ट्रंप के टैरिफ को मुंहतोड़ जवाब देगी भारत-रूस-चीन की तिकड़ी, जापान बनेगा ताकत
Trump Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 50% तक टैरिफ लगाने के फैसले के बाद भारत-रूस-चीन की तिकड़ी ने अमेरिका को जवाब देने की रणनीति बना ली है. चीन और रूस के साथ भारत की कूटनीतिक नजदीकियां बढ़ रही हैं, वहीं जापान की तकनीकी ताकत और निवेश भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देंगे. पीएम मोदी की जापान और चीन यात्रा एशिया में नए राजनीतिक व आर्थिक समीकरण गढ़ने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है.
Trump Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर सबसे अधिक 50% तक टैरिफ लादकर मानो आफत मोल ले लिया है. व्यापार को हथियार बनाने वाले ट्रंप को सबक सिखाने के लिए भारत ने ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त’ की कूटनीति पर काम करते हुए अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन रूस और चीन के साथ दोस्ती बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. हालांकि, इन दोनों देशों के साथ भारत के पुराने रिश्ते हैं, लेकिन करीब पिछले एक दशक से भी अधिक समय से इन रिश्तों में खटास आ गई थी. अब जबकि अमेरिका ने भारत जैसे भरोसेमंद दोस्त की पीठ में टैरिफ का छूरा घोंपने का काम किया है, तो अब ट्रंप के इस टैरिफ को भारत-रूस और चीन की तिकड़ी मुंहतोड़ जवाब देगी और जापान को अपनी ताकत बनाएगी.
चीन पर ट्रंप का टैरिफ
चाइना ब्रीफिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने 9 से 11 अप्रैल के बीच चीन से आयातित वस्तुओं पर करीब 145% टैरिफ लगाने का फैसला किया. यह दर मौजूदा 20% बेस रेट से कहीं अधिक था. इसके जवाब में चीन ने भी जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी वस्तुओं के आयात पर करीब 125% टैरिफ ठोक दिया. इसके बाद मई 2025 में अमेरिका और चीन ने 90-दिन के लिए ‘ट्रसू’ समझौता किया, जिसमें अमेरिकी टैरिफ दर को 145% से घटाकर 30% कर दिया गया और चीन ने अपने जवाबी टैरिफ 125% से घटाकर 10% किया.
जापान पर ट्रंप ने लगाया कम टैरिफ
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने जापान पर भी रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने में कोई कोताही नहीं बरती. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की घोषणा के बाद जापानी आयातित अधिकांश वस्तुओं पर 15% टैरिफ लागू किया गया है. इससे पहले के 25% टैरिफ से कमी हुई है. यह समझौता जुलाई 2025 में तय हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की ओर से जापान के लिए कारों और ऑटो पार्ट्स पर लगाए गए टैरिफ को भी 25% से घटाकर 15% पर लाया गया है. यह निर्णय व्यापार सहयोग और निवेश समझौते के हिस्से के रूप में लिया गया था.
रूस-भारत-चीन तिकड़ी
द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से वैश्विक साझेदारियां कमजोर हुई हैं. इसी परिस्थिति को देखते हुए रूस ने रूस-भारत-चीन की तिकड़ी को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया है. चीन ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है और भारत ने ‘मुताबिक सुविधा’ वाले ढांचे में बातचीत में रूचि जताई है. इस तिकड़ी के पीछे रूस का उद्देश्य पश्चिमी दबाव का मुकाबला करना है, चीन सहयोग चाहता है और भारत अपने ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को मजबूत करना चाहता है. यह सहयोग रक्षा, ऊर्जा, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्रों में नए अवसरों का द्वार खोल सकता है.
ट्रंप की धमकियों पर कड़ा पलटवार
इधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29-30 अगस्त को जापान की यात्रा पर गए हैं. 29 अगस्त को जापान की राजधानी टोक्यो से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को करारा जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि भारत में पूंजी केवल बढ़ती नहीं, बल्कि कई गुना बढ़ती है, जिससे यह साफ है कि ट्रंप की 50% तक की टैरिफ और हमला-पहल मोदी की आत्मनिर्भर और निवेश-सक्षम अर्थव्यवस्था के सामने फीका पड़ रहा है. इस कदम ने न केवल भारत-अमेरिका संकट को गहरा कर दिया, बल्कि भारत की विदेशी नीति में बहुपक्षीय संतुलन खोजने की स्पष्ट दिशा भी उजागर की है.
SCO के मंच पर नई कूटनीतिक चाल
जापान की दो दिवसीय यात्रा समाप्त होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त और 1 सितंबर 2025 को दो दिवसीय चीन की यात्रा पर जाएंगे. वहां पर वे गिनतियांग में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह पिछले सात सालों में पहली बार होगा, जब प्रधानमंत्री मोदी चीन जाएंगे. इस शिखर सम्मेलन में रूस और चीन के नेतृत्व में नए राजनीतिक आयाम खुलने के आसार अधिक नजर आ रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा एक सामरिक संकेत है, जहां भारत, रूस और चीन साथ में कदम मिलाकर ट्रंप की अस्थिर नीति को चुनौती देंगे.
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जापान की तकनीकी ताकत करेगी काम
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने टोक्यो में यह भी कहा कि जापान की तकनीकी श्रेष्ठता और भारत की मानव संसाधन प्रतिभा मिलकर एशिया में समृद्धि का नया युग लिखेंगे. वास्तव में, जापान 10 ट्रिलियन येन ($67.9 बिलियन) के निजी निवेश के साथ भारत में उच्च तकनीकी क्षेत्रों (एआई, हाई-स्पीड रेल, रक्षा और साइबर-सुरक्षा) में सहयोग बढ़ाने को तैयार है. जापान-के माध्यम से भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि व्यापार और तकनीकी साझेदारी अमेरिका के आर्थिक दबाव के आगे नहीं झुकेगी. उधर, भारत की आकांक्षाओं (मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ ऊर्जा) में जापानी निवेश और तकनीकी मदद संरचनात्मक विकास को गति दे सकते हैं. इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत-रूस और चीन ने अमेरिका को मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति तैयार कर ली है.
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