SBI के चेयरमैन ने दिया सुझाव, कंसोर्टियम के जरिये लोन देने में लानी चाहिए कमी

मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने सोमवार को कहा कि बैंकों के गठजोड़ या कंसोर्टियम से कर्ज देने में कमी लायी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस पर अत्यधिक निर्भरता की वजह से डूबा कर्ज बढ़ा है और ऋण आकलन में विलंब होता है. कुमार ने कहा कि गैर- निष्पादित […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 20, 2018 10:53 PM

मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने सोमवार को कहा कि बैंकों के गठजोड़ या कंसोर्टियम से कर्ज देने में कमी लायी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस पर अत्यधिक निर्भरता की वजह से डूबा कर्ज बढ़ा है और ऋण आकलन में विलंब होता है. कुमार ने कहा कि गैर- निष्पादित आस्तियां (एनपीए) इसलिए बढ़ती हैं कि बैंकर कर्ज लेने वाले व्यक्ति के पास सीबीआई या ईडी अधिकारी जैसी सोच के साथ नहीं, बल्कि भरोसे के साथ संपर्क करते हैं. बैंकिंग प्रणाली में डूबा कर्ज 12 फीसदी पर पहुंच गया है.

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उन्होंने कहा कि कंसोर्टियम में कर्ज देने से ऋण का जोखिम कम होने के बजाय परेशानी और बढ़ी है. इससे ऋण के आकलन में अनावश्यक देरी होती है, जिससे कई बार परियोजनाएं ही समाप्त हो जाती हैं. कंसोर्टियम कर्ज या बहु बैंकिंग प्रणाली की समस्याएं रेखांकित करते हुए कुमार ने कहा कि 90 के दशक के मध्य तक यह कंसोर्टियम बैंकिंग होता था, बाद में शिकायतें मिलने पर यह बहु- बैंकिंग हो गया. इससे निर्णय की प्रक्रिया तेज नहीं हुई, बल्कि एनपीए बढ़ा.

उन्होंने कंसोर्टियम का आकार कम करने का सुझाव देते हुए कहा कि छोटे कर्ज के लिए बहुत अधिक बैंकों को शामिल करने का कोई मतलब नहीं है. राष्ट्रीय बैंकिंग सम्मेलन के अवसर पर अलग से संवाददाताओं से बातचीत में कुमार ने कहा कि एसबीआई निश्चित रूप से कई कंर्सोटियम को पुनगठित करेगा.

उन्होंने कहा कि 500 करोड़ रुपये के कर्ज मामले में मैं समूह में कर्ज नहीं देना चाहता. मैं इसमें कुछ कर्ज ले सकता हूं और या फिर दूसरे सहायता समूह से बाहर हो सकता हूं. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय चाहता है कि कर्ज की जांच परख त्वरित हो, ताकि ऋण प्रवाह में तेजी आये और उद्योगों को मदद मिले. समूह से बाहर रहकर यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

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