लोन डिफॉल्टर के भी होते हैं कुछ अधिकार, जानें

कर्ज लेने और उसको चुकाने के लिए काफी प्लानिंग की जाती है. बैंक और एनबीएफसी भी कर्ज देने से पहले लंबी प्रक्रिया से गुजरते हैं. लेकिन जीवन में होने वाली कई तरह की घटनाओं की वजह से कभी-कभी लोन समय पर चुकाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में बैंक व एनबीएफसी एक समय के बाद […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 20, 2020 9:44 AM
कर्ज लेने और उसको चुकाने के लिए काफी प्लानिंग की जाती है. बैंक और एनबीएफसी भी कर्ज देने से पहले लंबी प्रक्रिया से गुजरते हैं. लेकिन जीवन में होने वाली कई तरह की घटनाओं की वजह से कभी-कभी लोन समय पर चुकाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में बैंक व एनबीएफसी एक समय के बाद उस कर्ज को एनपीए घोषित कर उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर देती है. इसके लिए भी कानून में व्यवस्था दी गयी है. और यही कानून कर्ज लेनेवाले के भी मददगार साबित होती है क्योंकि इसमें उसके लिए भी कुछ अधिकार दिये गये हैं.
नोटिस प्राप्त करने का अधिकार
कर्ज को एनपीए के रूप में घोषित करने के बाद बैंक को 60 दिनों की नोटिस जारी करते हुए कर्ज लेने वाले को यह अवसर देना होता है वे खुद को बैंक के समक्ष पेश हो. इसके बाद ही कोई कानूनी कार्रवाई शुरू हो सकती है. इसके बाद जमा की गयी सिक्युरिटी को बेचने से पहले बैंक को 30 दिनों की एक और नोटिस जारी करनी होती है, जो 60 दिन के अतिरिक्त होता है.
उचित मूल्य सुनिश्चित किये जाने का अधिकार
बैंक में जमा की गयी सिक्युरिटी को बेचने के लिए 30 दिनों की नोटिस में बैंक को यह बताना जरूरी है कि वे उस सिक्युरिटी का क्या मूल्य तय कर रहे हैं, जैसा कि उनकी टीम ने बताया है. अगर कर्ज लेनेवाला को लगता है कि यह मूल्य बाजार के मूल्य की तुलना में कम है तो वह इससे बेहतर ऑफर पेश करते हुए बैंक के ऑफर पर विरोध जताते हुए रोक लगा सकता है.
शेष राशि प्राप्त करना
सिक्युरिटी को बेचने के बाद अगर कर्ज की राशि के अतिरिक्त राशि बचती है तो बैंक को उस राशि में से निर्धारित शुल्क को काट कर बची हुई राशि को कर्ज लेनेवाले के खाते में जमा करना होगा.
अपनी बात कहने का अधिकार
कर्ज लेनेवाले का यह अधिकार होता है कि वह जारी किये गये नोटिस का जवाब देने के लिए बैंक के सामने प्रस्तुत हो. उसे इससे कोई नहीं रोक सकता.
अच्छा व्यवहार प्राप्त करने का अधिकार
लोन डिफॉल्टर के साथ बैंक गलत व्यवहार नहीं कर सकते. बैंक के किसी भी तरह का गलत आचरण के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का अधिकार कर्ज लेनेवाले के पास होता है. वह उस बैंक पर मामला दर्ज करा सकता है.

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