Makar Sankranti: घुघुतिया बनाती है मकर संक्रांति को बेहद खास, जाने इस लोकपर्व की खासियत और जुदा अंदाज…

उत्तराखंड में मकर संक्रांति घुघतिया के नाम से मनाई जाती है, जिसे 'घुघती त्यार' या 'उत्तरैणी' भी बोलते हैं. लखनऊ सहित अन्य जनपदों में रहने वाले उत्तराखंड के मूल निवासियों ने रविवार को ये पर्व हर्षोल्लास से मनाया. घुघुतिया लोक पर्व की पहचान पकवानों से है.

By Prabhat Khabar | January 15, 2023 2:31 PM

Lucknow: मकर संक्रांति को लेकर पूरे देश में आस्था का माहौल चरम पर है. भोर से ही लोग नदियों में आस्था की डुबकी लगाकर पूजन अर्चन और दान कर रहे हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में ये पर्व स्थानीय परंपराओं और मान्यताओं के मुताबिक मनाया जा रहा है.

लखनऊ सहित अन्य जिलों में लोक पर्व की धूम

इन सबके बीच मकर संक्रांति के पर्व को देवभूमि उत्तराखंड का घुघतिया लोक पर्व बेहद खास मनाता है, जिसे न सिर्फ पूरा उत्तराखंड बल्कि देवभूमि से जुड़ा हर परिवार बेहद उत्साह से मनाता है. भले ही वह देश के किसी भी हिस्से में रहता हो. यूपी-उत्तराखण्ड कभी एक राज्य होने के कारण लखनऊ सहित अन्य जनपदों में रहने वाले उत्तराखंड के मूल निवासियों ने भी रविवार को ये पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया.

घुघती पर्व को लेकर ये कहावत है लोकप्रिय

दरअसल उत्तराखंड में मकर संक्रांति घुघतिया के नाम से मनाई जाती है, जिसे लोग लोक भाषा में ‘घुघती त्यार’ या ‘उत्तरैणी’ भी बोलते हैं. घुघतिया पकवान के लिहाज से मुख्य रूप से बच्चों का पर्व है. इस दिन कौवों की बड़ी पूछ होती है. उन्हें बुला बुलाकर पकवान खाने के लिए आमंत्रित किया जाता है. कुमाऊं में इसे लेकर एक कहावत भी कही जाती है, ‘न्यूती वामण और घुघतिक कौ’ यानी श्राद्धों या नवरात्रों में ब्राह्मण का मिलना और घुघती पर्व के दिन कौवे का मिलना एक समान है अर्थात बड़ा मुश्किल है.

इस तरह पकवान किए जाते हैं तैयार

सूर्य इस दिन से उत्तरायण हो जाता है, इसीलिए इसे स्थानीय बोलचाल में उत्तरैणी भी कहते हैं. इस दिन से ठंड घटनी शुरू हो जाती है, प्रवासी पक्षी जो कि ठण्ड के कारण गरम क्षेत्रों की और प्रवास कर गए थे, पहाड़ों की ओर लौटना शुरू करते हैं. इन्ही पंछियों के स्वागत का त्यौहार है घुघुतिया, जिसका नाम भी एक पहाड़ी चिड़िया के नाम पर है, जिसे कुमांऊनी में घुघुती कहते हैं.

Makar sankranti: घुघुतिया बनाती है मकर संक्रांति को बेहद खास, जाने इस लोकपर्व की खासियत और जुदा अंदाज... 3

घुघुतिया लोक पर्व की पहचान पकवानों से है. इस दिन आग के चारों ओर पूरा परिवार बैठता है और गुड़ और दूध में गुंथे हुए गेहूं के आटे से अनेक तरह की छोटी छोटी आकृतियां बनाई जाती हैं, जैसे तलवार, डमरू, ढाल, दाड़िम, शक्करपारा (कुमांऊनी में खजूर) आदि. इसके बाद धीमी आंच में इन्हें तेल में तलकर तैयार किया जाता है. बच्चों के लिए फल, मूंगफली, उड़द की दाल के बड़ा आदि के साथ इन आकृतियों की मालाएं बनायी जाती हैं. सबसे पहले भगवान का भोग लगाया जाता है.

कौवों को आवाज देकर किया जाता है आमंत्रित

इसके बाद कौवों का हिस्सा घर की छत, बालकनी या खुले स्थान पर रखा दिया जाता है. पकवानों की माला गले में लटकाये बच्चे ‘काले कौवा काले, घुघती माला खा ले’ कहकहकर कौवों को बुलाते हैं और पकवान खिलाते हैं. छोट बच्चे इन माला से पकवान तोड़कर बेहद चाव से खाते हैं. रविवार को उत्तराखंड से जुड़े परिवार इन पकवानों को बनाने में जुटे रहे. इस तरह ये पर्व पक्षियों के संरक्षण के तौर पर बेहद मायने रखता है. इस पर्व के पीछे ऐसा वातावरण बनाये रखने की शिक्षा है, जिसमें प्राकृतिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए पक्षियों की भी भरपूर मौजूदगी हो.

Makar sankranti: घुघुतिया बनाती है मकर संक्रांति को बेहद खास, जाने इस लोकपर्व की खासियत और जुदा अंदाज... 4
Also Read: मकर संक्रांति पर आज करें ये उपाय, बदलेगी किस्मत, दान का मिलेगा सौ गुना पुण्य… आधुनिक जीवनशैली के बावजूद जीवित है परंपरा

खास बात है कि देवभूमि के लोग आपस में इन पकवानों को एक दूसरे को भेंट करते हैं. जो बच्चे किसी कारणवश दूर रहते हैं. उनकी मां, दादी, नानी उनके लिए माला बनाकर सहेज कर रखती हैं, ताकि घर आने पर उन्हें पहनाकर खिला सकें या किसी के जरिए उन तक पहुंचा सके. लोगों की जीवनशैली भले ही कितनी आधुनिक हो गई हो. लेकिन, आज भी बड़े-बुजुर्ग इस परम्परा को निभा रहे हैं. इसके बाद ये लोक पर्व प्रायः माघ की खिचड़ी यानी काले मास की खिचड़ी खाने के साथ खत्म होता है.

कई स्थानों पर उत्तरायणी मेले का आयोजन

सूर्य के उत्तरायण होने के मौके पर अब लखनऊ, बरेली, नोएडा सहित विभिन्न हिस्सों में उत्तरायणी मेले का भी आयोजन किया जाने लगा है, जिसमें देवभूमि की संस्कृति के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं. इस दौरान लोक परंपराओं से जुड़े विभिन्न आयोजन, नृत्य प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं, वहीं देवभूमि से जुड़े खाद्य पदार्थों, कपड़े आदि के स्टॉल भी लगाए जाते हैं, जिनकी खरीदारी के लिए भीड़ उमड़ी रहती है.

Next Article

Exit mobile version