदम रखता है यूथ के साथ तब क्या क्या चीजें बदलती हैं. इस पर है फिल्म मेरी. मेरा मानना है कि प्रॉब्लम बदली नहीं है. अब बस दर्द का एहसास करना बदल गया है. चीजें बदल गयी हैं. लेकिन बात वही हैं. लोग टिष्ट्वट करते हैं, क्योंकि उनके अंदर अंदर एक रिवोल्ट चल रहा होता है. अब बस एक माध्यम बदला है. अगर सच कहूं तो. तकलीफें वही हैं.

सोशल नेटवर्र्किंग साइट्स पर नहीं लेकिन अवगत रहता हूं

लोगों को ऐसा लगता है कि आज के दौर में जो सोशल साइट्स पर नहीं हैं,वह अपडेट नहीं रहता है. लेकिन मैं फिर भी अपडेट रहता हूं. मेरा मानना है कि आपका सोशल साइट्स पर रहना जरूरी नहीं, बल्कि समस्याओं को समझना जरूरी है. हमारा काम सिर्फ ट्वीट करके शांत रहने का नहीं. जड़ को समझना जरूरी है और जड़ को समझ कर ही आप उस पर कुछ गंभीरता से सोच सकते हैं. मैं खुद को अपडेट रखता हूं. आस-पास की दुनिया की सारी बातें मैं जानता हूं समझता हूं.

स्पोर्ट्स में शुरू से है दिलचस्पी

मुझे हमेशा से स्पोर्ट्स से दिलचस्पी रही है. स्पोर्ट्स की वजह से ही शायद मैं अनुशासित हो पाया हूं. आज भी मुझे जल्दी उठ कर सारा काम निबटाने की आदत है. आज भी मैं एक भी दिन मिस नहीं करता हूं. जब मैं एक्सरसाइज न करूं. कसरत न करूं. अगर मैं लेट नाइट शूट से भी देर से लौटता हूं. तब भी मैं कसरत करता हूं और उठता हूं. मुझे लगता है कि यह सबकुछ मुझे स्पोर्ट्स से ही मिली है. मुझे हमेशा से इच्छा थी कि मैं स्पोर्ट्स पर फिल्म बनाऊं. उस दौर में तो चक दे आयी भी नहीं थी. मिल्खा जैसी फिल्म भी नहीं बनी थी. हमने काफी कुछ सोचा था. बातें भी हुई थी. लेकिन फिर बाद में हम बना नहीं पाये और अब तो काफी फिल्में बन चुकी हैं. मैं फुटबॉल, क्रिकेट, बास्केट बॉल सबकुछ खेला करता था और शायद इसलिए आज भी शरीर में फुर्ती जरूरी है. ये एक अच्छी चीज हुई है. मुझे याद है मैंने और शेखर कपूर ने तय किया था कि हम साथ में स्पोर्ट्स पर फिल्म बनायेंगे.

हमने साइन भी कर लिया था. हमारी फिल्म मिल्खा सिंह जैसी फिल्म वाली कहानी थी. जीपी सिप्पी इस फिल्म का निर्मा्रण कर रहे थे. लेकिन बाद में वह पीछे हट गये तो नहीं बन पायी. दरअसल, वह स्पोर्ट्स को ही बढ़ावा देने के लिए हमने सोचा था कि फिल्म बनाते हैं. फिल्म का नाम चैंपियन था. लेकिन वह बन नहीं पायी. मुझे दुख है कि उस वक्त फिल्म बनाने के लिए मेरे पास खास पैसे नहीं थे.

पिताजी से अब भी लगता है डर

पता नहीं शायद यह हमारी खानदानी परंपरा चली आ रही है कि पिताजी अपने पिताजी से डरते थे. और हम अपने. जबकि पापा इतने मजाकिया हैं. इतनी बातें करते हैं सभी से. उनकी इच्छा होती है कि हम उनके साथ बैठ कर बातें करें. लेकिन पता नहीं एक लिहाज है अलग सा. हम उनके साथ अधिक देर बैठ ही नहीं पाते. मेरे बेटे के साथ भी शायद कुछ ऐसा ही है रिश्ता. लेकिन एक बात अपने बेटे को जरूर समझायी है कि जिस तरह पापा ने हमें इंसानीयत का पाठ पढ़ाया है और जमीन से जुड़े रहना सिखाया है. मैंने भी बेटे को यही बात सिखायी है.

जब मैंने की थी शुरुआत

मुझे याद है, जब मैंने शुरुआत की थी. तो हम लोग बहुत रॉ होते थे. कुछ भी तैयारी से नहीं आते थे. हर कुछ सीखने की कोशिश करते रहते थे. मैंने जब बेताब की थी तो मुझे खास कुछ भी नहीं पता था कि फिल्में बनती कैसे हैं. हां, मगर दिलचस्पी बहुत थी. चूंकि पापा को हमेशा देखता आया था. तो रुझान तो था ही. उस वक्त की क्योरिसिटी अलग होती थी. आज के बच्चे जब आते हैं तो वह मेकअप को ही सबकुछ समझ लेते हैं. सिर्फ स्कीनी बॉडी लेकर सोचते हैं कि यही अभिनय है. पूरी तैयारी से आते हैं. लेकिन एक्टिंग छोड़ कर हर तरह की तैयारी होती है. मेरी फिल्म में तो मैंने अपने सारे नये बच्चों को जब कहा कि मेकअप करना ही नहीं है. मेकअप से तो इनोसेंस चला जाता है तो एक मिनट के लिए बच्चे चौंके थे.

मैंने ये भी कहा कि मुझे किसी तरह का सिक्स पैक एब्स नहीं चाहिए. सामान्य लोग चाहिए. तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ था. लड़कियों को तो मेकअप से कितना प्यार होता है. मगर फिर भी हमने उन्हें मेकअप नहीं करने दिया है. मुझे मासूमियत ही पसंद है और मैं चाहता हूं कि वे मासूमियत से ही आगे बढ़ें. हां, मगर मैं भी आश्चर्यचकित रहता हूं कि उन्हें इंडस्ट्री के बारे में कितनी सारी जानकारी है. मैं तो इंडस्ट्री का होकर भी यहां के तौर तरीकों से खास तरह से अवगत नहीं हो पाया था.

निर्देशन में दिलचस्पी

जब मैंने शुरुआत की थी. तो कॉलेज पास करते ही आ गया था. मेरी और निर्देशक राहुल रवेल की उम्र में खास फर्क नहीं था. तो काफी कुछ देखा करता था. सीखा करता था कि परदे के पीछे कैसे काम होता है. फिर फिल्म दिल्लगी से एक बार कोशिश भी की तो खुद पर आत्म विश्वास बढ़ा. मुझे इस बार लगा कि जो मैं कहानी दिखाना चाहता हूं शायद मैं खुद ही लिख पाऊंगा और खुद ही बनाऊंगा तो उसके साथ जस्टीस कर पाऊंगा. इसलिए यह कमान संभाली

खुश हूं कि बेटे की बारी है

मैं खुश हूं कि अब मेरे बेटे की बारी आ रही है. उम्मीद है कि वह अच्छा काम करेगा. वह अभी से मेहनत कर रहा है. हमने उसे यह समझा दिया है कि मेहनत से बढ़ कर कुछ नहीं होता. तो वह इन बातों पर अमल कर रहा है.