Bharti Singh को कंबल की खुशबू और मशीनों की आवाज से है नफरत, कारण जानकर आप भी हो जाएंगे इमोशनल

लोकप्रिय कॉमेडियन भारती सिंह यूं तो अपनी कॉमेडी से हर किसी का दिल जीत लेती हैं, लेकिन एक वक्त था, जब उनके पास दो वक्त की रोटी नहीं होती थी. एक इंटरव्यू में कॉमेडियन ने खुलासा किया था, कि बासी खाना खाकर किसी तरह जीते थे.

By Ashish Lata | March 15, 2023 10:02 AM

भारती सिंह की कॉमेडी की आज पूरी दुनिया फैन है. कॉमेडियन इन-दिनों अपने बेटे संग लाइफ को एंजॉय कर रही हैं. लेकिन एक वक्त था, जब वह काफी गरीब हुआ करती थी और उनके पास एक खाने तक के लिए पैसे नहीं होते थे. एक डिजिटल मीडिया द्वारा पॉडकास्ट में बात करते हुए भारती सिंह ने इस बारे में बात की कि कैसे वह और उनका परिवार गरीबी में था. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे कपिल शर्मा और सुदेश लेहरी के साथ अचानक उनकी मुलाकात हुई और पूरी जिंदगी ही बदल गई.

गरीबी पर रोना आता है

भारती सिंह ने कहा, मुझसे पहले भी कॉमेडियन थे, लेकिन लोगों ने उन्हें आगे नहीं आने दिया. लोग उन्हें यह कहते हुए चुप करा देते थे, ‘तुम्हारा दुपट्टा कहां है? अंदर जाओ’. अगर हमें अपने आपको अंदर ही छुपा कर बैठना था, तो आपने हमें जन्म क्यों दिया? ये चीजें पहले बहुत होती थीं, लेकिन अब परिदृश्य बदल गया है. मैं दो साल की थी, जब मेरे पिता का निधन हो गया. मेरे भाइयों और बहनों ने अपनी नौकरी छोड़ दी. वे एक फैक्ट्री में काम करते थे, वे भारी कंबल ले जाते थे, कंबल जो हम कभी इस्तेमाल नहीं कर सकते थे. वे उन्हें रात-रात भर सिलते. कभी-कभी मेरी मां दुपट्टे सिल देती थीं. मुझे अब भी उन कम्बलों की गंध और मशीन की आवाज से नफरत है. मैंने अपने परिवार के साथ काफी गरीबी देखी है और मैं इसे अब और नहीं देखना चाहती.



दूसरों का बासी खान हमारे लिए होता था ताजा

भारती सिंह ने कहा, मैंने कितनी गरीबी देखी है, बता नहीं सकती. अगर मैं लोगों को आधा खाया हुआ सेब फेंकते देखती तो सोचती कि उस व्यक्ति को खाना बर्बाद करने के लिए श्राप मिलेगा. मैं इसे उठाकर और इस तरह से टुकड़ा करने के बारे में भी सोचूंगी ताकि मैं इसे खा सकूं. मैं त्योहारों के दौरान उदास हो जाती थी. मेरी मां के काम से मिठाई का डिब्बा आने के बाद हम लक्ष्मी पूजा करेंगे. मैं पटाखे फोड़ने वाले दूसरे बच्चों के पास जाकर खड़ी हो जाती, ताकि दूसरे यह सोचें कि मैंने पटाखे फोड़े. जब मेरी मां लोगों के घरों में काम करती थी तो मैं दरवाजे के पास बैठ जाती थी. वह शौचालय साफ करती थी. जाते समय वे उन्हें बचा हुआ खाना दे देते. उनका बासी खाना हमारा ताजा खाना बन जाएगा और वह हमारा दिन बन जाता था. आज मैं अपनी मां से कहती हूं, मुझे अपने 10 महीने के बेटे से जितना प्यार है, उससे कहीं ज्यादा मैं अपनी मां से प्यार करती हूं.

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