UP Election: पूर्व MLA साबिर कई बार बदल चुके हैं सियासी हवा का रुख, लोग यूं ही नहीं कहते सियासत का चाणक्य

बरेली में पूर्व विधायक इस्लाम साबिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद सिर्फ 533 दिन ही विधायक रहे हैं. मगर, पांच लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव की हार ने उन्हें सियासत के चाणक्य का खिताब थमा दिया.

By Prabhat Khabar | January 31, 2022 3:26 PM

Bareilly News: बरेली में पूर्व विधायक इस्लाम साबिर को सियासत का चाणक्य माना जाता है, लेकिन वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद सिर्फ 533 दिन ही विधायक रहे हैं. मगर, पांच लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव की हार ने उन्हें सियासत के चाणक्य का खिताब थमा दिया. वह बरेली की नौ विधानसभाओं की राजनीति को इस कदर समझ चुके हैं, कि अब बहुत कुछ वैसा ही होता नजर आता है, जिस और उनकी सियासी समझ इशारा करती है.

शहजिल इस्लाम 5107 दिन रहे विधायक

हालांकि, उनके पिता पूर्व विधायक मरहूम अशफाक अहमद सबसे अधिक 6503 दिन विधायक रहे, तो पुत्र पूर्व मंत्री शहजिल इस्लाम 5107 दिन विधायक रहे हैं. पूर्व विधायक इस्लाम साबिर ने 10वीं विधानसभा यानी 1989 में पहला विधानसभा चुनाव कैंट सीट से लड़ा था. मगर, इस चुनाव में वह मामूली वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे.

राजनीति की गहरी समझ रखते हैं पूर्व विधायक

इसके बाद 1991 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. वह विधायक बने थे. उनका कार्यकाल जून-1991 से दिसंबर- 1992 तक रहा. वह मात्र 533 दिन ही विधायक रहे. इसके बाद विधानसभा और लोकसभा के कई चुनाव लड़े, लेकिन एक में भी जीत दर्ज नहीं की. हालांकि, पिता और बेटे को कई बार विधायक बनवा चुके हैं. उनके ताऊ रफीक अहमद भी 1985 में कैंट सीट से ही विधायक रहे हैं.

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पुत्रवधू को लड़ाया लोकसभा चुनाव

पूर्व विधायक इस्लाम साबिर ने पुत्रवधु एवं पूर्व मंत्री शहजिल इस्लाम की पत्नी आयशा इस्लाम को 2014 में सपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ाया था. आयशा इस्लाम को 2,77,573 मत मिले थे, जबकि भाजपा से चुनाव लड़ने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार को 5,18,258 मत मिले थे. वह बरेली में सबसे अधिक मत लेकर भी लंबे अंतर से चुनाव हार गई थीं.

सुभाष पटेल भी रहे 533 दिन विधायक, लेकिन सियासत से गायब

बरेली की भोजीपुरा विधानसभा से सुभाष पटेल भी 1991 में 533 दिन ही विधायक रहे थे. वह भी जून 1991 से दिसंबर 1992 तक विधायक रहे. इसके बाद बरेली नगर निगम के मेयर बने, लेकिन इसके बाद सियासत से ही गायब हो गए थे. उन्हें किसी भी पद का कोई टिकट नहीं मिला. हालांकि, लंबे समय बाद उनके बेटे की बहू रशिम पटेल जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं.

रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद

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