श्री श्री दादाजी महाराज के जन्मोत्सव पर दादाबाड़ी में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

गुरु जन्मोत्सव पर शिष्यों के लिए मंत्र जाप अनंत फलदायी : दादाजी महाराज कोलकाता : पूजनीय संत शिवकल्प महायोगी श्री श्री दादाजी जी महाराज का 61वां जन्मदिवस बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया गया. अलग-अलग राज्यों एवं विदेशों से शिष्यों ने कोलकाता पहुंच कर अपने परम पूज्य गुरुदेव की पूजा-अर्चना कर खुद को धन्य […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 18, 2019 2:21 AM

गुरु जन्मोत्सव पर शिष्यों के लिए मंत्र जाप अनंत फलदायी : दादाजी महाराज

कोलकाता : पूजनीय संत शिवकल्प महायोगी श्री श्री दादाजी जी महाराज का 61वां जन्मदिवस बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया गया. अलग-अलग राज्यों एवं विदेशों से शिष्यों ने कोलकाता पहुंच कर अपने परम पूज्य गुरुदेव की पूजा-अर्चना कर खुद को धन्य किया, जहां वरिष्ठ व मध्य आयुवाले शिष्यों ने अपने गुरुदेव के चरण पूजन कर उन्हें जन्मदिन की भक्ति समर्पित की, वहीं दूसरी ओर युवा वर्ग के शिष्यों ने अपने परम आराध्य गुरुदेव के द्वारा केक कटवा कर अपनी भक्ति व श्रद्धा दर्शायी.

इस अवसर पर जन्मसिद्ध ठाकुर श्री श्री बालक ब्रह्मचारी महाराज से दीक्षित-शिष्य और स्नेहधारा से सिंचित एवं महायोगी लाहिड़ी-बाबा (बाकसाड़ा) और सचिदानंद सोसाइटी के प्रतिष्ठाता ब्रह्म पुरुष स्वानुभव-देव श्री श्री बाबा ठाकुर के स्नेह धन्य पुत्र-तुल्य श्री दादाजी महाराज श्री श्री दादाजी महाराज ने एक शिष्य के जीवन में एक वर्ष में आनेवाले दो पर्व एक गुरु पूर्णिमा और दूसरा अपने परम आराध्य सद्गुरुदेव का अविर्भाव दिवस (जन्मदिन) का महत्व बताते हुए अपने सारगर्भित उपदेश में कहा कि इन दोनों दिनों पर हर शिष्य को अपने गुरुदेव द्वारा प्रदत्त दीक्षा मंत्र को लाखों की संख्या में जपना चाहिए, क्योंकि इन दोनों दिन उस जप का फल दस गुना बढ़ जाता है और ऐसा करनेवालों पर असीम गुरु कृपामृत बरसती है. उन्होंने कहा कि इस दिन ही परमात्मा द्वारा आप लोगों के लिए नियुक्त गुरुशक्ति का अविर्भाव धरा पर होता है और इस दिन वह शक्ति विशेष जागृत एवं वरदायी मुद्रा में रहती हैं, ऐसा शाे में भी वर्णित हैं.

महाराजश्री ने कहा कि सर्वप्रथम आपको, किसी से भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके प्रति समर्पित होना होगा. ज्ञान का सही अर्थ हुआ, प्रकृति का ज्ञान, अपने स्वयं का ज्ञान यानि स्वयं एवं प्रकृति के बीच का संबंध और इसे आध्यात्मिक भाषा में कहे तो मानव-प्रकृति के संबंध को जानना ही है ज्ञान. मनुष्य अज्ञानी है, ज्ञान के अभाव के कारण ही वो चारो ओर सब कुछ नष्ट करने के लिए दौड़ रहा है. उसके इतना कुछ नष्ट करने के बाद भी प्रकृति अपने मूल रूप में सब कुछ वापस ले आती है.

इसका मतलब यह है कि यदि आप कठिनाइयों और दुःखों के समय विरोधाभाषी स्थितियों में धीरज और सहिष्णुता का अभ्यास करते हैं तो अंत में आप ही विजेता बन कर सामने आते हैं. संध्या में भजन समारोह एवं भोग प्राप्ति के साथ हजारों शिष्यों व भक्तों ने खुद को कृतार्थ किया. इस अवसर पर सुबह से ही यहां पर साधकों, शिष्यों व श्रद्धालुओं का तांता लग गया और अपने सद्गुरु के दर्शन के लिए यह क्रम दिनभर चलता रहा.

Next Article

Exit mobile version