ब्रिटिश शासनकाल में बना था पूर्वी भारत का पहला गैस संचालित शवदाह गृह, अंतिम संस्कार के लिए बने गृह की ही अंत्येष्टि

कोलकाता: ब्रिटिश शासनकाल में बना पूर्वी भारत का पहला गैस संचालित शवदाह गृह अब कूड़ादान बन गया है. शवदाह गृह के लिए फ्रांस से गैस चूल्हा लाया गया था. यहां ईसाई के शव जलाये जाते थे. गैस की अनियमित आपूर्ति के कारण 1980 में बंद कर दिया गया. इसकी प्राचीनता एवं मकसद पर गौर करें […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 11, 2017 9:52 AM
कोलकाता: ब्रिटिश शासनकाल में बना पूर्वी भारत का पहला गैस संचालित शवदाह गृह अब कूड़ादान बन गया है. शवदाह गृह के लिए फ्रांस से गैस चूल्हा लाया गया था. यहां ईसाई के शव जलाये जाते थे. गैस की अनियमित आपूर्ति के कारण 1980 में बंद कर दिया गया. इसकी प्राचीनता एवं मकसद पर गौर करें तो यह शवदाह गृह अपने आप में एक मिसाल है और इतिहास भी. जो जगह पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकती है वह आज कोलकाता नगर निगम की उदासीनता के कारण कूड़ादान बन गयी है. पहली नजर में यह शवदाह गृह छोटा-सा चर्च लगता है. लाल रंग की छत, लंबी उठी हुयीं सीढ़ियां, बाहर की ओर खुलने वाली खिड़कियां आदि.
फ्रांस से खरीदा गया था चूल्हा
इस शवदाह गृह को क्रिश्चियन समुदाय के लोगों के अंतिम संस्कार के लिए बनाया गया था. गैस संचालित चूल्हा फ्रांस से खरीदा गया था, जो आज भी सुरक्षित है. कब्र के लिए जमीन के अभाव में इसे वैकल्पिक तौर पर बनाया गया था. क्रिश्चियन बेरिअल बोर्ड के अनुसार, ईसाईयों में भी अंतिम संस्कार करने की प्रथा है. जानकारी के अनुसार, ब्रिटिश साम्राज्य में कई ऐसे अंग्रेज अधिकारी थे जो कोलकाता (तब कलकत्ता) में रह कर कार्य करते थे. वे सिर्फ छुट्टियों‍ में अपने घर ब्रिटेन जाया करते थे. भारत में उनकी मौत होने पर शव को ब्रिटेन भेजने में काफी खर्च करना पड़ता था. चूकिं ईसाई धर्म में भी अंतिम संस्कार की मान्यता है, इसलिए मशीन को कोलकाता में लगाया गया. ऐसे अधिकारी जो अपनी मौत के बाद अपने जन्मस्थान पर ही दफन होना चाहते थे, उनके मरणोपरांत शव का अंतिम संस्कार कर उसकी राख संग्रह कर उनके देश भेज दिया जाता था. वहां राख को दफन किया जाता था. हिन्दू से ईसाई धर्म अपनेवाले लोगों के मरणोपरांत उनका शव यहां जलाया जाता था. प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ (सर) जगदीश चंद्र बसु का अंतिम संस्कार यहीं किया गया था.
वार्ड-60 में है शवदाह गृह
वार्ड नंबर-60 में 2, क्रीमेटोरियम स्ट्रीट में यह शवदाह गृह स्थित है. यह क्रिश्चियन बेरिअल बोर्ड (कोलकाता) के अधीन है. इस बोर्ड का गठन वर्ष 1881 में किया गया था. वर्ष 1902 में गैस संचालित शवदाह चूल्हा यहां लगाया गया था. उस वक्त देश में खुले में लकड़ी पर शव का अंतिम संस्कार किया जाता था.
आसपास के लोग फेंकते हैं कचरा
यह शवदाह गृह घनी आबादी वाले इलाके में स्थित है. आसपास कई इमारतें हैं, जहां रहनेवाले लोग यहां कचरा फेंक कर गंदगी फैला रहे हैं. बेरिअल बोर्ड द्वारा कई बार स्थानीय पार्षद को इस समस्या से अवगत कराया गया, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है. गंदगी के कारण ही शवदाह गृह की देखरेख के लिए नियुक्त कर्मचारी इस वर्ष मलेरिया की चपेट में आ गये थे.
पड़ताल करने पर ही समस्या का हल
शवदाह गृह मेरे वार्ड में नहीं, बल्कि वार्ड-61 में पड़ता है. बेरिअल बोर्ड को दोनों वार्ड के पार्षदों को समस्या बतानी चाहिए. संयुक्त रूप से जांच पड़ताल करने पर ही इस समस्या का हल निकल सकता है. इसके लिए पहल करने की जरूरत है.
कैसर जमील, पार्षद (वार्ड-60)
पार्षद से की गयी थी मांग, फायदा नहीं हुआ
लोग यहां कचरा न फेंके इसके लिए 60 नंबर वार्ड के पार्षद से कई बार उचित कदम उठाने की मांग की गयी, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. प्रशासन की तरफ से सख्त कदम नहीं उठाये जाने के कारण लोग बेझिझक वहां कचरा फेंक रहे हैं.
रंजय बोस, बेरिअल बोर्ड ऑफ कोलकाता के कार्यकारी सदस्य

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