British Population in India: आजादी के समय भारत में कितने थे अंग्रेज? आंकड़े जानकर चौंक जाएंगे
British Population in India: 1947 में भारत की आजादी के समय यहां लगभग 10 लाख ब्रिटिश नागरिक मौजूद थे. इनमें सैनिक, अधिकारी, व्यापारी और एंग्लो-इंडियन शामिल थे. जनगणना में अंग्रेजों की भी गिनती होती थी और उन्हें यूरोपीय वर्ग में दर्ज किया जाता था. आजादी के बाद अधिकांश अंग्रेज वापस लौट गए.
British Population in India: भारत ने 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी हासिल की। यह सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं थी, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ भी था. लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया. इस दौरान हजारों-लाखों अंग्रेज भारत आए और यहीं रहकर प्रशासन, सेना, व्यापार और नौकरियों में लगे रहे.
आजादी के वक्त कितने थे अंग्रेज?
इतिहासकारों के अनुमान के मुताबिक, 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब यहां लगभग 10 लाख ब्रिटिश लोग मौजूद थे. इनमें सैनिक, अधिकारी, व्यापारी और उनके परिवार शामिल थे. हालांकि इससे पहले की जनगणनाओं में इनकी संख्या अलग-अलग दर्ज की गई थी.
1891 की जनगणना में अंग्रेजी मातृभाषा बोलने वालों की संख्या लगभग 2,38,409 थी. वहीं 1921 की जनगणना के अनुसार यह घटकर 1,65,485 रह गई. इनमें करीब 40 हजार सैनिक, 2 हजार से अधिक वरिष्ठ अधिकारी, कई व्यापारी और बड़ी संख्या में प्रशासनिक कर्मचारी थे। इसके अलावा लगभग 10 लाख एंग्लो-इंडियन समुदाय भी भारत में रहते थे.
क्या अंग्रेजों की होती थी जनगणना?
भारत में पहली आधिकारिक जनगणना 1872 में हुई और 1881 से हर दस साल पर इसे नियमित रूप से किया जाने लगा. जनगणना में धर्म, भाषा, जाति, आयु, शिक्षा, रोजगार और जन्मस्थान जैसी जानकारी दर्ज होती थी. ब्रिटिश नागरिकों की भी गिनती होती थी, जिन्हें “यूरोपीय मूल” के अलग वर्गों – जैसे अंग्रेज, आयरिश, स्कॉटिश और एंग्लो-इंडियन – में दर्ज किया जाता था.
एंग्लो-इंडियन समुदाय की स्थिति
एंग्लो-इंडियन वे लोग थे जिनके माता-पिता में से एक भारतीय और दूसरा यूरोपीय होता था. यह समुदाय अंग्रेजी परंपराओं और भाषा से जुड़ा रहा, लेकिन भारत में ही पला-बढ़ा. आजादी के बाद जब अधिकतर अंग्रेज भारत छोड़कर वापस लौट गए, तो यही एंग्लो-इंडियन समुदाय भारत में बना रहा और उसने भारतीय समाज में अपनी जगह बनाई.
आजादी का यह पहलू बताता है कि ब्रिटिश शासन सिर्फ प्रशासन तक सीमित नहीं था, बल्कि इसकी एक सामाजिक और सांस्कृतिक उपस्थिति भी थी, जो आजादी के बाद धीरे-धीरे समाप्त हो गई.
