रेलबजट बन गया इतिहास, जानिए कब और कैसे शुरू हुई विलय की बहस और क्या होगा लाभ?

नयी दिल्ली : आैपनिवेशिक काल की 92 साल पुरानी अलग रेल बजट पेश किये जाने की परंपरा अब इतिहास बन गयी. वर्ष 2017 में अब अलग से रेल बजट पेश नहीं किया जायेगा, बल्कि आम बजट में ही वह शामिल होगा. केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसका एलान किया और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2016 1:47 PM

नयी दिल्ली : आैपनिवेशिक काल की 92 साल पुरानी अलग रेल बजट पेश किये जाने की परंपरा अब इतिहास बन गयी. वर्ष 2017 में अब अलग से रेल बजट पेश नहीं किया जायेगा, बल्कि आम बजट में ही वह शामिल होगा. केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसका एलान किया और भरोसा दिलाया कि रेलवे की स्वायत्ता कायम रहेगी. उन्होंने यह भी कहा कि विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए फरवरी के आरंभ में बजट पेश किया जा सकता है. हालांकि उन्होंने वित्तवर्ष की तारीखों में बदलाव की संभावना को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है. वहीं, रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने इस फैसले को रेलवे के हित में बताया. उन्होंने कहा कि रेलवे के वित्तीय अधिकार हासिल रहेंगे और इसकी विभागीय पहचान कायम रहेगी.

भले ही नरेंद्र मोदी सरकार ने यह फैसला नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय की कमेटी की सिफारिश पर लिया हो, लेकिन इसकी नींव आज से छह साल पहले ही केंद्रीय प्रशासनिक पंजाब यानी कैट के एक जजमेंट से पड़ गयी थी, जब पंजाट की पटना बेंच ने एक मामले की सुनवाई करते हुए दो अलग-अलग बजट पेश किये जाने पर ही सवाल उठा दिया था और कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत लोक लेखा को दो अलग-अलग बजटों में पेश किये जाने का कोई प्रावधान नहीं है. तब कैट की न्यायमूर्ति अनवर अहमद और सुधीर कुमार की दो सदस्यीय पीठ ने रेलवे के एक सेवानिवृत्त अधिकारी के पेंशन मामले की सुनवाई करते दो अलग-अलग बजट पेश किये जाने को राज्यों के अधिकार का भी हनन बताया था, क्योंकि इस प्रक्रिया से उससे रेलवे द्वारा अर्जित राजस्व में हिस्सा नहीं मिल पाता. दरअसल, रेलवे का राजस्व रेलवे के ढांचागत सुधार के लिए एक अहम मुद्दा भी है. रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने बीते दिनों ने कहा था कि रेल की समिति ने रेलवे लाभांश वित्तमंत्रालय को नहीं देने की सिफारिश की है आैर हम चाहते हैं कि चार-पांच साल यह लाभांश नहीं दें.

संभव है कि प्रभु के द्वारा पूर्व में कही गयी इस बात पर प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय व रेल मंत्रालय में सहमति बनी हो. हालांकि रेल बजट के आम बजट में विलय से उसके निगमीकरण की प्रक्रिया जहां आगे बढ़ेगी, वहीं खुद के खर्च के बोझ को ढोने की उसकी विवशता भी खत्म होगी.


जून में प्रभु नेजेटली को लिखा था पत्र

रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने इस साल जून में वित्तमंत्री अरुण जेटली को पत्र लिख कर आम बजट में रेल बजट का विलय करने की मांग की थी. रेल मंत्रालय का मानना रहा है कि इससे उसकी सेहत दुरुस्त होगी. रेलवे को अभी 34, 000 करोड़ रुपये यात्री खंड से होता है और उसकी आय भी घट रही है. इतना ही नहीं 458 अधूरी और चालू परियोजनाओं के क्रियान्वयन की दिशा में 4,83,511 करोड़ रुपये का कुल बोझ भी उस पर है. अब रेल बजट का आम बजट में विलय हो जाने पर यह सारा बोझ वित्त मंत्रालय के ऊपर आ जायेगा.

किराया में संशोधन का हक

दोनों बजटों के विलय के बाद बहुत सारे मुद्दे ऐसे हैं जिस पर धीरे-धीरे स्पष्टता आयेगी. लेकिन, दोनों मंत्रालयों के बीच इस बात पर सहमति है कि आगे किराये में संशोधन रेल विकास प्राधिकरण द्वारा ही किया जाएगा. इसके साथ ही रेलवे को नयी परियोजनाओं, ट्रेनों और विस्तार से संबंधित योजनाओं की घोषणा की पूरी स्वायत्तता होगी. संभवत: रेलवे की बाजार से उधारी लेने की आजादी भी कायम रहेगी.

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