घरेलू खपत बढ़ाने से ट्रंप के टैरिफ को मिलेगी टक्कर, अमेरिकी निर्यात घाटे की होगी भरपाई
Tariff Hike: अमेरिका की ओर से भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाए जाने से भारतीय निर्यातकों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. जीटीआरआई संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि भारत घरेलू खपत बढ़ाकर और नए वैश्विक बाजारों की तलाश कर इस नुकसान की भरपाई कर सकता है. वस्त्र, आभूषण, झींगा और रत्न उद्योग पर सबसे अधिक असर पड़ेगा. वहीं, भारत यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और दूसरे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों से वैकल्पिक रास्ते खोज रहा है.
Tariff Hike: अमेरिका की ओर से भारत से निर्यातित सामानों पर 50% टैरिफ लागू किए जाने के बाद बुधवार को ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत घरेलू खपत बढ़ाकर कुछ हद तक अमेरिकी व्यापार के नुकसान की भरपाई कर सकता है. अमेरिका ने 50% तक टैरिफ लागू करके भारतीय निर्यातकों के सामने बड़ी चुनौती खड़ा कर दिया है. खासकर, उन क्षेत्रों के लिए जो अमेरिकी बाजार पर अधिक निर्भर हैं. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि इस टैरिफ से भारत के श्रम-प्रधान उद्योगों (हीरा, रत्न, आभूषण, वस्त्र, परिधान और झींगा मछली) को गंभीर झटका लग सकता है. इन क्षेत्रों में अमेरिका भारत का बड़ा आयातक है और प्रतिस्पर्धा पहले से ही चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से बढ़ रही है, जिन पर अपेक्षाकृत कम टैरिफ लागू होता है.
भारत के पास दो बड़े विकल्प
अजय श्रीवास्तव ने कहा कि इस संकट से निपटने के लिए भारत के पास दो प्रमुख विकल्प मौजूद हैं. इनमें पहला घरेलू खपत पर जोर देना और दूसरा नए बाजारों की तलाश करना है. उन्होंने कहा कि भारत का निर्यात उसकी अर्थव्यवस्था का लगभग 20% है, जबकि घरेलू बाजार कुल उत्पादन का करीब 80% अवशोषित करता है. तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था (6 से 7% सालाना वृद्धि दर) इस क्षमता को और बढ़ाने का मौका देती है. ऐसे में घरेलू खपत को प्रोत्साहित करके अमेरिकी बाजार में हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है. उनका कहना है कि भारत का स्थानीय उपभोग इतना बड़ा है कि वह वैश्विक झटकों को काफी हद तक सहन कर सकता है. इसका फायदा यह होगा कि भारतीय उद्योग को निर्यात निर्भरता से बाहर निकालकर अधिक स्थिरता मिलेगी.
नए बाजारों की करनी होगी तलाश
भारत अमेरिका को भेजे जाने वाले निर्यात को दूसरे देशों की ओर मोड़ सकता है. इसके लिए सरकार कई स्तरों पर प्रयास कर रही है. ब्रिटेन के साथ पहले ही एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर हो चुके हैं. वहीं, यूरोपीय संघ के साथ वार्ता तेज की जा रही है. इसके अलावा, पेरू और दूसरे देशों के साथ भी एफटीए की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं. इन समझौतों से भारतीय निर्यातकों को वैकल्पिक बाजार मिलेंगे और अमेरिकी टैरिफ से होने वाले नुकसान की भरपाई धीरे-धीरे संभव हो सकेगी.
प्रभावित होंगे श्रम-प्रधान उद्योग
अमेरिकी टैरिफ का सबसे ज्यादा असर श्रम-प्रधान उद्योगों पर होगा. वस्त्र, परिधान, झींगा और आभूषण जैसे क्षेत्रों के छोटे और मध्यम आकार के निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता काफी महंगी साबित हो सकती है. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि इन उद्योगों में बहुत बड़े स्तर के कारखाने ही अमेरिका को निर्यात करते हैं. छोटे और मध्यम आकार के उद्यम विकसित बाजारों की कड़ी प्रमाणन शर्तों और महंगे मानकों को पूरा करने में सक्षम नहीं होते. यही कारण है कि अधिकांश लघु उद्योग निम्न-स्तरीय बाजारों में निर्यात करते हैं और अमेरिकी टैरिफ से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होंगे.
बातचीत के दरवाजे अब भी खुले
अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक वार्ता पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है. अजय श्रीवास्तव के अनुसार, बातचीत को केवल रोका गया है, खत्म नहीं किया गया. दोनों देशों की ओर से लचीलापन दिखाने पर दोबारा वार्ता शुरू हो सकती है. इसका मतलब है कि आने वाले महीनों में भारत और अमेरिका के बीच समझौते की संभावनाएं बरकरार हैं.
गुणवत्ता और लागत में सुधार
थिंक टैंक जीटीआरआई ने सुझाव दिया है कि भारत को केवल अमेरिकी टैरिफ से बचने के तात्कालिक विकल्पों पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि दीर्घकालिक समाधान अपनाने होंगे. सबसे पहले, भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार लाना जरूरी है, ताकि वे वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकें. दूसरा, विनिर्माण लागत घटाना भी उतना ही अहम है. उत्पादन लागत अधिक होने से भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा क्षमता कम हो जाती है. इन दोनों पहलुओं पर काम करने से भारतीय निर्यातकों को न केवल अमेरिकी बल्कि अन्य विकसित बाजारों में भी स्थिरता मिलेगी.
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प्रभाव को जल्द कम कर लेगा भारत
जीटीआरआई को विश्वास है कि भारत अगले कुछ महीनों में अमेरिकी टैरिफ से होने वाले प्रतिकूल प्रभाव को काफी हद तक कम कर लेगा. यदि भारत घरेलू उपभोग को और बढ़ाने, नए बाजारों की तलाश करने और दीर्घकालिक सुधारों पर ध्यान देने में सफल होता है, तो यह संकट लंबे समय में अवसर में बदल सकता है.
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