शिल्पांचल में दम तोड़ रहा है स्क्रीन प्रिंटिंग का व्यवसाय दो दशक का कारोबार, अब सिमट रहा बाजार

नीरज श्रीवास्तव, दुर्गापुर : शिल्पांचल में स्क्रीन की ‘सुनहरी’ छपाई पर आधुनिक मशीनों की ‘धुंध’ छा गई है. काम न मिलने से शहर में इस कारोबार से जुड़े सैकड़ों लोगों पर बेरोजगारी का शिकंजा कसता जा रहा है. कुछ ने काम समेट लिया है तो कुछ आक्सीजन के सहारे चल रहे हैं. दुर्गापुर व इसके […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 17, 2020 6:51 AM
नीरज श्रीवास्तव, दुर्गापुर : शिल्पांचल में स्क्रीन की ‘सुनहरी’ छपाई पर आधुनिक मशीनों की ‘धुंध’ छा गई है. काम न मिलने से शहर में इस कारोबार से जुड़े सैकड़ों लोगों पर बेरोजगारी का शिकंजा कसता जा रहा है. कुछ ने काम समेट लिया है तो कुछ आक्सीजन के सहारे चल रहे हैं. दुर्गापुर व इसके आसपास के इलाके में नब्बे के दशक मे स्क्रीन प्रिंटिंग कारोबार की नींव पड़ी थी.
पुराने ट्रेडिल मशीन के जमाने में यह एक सरल और बेहतर छपाई की विधि होने के कारण थोड़े दिन में बेहतर छपाई पर काम बढ़ा और एक स्क्रीन प्रिंटर साल भर में एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई करने लगा.
व्यक्तिगत कार्य हो या कारोबारी सभी में स्क्रीन प्रिंटिंग की मांग देखी जाने लगी. चाहे शादी विवाह का निमंत्रण पत्र हो या कारोबार के लिए पैड, विजिटिंग कार्ड, इंभेलप सभी कार्यो में स्क्रीन प्रिंटिंग का बखूबी इस्तेमाल होता था.
दो दशक तक स्क्रीन की छपाई हर आम और खास व्यक्ति की पसंदीदा रही. वक्त बदलने के साथ शहर व इसके आसपास के इलाके में लगी आधुनिक डिजिटल मशीनों के आगे यह फीकी पड़ने लगी. डिजिटल मशीन द्वारा कम समय में उन्नत किस्म की छपाई हो जाती है. जबकि स्क्रीन प्रिंटिंग के लिए समय देने की जरूरत होती है.
जिसके कारण लोगों का रुझान धीरे धीरे स्क्रीन प्रिंटिंग की ओर से कमता जा रहा है. इन हालातों के कारण कुछ साल पहले तक शहर में तकरीबन दो सौ स्क्रीन प्रिंटर्स थे. जिनके सहारे कई लोगों का जीवन यापन होता था. पर अब ग्राहकों का रुझान कम होने से व्यवसाय संकट में है.
इस व्यवसाय से जुड़े काजल गोस्वामी, तपन गोराई बताते हैं कि दो साल पहले तक शहर में सैकड़ों स्क्रीन प्रिंटर्स थे. पर धीरे-धीरे संख्या घट रही है. काम नहीं मिलने से लोग दूसरे व्यवसाय की तरफ मुड़ गए हैं. फिलवक्त आधी से कम संख्या में लोग इस व्यवसाय के साथ जुड़े है.
व्यवसाय से जुड़े काजल गोस्वामी ने कहा कि शहर में डिजिटल मशीन की बढ़ती संख्या के कारण स्क्रीन प्रिंटिंग का व्यवसाय काफी हद तक प्रभावित हुआ है. डिजिटल मशीन ने आधी से अधिक बाजार पर अपना कब्जा जमा लिया है. वहीं इस व्यवसाय में प्रयोग में आने वाले सामानों के दामों में भी हो रहे इजाफा को भी इस व्यवसाय की बदहाली का कारण बताया.
उन्होंने कहा कि स्याही की दरों में दो से ढाई गुणा का इजाफा, केमिकल और कपड़े के दामों में बेतहाशा वृद्धि ने इस व्यवसाय के साथ जुड़े लोगों की कमर तोड़ कर रख दी. उन्होंने कहा कि व्यवसाय के साथ जुड़े सामानों के दामों में बढ़ोतरी हो रही है. लेकिन ग्राहकों द्वारा रेट नहीं बढ़ाए जाने से दिक्कतें बढ़ गई हैं. बाजार में टिकना मुश्किल हो गया है.
कई लोगों ने इन हालत को देखते हुए इससे अपना मुंह मोड़ लिया. वहीं उन्होंने सरकार के डिजिटलाइजेशन और ऑनलाइन कार्यो को भी एक बड़ा कारण बताया. व्यवसाय से जुड़े तपन गोराई ने कहा कि ऑनलाइन काम होने के कारण व्यापार और कार्यालय में पैड और बिल की मांग कम गई है. लोग अब कंप्यूटर के सहारे अपना सारे काम कर ले रहे हैं. जिससे उनका काम प्रभावित हो रहा है. लोग इस व्यवसाय से मुंह मोड़ने लगे हैं.

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