कोलकाता : कैसे बचायें उन मासूमों की जान दुविधा में हैं गुनाह करनेवाले

अलीपुर सेंट्रल जेल अब तक सलाखों में साथ देने के कारण जिंदगी का हिस्सा बन गये थे वे नन्हें मासूम नये आशियाने में जाने के कारण तीन सौ बिल्लियों की जान को खतरा जेल प्रबंधन निजी एनजीओ से कर रहे संपर्क, लेकिन मदद को आगे नहीं आ रहा कोई हाथ विकास गुप्ता, कोलकाता : गुनाहों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 11, 2019 2:35 AM

अलीपुर सेंट्रल जेल

  • अब तक सलाखों में साथ देने के कारण जिंदगी का हिस्सा बन गये थे वे नन्हें मासूम
  • नये आशियाने में जाने के कारण तीन सौ बिल्लियों की जान को खतरा
  • जेल प्रबंधन निजी एनजीओ से कर रहे संपर्क, लेकिन मदद को आगे नहीं आ रहा कोई हाथ
विकास गुप्ता, कोलकाता :
गुनाहों की दुनिया में रहने के बाद अब जेल की सलाखों में पश्चाताप के दिन गुजारनेवाले कैदी इन दिनों उदास, चिंतित व दु:खी रहने को मजबूर हैं. अबतक सलाखों में अकेलेपन में साथ देने के कारण जिंदगी का अहम हिस्सा बनने के कारण उन तीन सौ से अधिक नन्हे मासूमों के जान की चिंता उन कैदियों को हर पल सता रही है. इन दिनों अलीपुर सेंट्रल जेल का कुछ ऐसा ही आलम है. कुछ राजनीतिक कैदियों ने आगे आकर जेल प्रबंधन से इन प्राण को बचाने का आवेदन किया है. जेल सूत्रों के मुताबिक अलीपुर सेंट्रल जेल में तीन सौ से अधिक बिल्लियां मौजूद हैं.
जेल के अंदर विभिन्न वार्ड में रहनेवाले कैदियों के साथ वे रहती हैं. कैदी अपने खाने से रोजाना भोजन बचाकर उन बिल्लियों को खिलाकर उन्हें पाल रहे हैं. शुरुआत में बिल्लियों की संख्या 25 से 50 के करीब थीं, जो बढ़कर समय के साथ तीन सौ से ज्यादा हो चुकी हैं. वार्ड में अकेले रहनेवाले कुछ कैदी तो ऐसे हैं, जिनके साथ वार्ड में बिल्लियां कुछ इस कदर घुल-मिल गयी हैं कि वे कैदी अब इन बिल्लियों को अपने जीवन का अहम हिस्सा मान चुके हैं.
कुछ बिल्लियों को साथ ले जाना चाहते हैं कैदी
जेल सूत्रों के मुताबिक अलीपुर सेंट्रल जेल में प्रसून चटर्जी व सचिन घोषाल ऐसे राजनीतिक कैदी हैं, जो अपने साथ बारुइपुर जेल कुछ बिल्लियों को ले जाना चाहते हैं. चुमकी नामक एक बिल्ली को वह अपनी संतान मान चुके हैं, लिहाजा वे जेल प्रबंधन को पत्र लिखकर बिल्लियों को साथ ले जाना चाहते हैं. वहीं एपीडीआर की तरफ से भी बिल्लियों को सुरक्षित स्थान पर ले जाकर रखने के लिए जेल प्रबंधन को पत्र लिखा गया है.
ऊंची दीवारों में कैद होकर रह जाना होगी उनकी बाध्यता
एपीडीआर के तरफ से रंजीत सूर का कहना है कि अलीपुर सेंट्रल जेल की दीवारें काफी ऊंची है, इन दीवारों के अंदर कैद बिल्लियां दीवार फांदकर कहीं और भाग भी नहीं सकतीं, क्योंकि जेल खाली होने पर खाना के अभाव में उनके जान की आशंका है. इसके कारण इन बिल्लियों को कैदियों के साथ नये जेल में भेजा जाये. बाकी बचे बिल्लियों को किसी एनजीओ व कोलकाता नगर निगम के हवाले कर दिया जाये, जिससे उनकी जिंदगी बचायी जा सके.
क्या कहते हैं जेल अधिकारी
अलीपुर जेल के एक अधिकारी ने बताया कि यह सच है कि समय के साथ जेल में बिल्लियों की संख्या काफी बढ़ गयी है, अभी इसकी संख्या तकरीबन तीन सौ से ज्यादा है. इन बिल्लियों के लिए कुछ एनजीओ से संपर्क किया गया था, लेकिन इनकी संख्या काफी ज्यादा होने के कारण इसे अपने साथ ले जाने से इनकार कर दिये. अन्य एनजीओ भी इसे अपनाने में रुचि नहीं दिखायी है. जेल के कैदियों के पत्र के आधार पर कुछ बिल्लियों को कैदियों के साथ बारुइपुर जेल भेजा गया है. बाकी बचे बिल्लियों का क्या किया जाये, इस बारे में वरिष्ठ अधिकारी अथवा मंत्री को पत्र लिखकर वे इस समस्या को उनकी नजर में लायेंगे.
क्या है पूरा मामला
महानगर के अलीपुर सेंट्रल जेल को खाली करने का काम इन दिनों जोरशोर से चल रहा है. सजाप्राप्त, विचाराधीन व राजनीतिक कैदियों को मिलाकर अबतक इन जेलों में दो हजार से ज्यादा कैदी रहते थे. जिनमें से आधे से ज्यादा को दक्षिण 24 परगना के बारुइपुर जेल में भेजा गया है. अन्य बाकी को राज्यभर के विभिन्न जेलों में भेजने की प्रक्रिया जारी है. इन कैदियों के साथ जेल के अंदर विभिन्न वार्ड में तीन सौ से अधिक बिल्लियां भी रहती हैं. जो कुछ ही दिनों में अकेली पड़नेवाली है. इन्हें बचाने को लेकर कैदियों में कशमकश जारी है.

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