संपूर्ण क्रांति के मुद्दे आज भी प्रासंगिक

5 जून, 1974 की विशाल जनसभा में जेपी ने उद्घोष किया कि आंदोलन का दीर्घकालीन लक्ष्य है संपूर्ण क्रांति. उसी दिन जेपी को लोकनायक की उपाधि से विभूषित किया गया.

By Prabhat Khabar Print Desk | March 18, 2024 12:35 PM

सरयू राय
झारखंड विधानसभा के सदस्य

पचास साल पहले बिहार में एक छात्र आंदोलन हुआ. भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी का खात्मा और शिक्षा नीति में परिवर्तन इस आंदोलन की मुख्य मांगें थीं. आंदोलन में 18 मार्च, 1974 को छात्रों द्वारा बिहार विधानसभा के घेराव के दौरान व्यापक हिंसा हो गयी, तो छात्र नेताओं ने जयप्रकाश नारायण से आंदोलन को दिशा देने के लिए नेतृत्व संभालने का अनुरोध किया. जेपी के नेतृत्व में बिहार का छात्र आंदोलन देश का जन आंदोलन बन गया.

वर्ष 2024 का आरंभ होते ही उस आंदोलन के 50 वर्ष पूरे हो गये. आंदोलन की शुरुआती तिथि के रूप में 18 मार्च,1974 मशहूर है, परंतु इसका प्रयत्न तीन वर्ष पहले आरंभ हो गया था. 1971 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को प्रचंड बहुमत मिला था. इसके तुरंत बाद पाकिस्तान का विखंडन होकर बंगलादेश बना, तो उनकी लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गयी. नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने तो उन्हें दुर्गा की उपाधि दे डाली, पर व्यवस्था की जकड़न के सामने दो वर्ष के भीतर ही इंदिरा सरकार की लोकप्रियता काफूर हो गयी.

5 जून, 1974 की विशाल जनसभा में जेपी ने उद्घोष किया कि आंदोलन का दीर्घकालीन लक्ष्य है संपूर्ण क्रांति. उसी दिन जेपी को लोकनायक की उपाधि से विभूषित किया गया. तत्कालीन सत्ताधीशों ने आंदोलन को राजनीति प्रेरित और जेपी को सीआइए एजेंट घोषित करने का दुस्साहस किया, तो जेपी ने आह्वान किया कि संपूर्ण क्रांति का लक्ष्य व्यवस्था परिवर्तन है. आंदोलन को कुचलने के इरादे से 25 जून, 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लगा दिया गया. जेपी समेत आंदोलन के समर्थकों को िगरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. अखबारों पर सेंसर लगा दिया गया.

आपातकाल विरोधी जनसमर्थन के भय से केंद्र सरकार ने संसद की अवधि एक वर्ष बढ़ा दी. 1976 में होने वाला लोकसभा चुनाव नहीं हुआ. इस बीच जेपी के नेतृत्व एवं जनमत के दबाव में आंदोलन समर्थक चार राष्ट्रीय दलों को- जनसंघ, लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस संगठन ने विलय कर जनता पार्टी बनायी. आपातकाल के साये में हुए लोकसभा चुनाव में सत्ता और विपक्ष की स्थिति – रावण रथी विरथ रघुबीरा जैसी थी, पर जनता ने आंदोलन के गर्भ से उपजी जनता पार्टी के उम्मीदवारों को, चाहे वे जेल के भीतर हांे या बाहर, वोट भी किया और नोट भी दिया. पहली बार केंद्र में कांग्रेस सरकार अपदस्थ हुई. स्वयं इंदिरा गांधी चुनाव हार गयीं.

सत्ता परिवर्तन हो गया, पर सत्ता परिवर्तन के पहले पड़ाव पर ही व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन बिखर गया. जेपी नहीं रहे, तो सत्ता पर से नैतिक अंकुश भी नहीं रहा. बाकी कसर जेपी आंदोलन के दौरान उभरे छात्र-युवा नेताओं ने अपने राजनीतिक आचरण से पूरी कर दी. सत्ता के पड़ाव पर व्यवस्था परिवर्तन की मुहिम को दफन कर दिया. जनता पार्टी पुनः पूर्ववर्ती घटक दलों में बिखर गयी. नतीजा हुआ कि 1974 के बाद कई बार स्थिति बदतर हुई, पर वैसा आंदोलन नहीं खड़ा हुआ. जेपी आंदोलन के रूप में विख्यात 1974 के छात्र-युवा आंदोलन की स्वर्ण जयंती वर्ष में संपूर्ण क्रांति के मुद्दे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं.

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