Bathnaha Vidhaanasabha: जहां रुकी थी सीता की डोली, वहीं गूंजती है मिथिला की यादें

Bathnaha Vidhaanasabha: कल्पना कीजिए… बारात अयोध्या लौट रही है. सीता की डोली आगे बढ़ती है, लेकिन एक जगह आकर रुक जाती है. पास खड़े पाकर के वृक्ष की टहनी से सीता दातुन बनाती हैं और ज़मीन पर फेंक देती हैं. सदियों बाद वही टहनी पेड़ों का एक विशाल झुरमुट बन जाती है. यही वह स्थान है—पंथपाकर धाम, जहां मिथिला की आस्था और रामायण का इतिहास आज भी सांस लेता है.

By Pratyush Prashant | August 19, 2025 7:03 AM

Bathnaha Vidhaanasabha: बिहार के सीतामढ़ी जिले का पंथपाकर धाम सिर्फ़ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि मिथिला के इतिहास और साहित्य का जीवंत संगम है. मान्यता है कि विवाह के बाद माता सीता की डोली यहीं कुछ देर के लिए रुकी थी. उसी क्षण से यह स्थान पवित्र मान लिया गया और सदियों बाद भी यहां की मिट्टी रामायण की गाथा सुनाती है.

दिलचस्प है कि यही इलाका फणीश्वरनाथ रेणु की रचनाओं में भी झलकता है, जहाँ मिथिला की लोककथाएँ और जनजीवन बड़े कैन्वस पर उभरते हैं.

डोली रुकी, जन्मी आस्था की परंपरा

सीतामढ़ी के बथनाहा प्रखंड में बसे इस स्थल की पहचान ही रामायण से जुड़ी है. मान्यता है कि विवाह के बाद जब जानकी अयोध्या के लिए चलीं तो उनकी डोली यहां कुछ समय के लिए ठहरी थी. ‘पंथ’ यानी मार्ग और ‘पाकर’ यानी स्थानीय वृक्ष. इसी संगम से बना नाम—पंथपाकर.

यही वह जगह है जहां श्रद्धा और कथा का संगम हुआ. जहां सीता ने दातुन बनाई और उसकी टहनी ज़मीन में रोप दी. आज वही टहनी विशाल पाकर के पेड़ों का जंगल बन चुकी है. गुंथी हुई डालें मानो अतीत का जीवित सबूत हों.

राम-परशुराम संवाद की भूमि

पंथपाकर धाम केवल डोली रुकने का स्थल नहीं, बल्कि रामायण की एक और महत्वपूर्ण घटना का साक्षी है. मान्यता है कि यहीं पहली बार भगवान राम और महर्षि परशुराम का संवाद हुआ था. शिव धनुष टूटने की कथा सुनकर क्रोधित परशुराम ने राम से भेंट की थी. यह भेंट धर्म, मर्यादा और वीरता का अनुपम उदाहरण मानी जाती है, जिसने मिथिला-अवध के इस संगम को इतिहास में स्थायी स्थान दिला दिया.

आधुनिक रूप लेता पंथपाकर

सदियों पुरानी इस आस्था को नया रूप देने की तैयारी भी शुरू हो गई है. बिहार सरकार ने 24 करोड़ रुपये की विकास योजना की घोषणा की है. मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण, धर्मशाला, स्वच्छ पेयजल, सौर ऊर्जा से प्रकाशित मार्ग, पार्किंग स्थल, डिजिटल सूचना केंद्र और सांस्कृतिक प्रदर्शनी हॉल—इन सबके निर्माण से यह धाम रामायण सर्किट का अहम पड़ाव बनेगा.

रेणु की नज़र से बथनाहा

पंथपाकर धाम जिस बथनाहा प्रखंड में है, वही जगह साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास मैला आँचल में भी दर्ज है. रेणु की विशेषता यही थी कि उन्होंने छोटे-से-छोटे कस्बे और गाँव को इतना जीवंत लिखा कि वह दुनिया के सामने परिचित लगने लगे.

उपन्यास में फ़ारबिसगंज के उत्तर के छोटे कस्बे बथनाहा का जिक्र है और वहीं से जुड़ा है रामलाल बाबू का चरित्र. रेणु लिखते हैं—“बोलता है कि गांधीजी ने रामलाल बाबू को नोआखाली बुलाया है… जब वे गाकर रमैनी(रामायण)पढ़ते हैं तो सुनने वालों की आँखें भर आती हैं.”

रामलाल बाबू हकीकत में भी उतने ही जीवंत थे. गांधीजी को जेल में रामायण सुनाने वाले इस व्यक्तित्व ने राजनीति और साहित्य दोनों के बीच अपनी पहचान बनाई.

मिथिला की मिट्टी, आस्था और साहित्य का संगम

एक तरफ़ वह स्थान जहां सीता की डोली ठहरी और पाकर वृक्ष पनपे. दूसरी तरफ़ वही धरती, जहां रेणु ने गाँव-कस्बों को साहित्य के कैन्वस पर उतार दिया. बथनाहा और पंथपाकर धाम केवल भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि मिथिला की सांस्कृतिक विरासत और स्मृतियों का जीवंत संगम हैं.

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