डेब्ट फंडों में समझदारी से करें निवेश

ललित त्रिपाठी, निदेशक, वेदांत एसेट्स अभी आरबीआइ द्वारा की गयी रेट कटौती सांकेतिक रूप से एक अच्छी खबर है. पर ब्याज दरों का नीचे आना कठिन है क्योंकि जहां इस चुनावी वर्ष में फायदे के लिए ऋण माफी व डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर का असर मंहगाई बढ़ानेवाला होगा. इसकी वजह से इनफ्लेशन ऊपर रहने की संभावना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 11, 2019 8:12 AM
ललित त्रिपाठी, निदेशक, वेदांत एसेट्स
अभी आरबीआइ द्वारा की गयी रेट कटौती सांकेतिक रूप से एक अच्छी खबर है. पर ब्याज दरों का नीचे आना कठिन है क्योंकि जहां इस चुनावी वर्ष में फायदे के लिए ऋण माफी व डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर का असर मंहगाई बढ़ानेवाला होगा. इसकी वजह से इनफ्लेशन ऊपर रहने की संभावना बनी रहेगी और बैंकों के ब्याज दरों में आनेवाले समय में बढ़ोत्तरी होने की प्रबल संभावना भी रहेगी.
भारत में म्यूचुअल फंड का डेब्ट मार्केट लगभग सात लाख करोड़ का है और यह ऋण के हिसाब से कंपनियों को बॉन्ड के माध्यम से पैसे देने वाली देश की तीसरी सबसे बड़ी संस्था है.
इसलिए जिस तरह बैंकों में एनपीए का खतरा बना रहता है और बढ़ रहा है, उसी प्रकार म्यूचुअल फंड के डेब्ट स्कीम पर कंपनियों के डिफाल्ट और रीरेटिंग होने की संभावनाएं बनी रहती है और पिछले कुछ महीनों में ऐसा कुछ होता हुआ नजर भी आ रहा है जैसे कि आइएलएफएस, एमटेक ऑटो, आर कॉम आदि डिफाल्ट हुई हैं. इसका सीधा असर म्यूचुअल फंड के डेब्ट स्कीम के रिटर्न पर पड़ता है और इसका सीधा नुकसान निवेशकों को उठाना पड़ता है. इसलिए छोटे व वैसे निवेशक जो डेब्ट फंड में निवेश करना चाहते हैं, उन्हें आनेवाले समय में बढ़ती हुई मंहगाई दर, ब्याज दर और कंपनियों के डिफाल्ट व रीरेटिंग की वजह से लॉन्ग टर्म डेब्ट फंड, जैसे कि इनकम फंड, बॉन्ड फंड में सावधानी से निवेश करना हितकारी रहेगा.
लिक्विड व शाॅर्ट टर्म फंड में निवेश बेहतर
वैसे निवेशक जो इक्विटी का रिस्क लेना नहीं चाहते, उनके लिए आनेवाले समय में लिक्विड फंड और शॉर्ट टर्म फंड में निवेश करना एक समझदारी भरा कदम होगा क्योंकि कम परिपक्वता अवधि वाले पेपर होने की वजह से ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव का असर इसमें ज्यादा नहीं होता. क्रेडिट डिफाल्ट होने की स्थिति में आनेवाले दो से तीन वर्ष तक के लिए डेब्ट फंड में निवेश चुनौतीपूर्ण रहेगा. वैसे निवेशक जो तीन वर्षों से इनकम फंड, बॉन्ड फंड या गिल्ट फंड में बने हुए हैं, उन्हें प्रॉफिट बुक कर लेना चाहिए या शॉर्ट टर्म या लिक्विड फंड में स्विच कर लेना चाहिए.
मिड कैप और स्मॉल कैप म्यूचुअल फंड के निवेशक बने रहें
पिछले डेढ़ दो सालों में निवेशकों को लार्ज कैप फंड्स में काफी अच्छा रिटर्न आया है. वहीं मिड कैप और स्मॉल कैप फंड्स में 40 से 50 फीसदी गिरावट देखने को मिली है. और इन परिस्थितियों में मिड कैप और स्मॉल कैप म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले लोग सशंकित हैं.
उनके लिए अच्छी खबर यह है कि वैल्यूएशन के हिसाब से यह सेक्टर अपने सही स्तर पर वापस आ गया है. बहुत सालों से भारतीय कंपनियों में वैल्यूएशन तो अच्छे थे मगर उनकी आय जिसे कॉरपोरेट अर्निंग ग्रोथ कहा जाता है, वह नहीं आ रहा था. अच्छी बात यह है कि अब कॉरपोरेट अर्निंग ग्रोथ आने लगा है. इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि निर्माण क्षेत्र (मैनुफैक्चरिंग सेक्टर) आनेवाले समय में तेजी देखने को मिलेगी.
चूंकि भारत में निर्माण क्षेत्र से जुड़ी अधिकांश कंपनियां या तो मिड कैप या स्मॉल कैप में है. इसलिए अभी मार्केट की रैली पुन: मिड कैप व स्मॉल कैप में होगी. इसलिए पहले से बने हुए निवेशकों को बने रहना चाहिए या फिर अगले कुछ समय तक एसआइपी या एसटीपी के माध्यम से निवेश करते रहना चाहिए क्योंकि इसमें आनेवाले समय में अच्छे रिटर्न की संभावना बनी रहेगी.

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