Tariff War: अमेरिका के टैरिफ के बीच भारत कृषि हितों पर अडिग

Tariff War: अमेरिका भारत से अपने कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाजारों तक अधिक पहुंच बनाने की मांग कर रहा है. हालांकि, भारत ने इस मांग का लगातार विरोध किया है, यह कहते हुए कि ऐसा करने से देश के करोड़ों किसानों की आजीविका पर संकट आ जाएगा.

By Rajeev Kumar | August 4, 2025 9:46 AM


Tariff War: अमेरिका द्वारा 7 अगस्त से भारतीय सामानों पर 25% का टैरिफ लगाने के फैसले के बाद भी भारत अपने कृषि हितों पर अडिग है। इस नए टैरिफ से विशेष रूप से समुद्री उत्पाद, मसाले और बासमती चावल जैसे कृषि निर्यात प्रभावित हो सकते हैं, जिनका अमेरिका भारत से लगभग 6. 25 अरब डॉलर का आयात करता है। भारत सरकार का कहना है कि वे अपने किसानों और डेयरी सेक्टर को किसी भी कीमत पर अमेरिकी बाजार के लिए नहीं खोलेंगे, क्योंकि यह देश की आधी आबादी की आजीविका का आधार है और इसमें धार्मिक भावनाएं भी जुड़ी हैं। जहां अमेरिका भारत से अपने सब्सिडी वाले और आनुवंशिक रूप से संशोधित कृषि उत्पादों के लिए अधिक पहुंच चाहता है, वहीं भारत ने इसे राष्ट्रीय हितों और खाद्य सुरक्षा का हवाला देते हुए लगातार खारिज किया है। यह विवाद दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते को जटिल बना रहा है, जिससे भारतीय निर्यातकों पर दबाव बढ़ गया है।

अमेरिका के टैरिफ के बीच भारत कृषि हितों पर अडिग

पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में हाल ही में तनाव देखने को मिला है, खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद। यह टैरिफ 1 अगस्त से प्रभावी होना था, जिसे बाद में 7 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते को लेकर कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है। अमेरिका का कहना है कि भारत व्यापार में “उच्च टैरिफ” और “कठोर व आपत्तिजनक” गैर-मौद्रिक प्रतिबंध लगाता है।

अमेरिका भारत से अपने कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाजारों तक अधिक पहुंच बनाने की मांग कर रहा है। हालांकि, भारत ने इस मांग का लगातार विरोध किया है, यह कहते हुए कि ऐसा करने से देश के करोड़ों किसानों की आजीविका पर संकट आ जाएगा। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का लगभग 16 प्रतिशत हिस्सा है और यह देश की 1. 4 अरब आबादी के लगभग आधे हिस्से की आजीविका का आधार है।

टैरिफ का कारण और अमेरिकी मांगें

अमेरिकी प्रशासन का आरोप है कि भारत कृषि उत्पादों पर औसतन 39 प्रतिशत ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (एमएफएन) शुल्क लगाता है, जबकि अमेरिका में यह दर केवल 5 प्रतिशत है। कुछ मामलों में यह शुल्क 50 प्रतिशत तक भी पहुंच जाता है। अमेरिका चाहता है कि भारत मक्का, सोयाबीन, गेहूं, इथेनॉल, डेयरी, शराब, वाहन, फार्मा और चिकित्सा उपकरणों जैसे क्षेत्रों में अपने बाजार को और अधिक खोले।

अमेरिका में बड़े खेतों को बाजार में न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप के जरिये सीधे आय भुगतान मिलता है, जबकि भारत में यह मदद मुख्य रूप से सब्सिडी वाले उत्पादों, सार्वजनिक खरीद और खाद्य वितरण योजनाओं के माध्यम से दी जाती है। अमेरिकी कृषि विभाग अपने किसानों को कई तरह की सब्सिडी देता है, जिससे उनके कृषि उत्पादों की कीमतें काफी कम रहती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिकी किसानों को प्रति वर्ष औसतन 61,000 डॉलर की सब्सिडी मिलती है, जबकि भारतीय किसानों को केवल 282 डॉलर।

अमेरिका इन कम दामों के सहारे दूसरे देशों में अपने कृषि उत्पादों को “डंप” करने की कोशिश करता है, जिससे उन देशों के घरेलू किसानों को नुकसान हो सकता है। भारत ने विशेष रूप से जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों के आयात का विरोध किया है, क्योंकि भारत में इन पर प्रतिबंध है, जबकि अमेरिका में मक्का और सोयाबीन का अधिकांश उत्पादन जीएम आधारित है।

भारत का रुख और प्राथमिकताएं

भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी दबाव में या समय सीमा के तहत व्यापार समझौते नहीं करता है, और किसानों, डेयरी तथा कृषि उद्योग के हितों से समझौता करने की कोई गुंजाइश नहीं है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत विभिन्न देशों के साथ व्यापार समझौतों पर बातचीत करते समय राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा।

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए 25 प्रतिशत टैरिफ वृद्धि भारतीय बाजारों के लिए “बिल्कुल भी चिंताजनक नहीं है”। भारत सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि वह किसी भी व्यापार समझौते में कृषि, डेयरी और आनुवंशिक रूप से संवर्धित (जीएम) खाद्य उत्पादों पर कोई शुल्क रियायत नहीं देगा।

भारत का यह रुख उसके किसानों की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा नीतियों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है, और भारत के 80 प्रतिशत किसान खेती और पशुपालन दोनों से जुड़े हैं, ऐसे में डेयरी सेक्टर को खोलना “आत्मघाती कदम” साबित हो सकता है।

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और सब्सिडी का मुद्दा

विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत, विकासशील देशों को कुछ फसलों में रियायत और सब्सिडी दी गई थी ताकि उन्हें विकसित देशों द्वारा फसल आयात की “डंपिंग” से बचाया जा सके। डब्ल्यूटीओ कृषि समिति समझौते के कार्यान्वयन की देखरेख करती है और सदस्यों को संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए एक मंच प्रदान करती है।

भारत डब्ल्यूटीओ के ‘कृषि पर समझौते’ में असंतुलन की ओर संकेत करता रहा है, यह दावा करते हुए कि यह विकसित देशों के पक्ष में है। भारत G-33 का एक हिस्सा है, जो 47 विकासशील और अल्पविकसित देशों का समूह है। यह समूह डब्ल्यूटीओ वार्ताओं में विकासशील देशों के लिए विशेष नियम प्रस्तावित करता है, जैसे कि उन्हें अपने कृषि बाजारों तक पहुंच को प्रतिबंधित करना जारी रखने की अनुमति देना।

भारतीय किसान संगठन लंबे समय से डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलने की मांग करते आ रहे हैं, उनका दावा है कि डब्ल्यूटीओ की नीतियां भारतीय किसानों के अनुकूल नहीं हैं और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी इसके बिना नहीं मिल सकती। डब्ल्यूटीओ सब्सिडी देने को गलत मानता है, यह मानते हुए कि ज्यादा सब्सिडी देने से अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ता है।

क्षेत्र/मुद्दाअमेरिका की मांगेंभारत का रुख
कृषि बाजार पहुंचमक्का, सोयाबीन, गेहूं और अन्य कृषि उत्पादों पर टैरिफ कम करनाघरेलू किसानों की आजीविका की रक्षा के लिए इनकार
डेयरी बाजार पहुंचडेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार खोलनाआत्मघाती कदम मानते हुए इनकार
जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलेंजीएम फसलों के आयात की अनुमतिभारत में प्रतिबंध के कारण इनकार
टैरिफभारत द्वारा लगाए गए उच्च कृषि टैरिफ कम करना (औसतन 39%)राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए टैरिफ बनाए रखना

व्यापक निहितार्थ और आगे की राह

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता जारी रहने की उम्मीद है, और अगस्त के अंत तक व्यापार वार्ता के अगले दौर के लिए एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत आ रहा है। भारत सरकार ने यह भी कहा है कि वह अमेरिका पर जवाबी टैरिफ नहीं लगाएगा, बल्कि बातचीत की मेज पर ही समाधान निकालेगा।

इस गतिरोध के बावजूद, भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और किसानों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। हाल ही में संपन्न भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) किसानों, व्यापारियों, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई), युवा पेशेवरों और मछुआरों को “अपार अवसर और लाभ” प्रदान करने वाला साबित हुआ है। भारत का लक्ष्य अपनी कृषि निर्यात नीति के तहत कृषि निर्यातों को दोगुना करना है, जो वर्तमान में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2022 तक 60+ बिलियन अमेरिकी डॉलर और आगामी कुछ वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाना है। इसके लिए उच्च मूल्य और मूल्य वर्धित निर्यातों में वृद्धि के साथ शीघ्र खराब होने वाले उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

भारत की आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा का यह रुख बताता है कि वह अमेरिकी दबाव के बावजूद अपनी नीतियों पर अडिग रहेगा, जैसा कि उसने पहले भी कई मौकों पर किया है, जैसे कि 1974 और 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद लगे प्रतिबंधों के दौरान।

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