मरीजों की जान लेने पर आमादा है रिम्स प्रशासन, 150-200 लोगों को जमीन पर लिटा कर रहा इलाज

आश्वासनों के बावजूद भी रिम्स की व्यवस्था नहीं सुधर रही है, यहां पर इलाज कराने आये 150-200 मरीज बेड न होने के कारण जमीन पर इलाज कराने के लिए विवश है. सबसे बड़ी समस्या न्यूरो सर्जरी और हड्डी विभाग में है

By Prabhat Khabar | March 29, 2022 10:29 AM

रांची: तमाम आश्वासनों के बाद राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स की व्यवस्था में खास सुधार नहीं हो रहा़ यहां प्रतिदिन करीब 2000 मरीज ओपीडी में इलाज कराने आते हैं. वहीं वार्ड में भर्ती 1500- 1600 मरीजों का प्रतिदिन इलाज किया जाता है. हर दिन बेहतर और गुणवत्तापूर्ण इलाज की उम्मीद के साथ मरीज और उनके परिजन पहुंचते हैं, लेकिन बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण परेशानी होती है.

यहां तक कि मरीज फर्श पर इलाज कराने के लिए विवश हैं. यहां तक कि बरसात में भीग कर और गर्मी में तपिश के बीच इलाज कराना पड़ जाता है़ इसका कारण है कि इन मरीज और उनके परिजनों के पास सरकारी अस्पताल के रूप में दूसरा अन्य विकल्प भी नहीं है. हालांकि राजधानी में ही 500 बेड का सबसे बड़ा सदर अस्पताल है, लेकिन इसका बेहतर उपयोग नहीं हो पा रहा़ सदर अस्पताल काे संचालित करने और बेहतर चिकित्सा मुहैया कराने के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिलता है़ पढ़िए राजीव पांडेय की यह रिपोर्ट

सबसे बड़ी समस्या न्यूरो सर्जरी और हड्डी विभाग में

रिम्स में करीब 150 से 200 मरीजों काे फर्श पर इलाज कराना पड़ता है. सबसे बड़ी समस्या न्यूरो सर्जरी और हड्डी विभाग में है. यहां सालों भर मरीज फर्श पर अपना इलाज कराने को विवश हैं. न्यूराे सर्जरी वार्ड की गैलरी में भर्ती मरीजों के लिए राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में स्लाइन की बोतल टांगने के लिए स्टैंड तक नहीं है़ यहां तार के सहारे स्लाइन की बोतलें लगायी जाती है़ वह भी इसकी पूरी जिम्मेदारी मरीजों पर ही होती है़ यहां वैसे मरीजों का इलाज होता है, जो गंभीर अवस्था में होते है.

प्रबंधन की दलील. बेड क्षमता से अधिक मरीज

दूसरी तरफ इस अव्यवस्था के सवाल पर रिम्स प्रबंधन की दलील यही रहती है कि उनके पास बेड की क्षमता से ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं, इसलिए सबको बेड मुहैया कराना मुश्किल है़ रिम्स में आये मरीजों को एम्स की तरह लौटाया नहीं जा सकता है, इसलिए सबको भर्ती करनी पड़ती है़ वहीं हड्डी विभाग का हाल यह है कि यहां ऑपरेशन के लिए मरीजों को करीब छह महीनाें तक फर्श और बेड (उपलब्ध हाेने पर) भर्ती रहना पड़ता है.

रेडियोलॉजी विभाग की चारों अल्ट्रासाउंड मशीन खराब

रेडियोलॉजी विभाग की चारों अल्ट्रासाउंड मशीन भी खराब हैं. इससे मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यह मशीन 10 वर्ष पुरानी है, जो अक्सर ही खराब हो जाती है़ वहीं, सुपर स्पेशियलिटी बिल्डिंग में एक अल्ट्रासाउंड मशीन है. भर्ती मरीजों की अल्ट्रासाउंड जांच भी सरकार की अधिकृत एजेंसी हेल्थ मैप से नहीं हो पाती है, क्योंकि तीन करोड़ रुपये का फंड नहीं मिलने के कारण एजेंसी ने फ्री में जांच करने से मना कर दिया है.

मरीजों का बेड मिलना उनका अधिकार है : निदेशक

रिम्स निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि अस्पताल में भर्ती मरीजों को बेड मिलना उनका अधिकार है. हम बेड उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं, यह हमारी कमी है. बेड उपलब्ध कराने को लेकर प्रयास किया जा रहा है. सदर अस्पताल में कुछ विभागों को शिफ्ट करने की बात चल रही थी, लेकिन यह संभव नहीं हो सकता.

Posted By: Sameer Oraon

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