अटल जी : नक्षत्रों के बीच ध्रुवतारे
वे जितने कोमल थे, समयानुसार उतने ही कठोर भी. राष्ट्रीय सुरक्षा की मांग पर भारत को सामरिक महाशक्ति बनाने के लिए, वैश्विक महाशक्तियों के निषेध के बावजूद परमाणु परीक्षण कराया. उनका कूटनीतिक कौशल्य ऐसा रहा कि परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगाये गये वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों असर देश पर नहीं होने दिया.
वर्ष 1983 की होली से पूर्व अटल जी को पटना के गांधी मैदान में पहली बार सुनने का अवसर मिला था. मैं विद्यार्थी परिषद के मित्रों के संग उन्हें देखने की ललक में हजारीबाग से पटना गया था. चौधरी चरण सिंह के लोकदल और भाजपा गठबंधन की विशाल जनसभा को वे संबोधित कर रहे थे. मैं विस्मित था- वे कविता में राजनीति कह रहे हैं, या राजनीति में कविता! भाषा संपूर्ण प्रांजलता के साथ जिसके समक्ष आत्मसमर्पण कर देती हो, वाक्य-विन्यास जिसकी वाणी के क्रीडांगन में झूमते हों, वाग्देवी सरस्वती की समस्त कलाएं जिसके कंठ से सरगम के सप्त- स्वरों में झड़ती हों, नटराज लाखों की भीड़ में जिसके अंग-प्रत्यंग पर नर्तन कर अद्भुत देह-बोली की सृष्टि करते हों, संसदीय पटुता जिसके समक्ष अंजलिबद्ध खड़ी हो जाती हो, पद और अलंकरण जिसे पाकर धन्य होते हों, प्रधानमंत्री पद पाकर भी जो शालीनता और आत्मीयता से विलग नही होता, ऐसे विराट व्यक्तित्व को कहते हैं- अटल बिहारी वाजपेयी.
पांच दशकों से अधिक कालावधि तक भारत के सार्वजनिक जीवन में उस वटवृक्ष की तरह वे छाये रहे, जिसकी छाया में संसदीय राजनीति मर्यादा एवं गरिमा के साथ आश्वस्ति और विश्रांति पाती रही. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक एवं प्रचारक से जिस शुचिता और प्रामाणिकता की अपेक्षा की जाती है, अटल जी उसके प्रतीक पुरुष थे. वे सार्वजनिक जीवन में उपमा, उपमेय और उपमान तीनों रहे. अपने समान स्वयं ही, अद्वितीय. वे सभाओं में श्रोताओं को कहकहों के बीच भावावेश के चरम पर ले जाते थे और संसद में घनगर्जना कर वैचारिक विरोधियों को रक्षात्मक होने पर विवश कर देते थे. लेकिन प्रतिपक्ष पर उनके हमले शिष्टाचार एवं मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के अंदर ही आह्लादकारी हुआ करते थे. सर्वविदित है कि पंडित नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी से लेकर सभी प्रधानमंत्री उनके कायल रहे. नरसिंह राव और चंद्रशेखर जैसे उनके वैचारिक विरोधी भी उन्हें ‘गुरु’ कहकर सम्मान देते थे क्योंकि अटल जी की राजनीति स्वयं के लिए नहीं, राष्ट्र के लिए रही.
आपातकाल की समाप्ति के बाद दिल्ली में विपक्ष की संयुक्त रैली में अटल जी के भाषण को सुनकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उद्गार व्यक्त किया, ‘अटल जी की जिह्वा पर सरस्वती बसती है.’ वे विदेश मंत्री के नाते तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ सद्भावना यात्रा पर सोवियत संघ गये थे. मास्को की सभा में वे अधिनायकवादी सोवियत कम्युनिस्ट व्यवस्था को लोकतंत्र की नसीहत पिला आये थे. वहां जब प्रधानमंत्री देसाई से बोलने का आग्रह किया गया, तो उन्होंने मीठी शिकायत के लहजे में कहा, ‘यह मेरे साथ न्याय नहीं कि वाजपेयी के बाद मुझे बोलने कहा जाये.’ साल 1999 में प्रधानमंत्री के रूप में पाकिस्तानी दौरे पर लाहौर में उनके अभिभाषण का वहां के हुक्मरानों एवं साधारण अवाम पर जोरदार असर पड़ा था.
वे जितने कोमल थे, समयानुसार उतने ही कठोर भी. राष्ट्रीय सुरक्षा की मांग पर भारत को सामरिक महाशक्ति बनाने के लिए, वैश्विक महाशक्तियों के निषेध के बावजूद, उन्होंने परमाणु परीक्षण कराया. उनका कूटनीतिक कौशल्य ऐसा रहा कि परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगाये गये वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों का कोई विशेष असर देश पर नहीं होने दिया. और, दृढ़ता ऐसी कि 1999 में ‘कारगिल शरारत’ पर पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया. बाद में वार्ता के लिए आगरा पहुंचे पाक राष्ट्रपति जेनरल मुशर्रफ को औकात बता दी थी. पूर्व में नरसिंह राव सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र भेजे गये प्रतिनिधि मंडल के नेता के रूप में वे दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर देश की आवाज बने थे और कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीय के पाक के प्रयासों को मिट्टी में मिला दिया था. राजनेता के रूप में वे गांधी के ‘अंतिम जन’ से गहरी सहानुभूति रखने वाले पंडित दीनदयाल के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं ‘अंत्योदय’ से अनुप्राणित तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’, जिसे उन्होंने ‘समग्र क्रांति’ का नया नाम दिया था, के प्रबल आग्रही रहे. इन विचार-सूत्रों को जोड़ते हुए उन्होंने भाजपा को सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिए संघर्ष की राह पर अग्रसर कर समाज के सभी वर्गों में स्वीकार्य बनाया था. अटल जी की जन्मशती शुरू हो रही है. वर्तमान पीढ़ी को शायद ही इस पर विश्वास हो कि राजनीति की सोलहों कलाओं से संपन्न, जनता के दिलों पर राज करनेवाला एक ऐसा राजनेता इस देश में हुआ था. जिन्होंने उन्हें निकट से देखा है, उन्हें पता है कि वे आज की पीढ़ी के लिए किंवदंती हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)