PFC और REC में फिलहाल नहीं हो सकता विलय, जानिये क्या है कारण…?

नयी दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र की रूरल इलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन (आरईसी) का पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) के साथ विलय को झटका लगा है. निकट भविष्य में यह विलय होने की संभावना नहीं है. इसका कारण यह है कि दोनों का विलय रिजर्व बैंक के गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के निवेश पर नियमों का उल्लंघन होगा. रिजर्व […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 30, 2020 9:38 PM

नयी दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र की रूरल इलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन (आरईसी) का पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) के साथ विलय को झटका लगा है. निकट भविष्य में यह विलय होने की संभावना नहीं है. इसका कारण यह है कि दोनों का विलय रिजर्व बैंक के गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के निवेश पर नियमों का उल्लंघन होगा.

रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार, किसी एनबीएफसी का किसी परियोजना में निवेश 25 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता है. पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) और आरईसी के विलय के बाद बनने वाली इकाई का किसी मौजूदा परियोजना में निवेश 25 फीसदी की सीमा को पार करेगा, क्योंकि दोनों कंपनियां बिजली क्षेत्र की परियोजनाओं का वित्तपोषण कर रही हैं. विलय के बाद नयी इकाई को किसी भी परियोजना में अपना निवेश 25 फीसदी से नीचे लाना होगा, जो संभवत: व्यावहारिक नहीं होगा.

इस बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि आरईसी का पीएफसी के साथ विलय निकट भविष्य में होने की संभावना कम है. इसका कारण एनबीएफसी के निवेश को लेकर आरबीआई का नियम है. विलय के बाद बनने वाली इकाई के लिए किसी परियोजना के वित्तपोषण की क्षमता आधी हो जायेगी. अलग-अलग इकाई के रूप में वे किसी परियोजना में 50 फीसदी तक (25 फीसदी-25 फीसदी) तक वित्त पोषण कर सकते हैं. विलय के बाद यह घटकर आधी हो जायेगी.

पीएफसी ने मार्च, 2019 में आरईसी की बहुलांश हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था. इसके लिए कंपनी ने सरकार को 14,500 करोड़ रुपये दिये. उसे उम्मीद थी कि विलय 2019-20 में हो जायेगा. पीएफसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक राजीव शर्मा ने कहा कि हमने सरकार को पैसा दे दिया है. अब सरकार को विलय के बारे में निर्णय करना है.

इससे पहले शर्मा ने कहा था कि हम दोनों कंपनियों (पीएफसी और आरईसी) के 2019-20 में विलय की उम्मीद कर रहे हैं. हमें सरकार ने इस संदर्भ में निर्देश लेने हैं और उसके बाद हम इसके लिये परामर्शदाता नियुक्त करेंगे. सूत्रों के अनुसार, पीएफसी ने इस सौदे को पूरा करने के लिए 7.25 फीसदी ब्याज पर राशि जुटायी है, जबकि उसने बिजली क्षेत्र की परियोजनाओं के वित्त पोषण को लेकर केवल 4.25 फीसदी ब्याज पर राशि जुटायी है. उसका कहना है कि सौदे से पीएफसी के लाभ पर असर पड़ा है, क्योंकि उसे सरकार के विनिवेश के वित्तपोषण को लेकर उच्च दर पर बाजार से राशि लेनी पड़ी.

मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने रणनीतिक बिक्री के तहत आरईसी में सरकार की चुकता शेयर पूंजी की 52.63 फीसदी हिस्सेदारी बेचने को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी. यह हिस्सेदारी प्रबंधन नियंत्रण के साथ पीएफसी को बेची जानी थी. पीएफसी ने प्रबंधन नियंत्रण के साथ सरकार के 103.94 करोड़ शेयर (52.63 फीसदी) का अधिग्रहण किया था. इसके लिए उसने 139.50 रुपये प्रति शेयर के भाव पर 14,500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था. कंपनी ने अधिग्रहण के लिए 70 फीसदी राशि नकद प्रवाह और शेष 30 फीसदी कर्ज से जुटाया था.

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