विकास की राह पर बिम्सटेक: सदस्य देशों में बढ़ेगी राजनीतिक स्थिरता

संजय भारद्वाज, दक्षिण एशिया मामलों के जानकार पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमाओं से लगे देशों पर भारत का ध्यान बीते दो दशक से लगा हुआ है और ये सीमाई देश बिम्सटेक के सदस्य हैं. ये हैं- बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान और नेपाल. अच्छी बात यह है कि ये देश संसाधनपूर्ण हैं और इनके साथ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 2, 2018 11:27 AM

संजय भारद्वाज, दक्षिण एशिया मामलों के जानकार

पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमाओं से लगे देशों पर भारत का ध्यान बीते दो दशक से लगा हुआ है और ये सीमाई देश बिम्सटेक के सदस्य हैं. ये हैं- बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान और नेपाल. अच्छी बात यह है कि ये देश संसाधनपूर्ण हैं और इनके साथ सहयोग का अर्थ ही विकास को एक नया आयाम देना. भारत की कोशिश भी यही है. नेपाल और भूटान के पास जहां जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है, तो वहीं बांग्लादेश और म्यांमार के पास नेचुरल गैस का भंडार है. ऐसे में अगर इनके साथ भारत अगर सहयोग बढ़ाता है, तो इन पूर्वी देशों के विकास में गति आयेगी. इसीलिए भारत अपने पूर्वी राज्यों की समाओं से लगे देशों के विकास पर बल देता रहता है, ताकि आर्थिक स्थितियां मजबूत कर व्यापारिक रिश्तों को मजबूत बनाया जाये.

बिम्सटेक सदस्य देशों की जनसंख्या 1.6 बिलियन है, जो वैश्विक जनसंख्या का 22 प्रतिशत है. इन सदस्य देशों की जीडीपी 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है. जाहिर है, हर देश के बीच आपसी पारस्परिक संबंधों से ही विकास का रास्ता तय होगा. दूसरी बात यह है कि इन सदस्य देशों की जीडीपी ग्रोथ औसतन 3.5 से 7.5 के बीच रहती है, और निरंतर विकास और आर्थिक समृद्धि के लिए जरूरी है कि इस ग्रोथ को बढ़ाया जाये. इसके लिए जरूरी यह है कि ये देश एक-दूसरे के साथ आर्थिक और व्यापारिक सहयोग की नयी परिभाषाएं गढ़ें. इन देशों में भारत को आिर्थक एकीकरण के लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं दिखती है, एक सार्थक और लाभकारी व्यापारिक सहयोग दिखता है, सांस्कृतिक और आधारभूत संरचना का तारतम्य दिखता है और बड़ी बात यह कि व्यापार एवं सेवा क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग दिखता है. इसीलिए भारत के लिए बिम्सटेक का जितना ज्यादा महत्व है, उतना सार्क का नहीं है, क्योंकि सार्क के साथ कई चुनौतियां जुड़ी हुई हैं.

अक्सर लोग अपनी अवधारणा के तहत यह कह देते हैं कि अगर इन देशों के बीच सहयोग सार्थक नहीं हुए, तो बिम्सटेक की हालत भी सार्क जैसी ही हो जायेगी और ये शिखर सम्मेलन अप्रासंगिक हो जायेंगे. मेरे ख्याल में ऐसा नहीं होगा, क्योंकि सार्क के मुकाबले बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच चुनौतियां नहीं हैं या फिर बहुत कम हैं. जबकि सार्क में बहुत ज्यादा चुनौतियां हैं. भारत और बिम्सटेक देशों के बीच द्विपक्षीय विवाद नहीं है, जैसा कि भारत-पाकिस्तान या भारत-चीन के बीच है, इसलिए इनके बीच किसी भी साझी परियोजना में कहीं कोई दिक्कत नहीं आनी है. वर्तमान में भी इन बिम्सटेक देशों के बीच कई आधारभूत संरचना वाली परियोजनाएं चल रही हैं और इनके पूरा होते ही इनके बीच सहयोग की एक नयी इबारत नजर आयेगी. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल में हुए बिम्सटेक सम्मेलन में जिस तरह से आतंकवाद से लड़ने को लेकर आपसी सहमति के साथ सहयोग के लिए तैयारी दिखी, वह बहुत जरूरी था. क्योंकि ये सभी देश किसी न किसी तरह से आतंकवाद से पीड़ित हैं और इनके बीच सुरक्षा के मुद्दे को अहम होना जरूरी था, है और आगे भी रहना चाहिए. यही वजह है कि देशों की बाहरी-आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे को लेकर बिम्सटेक सम्मेलन में दिखी प्राथमिकता इन देशों के बीच सहयोग न सिर्फ एक नया आयाम गढ़ेगा, बल्कि साथ ही साथ इनमें राजनीतिक स्थिरता भी आयेगी. यह चीज विकास के लिए बहुत जरूरी है कि देशों के बीच पारस्परिक संबंधों के साथ राजनीतिक स्थिरता बढ़ी रहे.

पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमाओं से लगे देशों पर भारत का ध्यान बीते दो दशक से लगा हुआ है और ये सीमाई देश बिम्सटेक के सदस्य हैं. ये हैं- बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान और नेपाल. अच्छी बात यह है कि ये देश संसाधनपूर्ण हैं और इनके साथ सहयोग का अर्थ ही विकास को एक नया आयाम देना. भारत की कोशिश भी यही है. नेपाल और भूटान के पास जहां जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है, तो वहीं बांग्लादेश और म्यांमार के पास नेचुरल गैस का भंडार है. ऐसे में अगर इनके साथ भारत अगर सहयोग बढ़ाता है, तो इन पूर्वी देशों के विकास में गति आयेगी. इसीलिए भारत अपने पूर्वी राज्यों की समाओं से लगे देशों के विकास पर बल देता रहता है, ताकि आर्थिक स्थितियां मजबूत कर व्यापारिक रिश्तों को मजबूत बनाया जाये.

बिम्सटेक सदस्य देशों की जनसंख्या 1.6 बिलियन है, जो वैश्विक जनसंख्या का 22 प्रतिशत है. इन सदस्य देशों की जीडीपी 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है. जाहिर है, हर देश के बीच आपसी पारस्परिक संबंधों से ही विकास का रास्ता तय होगा. दूसरी बात यह है कि इन सदस्य देशों की जीडीपी ग्रोथ औसतन 3.5 से 7.5 के बीच रहती है, और निरंतर विकास और आर्थिक समृद्धि के लिए जरूरी है कि इस ग्रोथ को बढ़ाया जाये. इसके लिए जरूरी यह है कि ये देश एक-दूसरे के साथ आर्थिक और व्यापारिक सहयोग की नयी परिभाषाएं गढ़ें. इन देशों में भारत को आिर्थक एकीकरण के लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं दिखती है, एक सार्थक और लाभकारी व्यापारिक सहयोग दिखता है, सांस्कृतिक और आधारभूत संरचना का तारतम्य दिखता है और बड़ी बात यह कि व्यापार एवं सेवा क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग दिखता है. इसीलिए भारत के लिए बिम्सटेक का जितना ज्यादा महत्व है, उतना सार्क का नहीं है, क्योंकि सार्क के साथ कई चुनौतियां जुड़ी हुई हैं.

अक्सर लोग अपनी अवधारणा के तहत यह कह देते हैं कि अगर इन देशाें के बीच सहयोग सार्थक नहीं हुए, तो बिम्सटेक की हालत भी सार्क जैसी ही हो जायेगी और ये शिखर सम्मेलन अप्रासंगिक हो जायेंगे. मेरे ख्याल में ऐसा नहीं होगा, क्योंकि सार्क के मुकाबले बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच चुनौतियां नहीं हैं या फिर बहुत कम हैं. जबकि सार्क में बहुत ज्यादा चुनौतियां हैं.

भारत और बिम्सटेक देशों के बीच द्विपक्षीय विवाद नहीं है, जैसा कि भारत-पाकिस्तान या भारत-चीन के बीच है, इसलिए इनके बीच किसी भी साझी परियोजना में कहीं कोई दिक्कत नहीं आनी है. वर्तमान में भी इन बिम्सटेक देशों के बीच कई आधारभूत संरचना वाली परियोजनाएं चल रही हैं और इनके पूरा होते ही इनके बीच सहयोग की एक नयी इबारत नजर आयेगी. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल में हुए बिम्सटेक सम्मेलन में जिस तरह से आतंकवाद से लड़ने को लेकर आपसी सहमति के साथ सहयोग के लिए तैयारी दिखी, वह बहुत जरूरी था. क्योंकि ये सभी देश किसी न किसी तरह से आतंकवाद से पीड़ित हैं और इनके बीच सुरक्षा के मुद्दे को अहम होना जरूरी था, है और आगे भी रहना चाहिए. यही वजह है कि देशों की बाहरी-आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे को लेकर बिम्सटेक सम्मेलन में दिखी प्राथमिकता इन देशों के बीच सहयोग न सिर्फ एक नया आयाम गढ़ेगा, बल्कि साथ ही साथ इनमें राजनीतिक स्थिरता भी आयेगी. यह चीज विकास के लिए बहुत जरूरी है कि देशों के बीच पारस्परिक संबंधों के साथ राजनीतिक स्थिरता बढ़ी रहे.

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