फ्री बस, फ्री बिजली… लेकिन कौन देगा बिल? संजीव सान्याल का डराने वाला सच

Freebies vs Welfare India: ANI को दिए एक इंटरव्यू में संजीव सान्याल ने कहा कि किसी भी जोखिम उठाने वाली अर्थव्यवस्था में सामाजिक सुरक्षा जाल (Safety Net) बेहद जरूरी होता है. “जहां जोखिम है, वहां असफलता भी तय है.

By Abhishek Pandey | December 28, 2025 10:30 AM

Freebies vs Welfare India: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के सदस्य संजीव सान्याल ने हाल ही में वेलफेयर योजनाओं और राजनीतिक “फ्रीबीज” के बीच स्पष्ट फर्क करते हुए सरकारों को सतर्क रहने की सलाह दी है. उनका कहना है कि गलत तरीके से दी जाने वाली सब्सिडी और उदार पेंशन योजनाएं भविष्य की पीढ़ियों पर भारी वित्तीय बोझ डाल सकती हैं.

ANI को दिए एक इंटरव्यू में संजीव सान्याल ने कहा कि किसी भी जोखिम उठाने वाली अर्थव्यवस्था में सामाजिक सुरक्षा जाल (Safety Net) बेहद जरूरी होता है. “जहां जोखिम है, वहां असफलता भी तय है. चाहे स्टार्टअप हो या एक छोटी किराना दुकान, हर स्तर पर जोखिम मौजूद है. ऐसे में जो लोग फिसल जाते हैं, उनके लिए समाज को सुरक्षा जाल देना ही चाहिए,”.

गरीबों को ऊपर चढ़ने की सीढ़ी मिलनी चाहिए

संजीव सान्याल ने साफ किया कि वे गरीबों को मिलने वाली मदद के खिलाफ नहीं हैं. “मैं इस बात के पक्ष में हूं कि गरीब वर्ग को कुछ सुविधाएं दी जाएं ताकि उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिले. मुझे इससे कोई समस्या नहीं है,” उन्होंने कहा. हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि सिर्फ आर्थिक विकास के भरोसे यह मान लेना गलत है कि सभी लोग अपने आप ऊपर आ जाएंगे.

‘ट्रिकल-डाउन’ को चाहिए सहारा

सान्याल के मुताबिक, ट्रिकल-डाउन थ्योरी काम करती है, लेकिन सभी तक नहीं पहुंचती. “विकास का लाभ नीचे तक पहुंचता है, लेकिन हर किसी तक नहीं. इसलिए हमें ‘असिस्टेड ट्रिकल-डाउन’ की जरूरत है, यानी ऐसे रास्ते बनाने होंगे, जिनसे लोग ऊपर चढ़ सकें और जो खुद नहीं चढ़ पा रहे हैं, उनकी मदद की जाए,”

यूनिवर्सल फ्रीबीज पर सवाल

संजीव सान्याल ने बिना लक्ष्य तय किए दी जाने वाली फ्री सुविधाओं पर नाराजगी जताई. उदाहरण देते हुए उन्होंने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा जैसी योजनाओं पर सवाल उठाया. “यह टारगेटेड नहीं है. सार्वजनिक परिवहन में गरीब पुरुष भी उतना ही हकदार है जितनी कोई महिला. ये योजनाएं अच्छी तरह डिजाइन की गई वेलफेयर नहीं, बल्कि फ्रीबीज हैं,” उनका तर्क था कि सब्सिडी आर्थिक जरूरत के आधार पर होनी चाहिए, न कि सिर्फ पहचान (जेंडर या वर्ग) के आधार पर.

पुरानी पेंशन योजनाएं बन सकती हैं बड़ा खतरा

संजीव सान्याल ने पुरानी उदार पेंशन योजनाओं (Old Pension Scheme) को लेकर गंभीर चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि ऐसी योजनाएं भविष्य में सरकारी खजाने को खोखला कर सकती हैं. “आप असल में अगली पीढ़ी पर भारी देनदारी डाल रहे हैं,” सान्याल ने बताया कि भारत की वर्किंग-एज आबादी लगभग 25 साल बाद घटने लगेगी. ऐसे में मौजूदा कमाई से पेंशन चुकाने वाली योजनाएं असंतुलित हो जाएंगी. “जब काम करने वालों की संख्या घटेगी और पेंशन लेने वालों की संख्या बढ़ेगी, तो सिस्टम टिक नहीं पाएगा,”.

यूरोप से सबक लेने की जरूरत

उन्होंने यूरोप का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां बुजुर्ग आबादी के बढ़ने से पेंशन सिस्टम पर भारी दबाव है. “कई यूरोपीय देशों में रिटायरमेंट की उम्र 70 या 75 तक बढ़ाई जा रही है. फ्रांस में आज पेंशन पाने वालों की संख्या काम करने वालों से ज्यादा है,” सान्याल ने कहा.
संजीव सान्याल ने युवा सरकारी कर्मचारियों को भी आगाह किया कि वे पुरानी पेंशन योजनाओं पर आंख मूंदकर भरोसा न करें. “आप 35 साल तक टैक्स देंगे, लेकिन जब आपकी बारी आएगी, तब सिस्टम में पैसे ही न हों. गणित साफ कहता है कि यह मॉडल काम नहीं करता,”.

Also Read: अगर ये 5 संकेत दिख रहे हैं, तो आप चुपचाप कर्ज के जाल में फंस चुके हैं

Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.