नॉनवेज फूड की खपत में बंगाल देश में दूसरे स्थान पर, 98.7 % पुरुष व 98.4 % महिलाएं हैं मांसाहारी

II शिव कुमार राउत II कोलकाता : बंगाल विशेष तौर पर रसगुल्ला और माछेर झोल-भात (मछली-भात) के लिए जाना जाता है. लेकिन शहरीकरण और जल प्रदूषण से मछलियों की आमद में कमी आयी है. इसका असर मछलियों के दाम पर पड़ा है. ऐसे में मछलियों के विकल्प के रूप में चिकन व मटन खाने का […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 7, 2018 7:28 AM
II शिव कुमार राउत II
कोलकाता : बंगाल विशेष तौर पर रसगुल्ला और माछेर झोल-भात (मछली-भात) के लिए जाना जाता है. लेकिन शहरीकरण और जल प्रदूषण से मछलियों की आमद में कमी आयी है. इसका असर मछलियों के दाम पर पड़ा है. ऐसे में मछलियों के विकल्प के रूप में चिकन व मटन खाने का चलन बढ़ा हैं.
बंगाल में चिकन हर उम्र के लोगों का पसंदीदा नॉनवेज फूड के रूप में उभरा है. नॉनवेज के प्रति लोगों के क्रेज को देखते हुए जब इसकी पड़ताल की गयी, तो चैंकानेवाला आंकड़ा सामने आया.
रजिस्ट्रार जनरल अॉफ इंडिया के सर्वे के अनुसार भारत के 21 राज्यों में नॉनवेज खाने के मामले में बंगाल दूसरे नंबर पर है. वहीं आंध्र प्रदेश पहले स्थान पर है. सैंपल सर्वे के आंकड़ों से पता चला कि बंगाल में करीब 98.7 फीसदी पुरुष तथा 98.4 फीसदी महिलाएं मांसाहारी हैं. वहीं, मात्र 1.3 फीसदी पुरुष तथा 1.6 फीसदी महिलाएं शाकाहारी हैं.
लेकिन इन दिनों राज्य में चिकन व मटन में कुत्ते-बिल्लियों के मांस को मिला कर बेचे जाने से मांसाहार प्रेमी दशहत में हैं और होटल, रेस्तरां व फुटपाथ पर चिकन व मटन से बनी रेसिपी खाने में सावधानी बरत रहे हैं. लोग मछली खाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि चिकन व मटन में मिल रही गड़बड़ियों से घर का बजट ही बिगड़ गया है, क्योंकि बाजार में मांग बढ़ने से मछली के दाम में भी बढ़ोतरी हुई है.
बंगाल में 98.7 % पुरुष व 98.4 % महिलाएं हैं मांसाहारी
हरकत में आया प्रशासन
कुत्ते-बिल्लियों के मांस सहित सड़े-गले चिकन-मटन की सप्लाई से प्रशासन की भी नींद उड़ी हुई है. हालांकि कोलकाता नगर निगम पहले ही महानगर के चिकन-मटन को दोषमुक्त बता चुका है. निगम के स्वास्थ्य विभाग की ओर से महानगर में बोरो स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है. नामी-गिरामी होटलों व रेस्तरां का औचक निरीक्षण भी किया जा रहा है. कुछ संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है. चिड़ियाघर भी संदेह के घेरे में है.
पश्चिम बंगाल मीट कंट्रोल आॅर्डर, 1966 का उल्लंघन
प बंगाल मीट कंट्रोल आॅर्डर, 1966 में यह साफ-साफ कहा गया है कि मांस का मतलब वैसे जानवरों के मांस से है, जिनका उपयोग भोजन के तौर पर किया जाता है. लेकिन हाल के दिनों में कुत्ते-बिल्लियों का मांस धड़ल्ले से बाजार में बेचा जाना बंगाल मीट कंट्रोल के निर्देशों का उल्लंघन करना है.
मांस की गुणवत्ता की जांच के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है. मांस विक्रेताओं तथा नामी होटल व रेस्तरां से मीट के सैंपल संग्रह किये जा रहे हैं, ताकि किसी भी व्यक्ति की सेहत से खिलवाड़ न हो.
अतिन घोष, मेयर परिषद सदस्य (स्वास्थ्य), कोलकाता नगर निगम
आमतौर पर बिल्ली, सुअर व भेड़ में टॉक्सो प्लाज्मा सिस्ट पाया जाता है. इन जानवरों के मांस खाने से टॉक्सो प्लाज्मा सिस्ट के कारण ब्रेन, किडनी व लिवर प्रभावित होता है. इसके अलावा बुखार व इंसेफेलाइटिस की भी समस्या हो सकती है. इसलिए फास्ट फूड या होटल-रेस्तरां में मांसाहार भोजन से परहेज करें, क्योंकि वहां इसे अच्छे से पकाया नहीं जाता है. घर पर भी मांस को अच्छे से पका कर ही खायें. इससे उसमें पाये जानेवाले जीवाणु नष्ट हो जाते हैं.
डॉ सजल विश्वास व डॉ कुंतल माइती
होटल व्यवसायी चिकन व मटन पंजीकृत विक्रेता से ही खरीदें. मीट विक्रेता के पास भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का लाइसेंस होना चािहए. लैब में समय- समय पर उसकी गुणवत्ता की भी जांच करवायें.
सुदेश पोद्दार, अध्यक्ष, होटल एंड रेस्टोरेंट्स एसोसिएशन अॉफ इस्टर्न इंडिया

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