दावा : दिवाला कानून से दो साल में 3 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज का हुआ समाधान

नयी दिल्ली : दिवाला कानून लागू होने के बाद से पिछले दो साल के दौरान प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से 3 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज का समाधान करने में मदद मिली है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी. दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता सहिंता (आईबीसी) के तहत समाधान के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 24, 2018 4:49 PM

नयी दिल्ली : दिवाला कानून लागू होने के बाद से पिछले दो साल के दौरान प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से 3 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज का समाधान करने में मदद मिली है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी. दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता सहिंता (आईबीसी) के तहत समाधान के लिए अब तक 9,000 से अधिक मामले आये हैं. इस कानून को दिसंबर 2016 में लागू किया गया.

कॉरपोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास ने कहा कि आईबीसी का करीब तीन लाख करोड़ रुपये की फंसी परिसंपत्तियों पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से असर हुआ है और फंसे कर्ज के समाधान में मदद मिली है. इस राशि में समाधान योजना के माध्यम से हुई वसूली और राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष आने से पहले निपटाये गये मामलों से प्राप्त राशि भी शामिल की गयी है.

उन्होंने कहा कि 3,500 से अधिक मामलों को एनसीएलटी में लाने से पहले ही सुलझा लिया गया. नीतजतन, 1.2 लाख करोड़ रुपये के दावों का निपटारा हुआ. आईबीसी के तहत एनसीएलटी से अनुमति के बाद ही मामले को समाधान के लिए आगे बढ़ाया जाता है. श्रीनिवास ने कहा कि करीब 1,300 मामलों को समाधान के लिए रखा गया और इनमें से 400 के आसपास मामलों में कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. 60 मामलों में समाधान योजना को मंजूरी मिल गयी है, 240 मामलों में परिसमापन के आदेश दिये गये हैं, जबकि 126 मामलों में अपील की गयी है. इन मामलों में से जिनका समाधान हो गया, उनसे अब तक 71,000 करोड़ रुपये की वसूली हुई है.

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आईबीसी के तहत परिपक्वता के चरण में पहुंच चुके मामलों में 50,000 करोड़ रुपये और मिल जाने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि कानून की समाधान प्रक्रिया के तहत प्राप्त राशि और जल्द मिलने वाली राशि को यदि जोड़ लिया जाये, तो कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये आये हैं. इसमें यदि एनसीएलटी प्रक्रिया में आने से पहले ही सुलझा लिये गये मामलों को भी जोड़ दिया जाये, तो यह राशि 2.4 लाख करोड़ रुपये हो जायेगी.

सचिव ने जोर देते हुए कहा कि जिन खातों में मूल और ब्याज की किस्त आनी बंद हो गयी थी और वह गैर-मानक खातों में तब्दील हो गये थे. कानून लागू होने के बाद इनमें से कई खातों में किस्त और ब्याज आने लेगा और ये खाते एनपीए से बदलकर स्टैंडर्ड खाते हो गये. ऐसे खातों में कर्जदार ने बकाये का भुगतान किया है. यह राशि 45,000 से 50,000 करोड़ रुपये के दायरे में है.

उन्होंने कहा कि इस प्रकार करीब तीन लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज पर आईबीसी का सीधा या परोक्ष असर हुआ है. भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एमएस साहू ने कहा कि इस तरह का सुझाव नहीं दिया जा सकता है कि सभी तरह की समस्याओं के समाधान के लिए केवल आईबीसी पर ही निर्भर रहा जाये. आईबीसी के तहत सभी पक्षों को अपनी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. कॉरपोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास और आईबीबीआई के चेयरपर्सन साहू दोनों यहां आयोजित समाधान प्रक्रिया में दक्षता सुनिश्चित करने पर आयोजित सम्मेलन में बोल रहे थे.

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