JPSC व JSSC की परीक्षाओं में अभ्यर्थियों के जाति प्रमाण पत्र रद्द करने के मामले की सुनवाई करेगा हाइकोर्ट

जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने इश्यू तय करते हुए मामले को वृहद पीठ में रेफर कर दिया. खंडपीठ ने डॉ नूतन इंदवर व अन्य की ओर से दायर विभिन्न अपील याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया

By Prabhat Khabar | March 14, 2023 9:48 AM

जेपीएससी व झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) से संबंधित विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में अभ्यर्थियों के जाति प्रमाण पत्र रद्द करने के मामले में अब झारखंड हाइकोर्ट की वृहद पीठ सुनवाई करेगी. जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने इश्यू तय करते हुए मामले को वृहद पीठ में रेफर कर दिया. खंडपीठ ने डॉ नूतन इंदवर व अन्य की ओर से दायर विभिन्न अपील याचिकाओं पर सुनवाई के बाद उक्त फैसला सुनाया है.

मामले की सुनवाई के दाैरान प्रार्थियों की ओर से अधिवक्ता मनोज टंडन, अधिवक्ता श्रेष्ठ गौतम व अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने पैरवी की थी. वही जेपीएससी व जेएसएससी की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार, अधिवक्ता संजय पिपरवाल व अधिवक्ता प्रिंस कुमार ने पक्ष रखा था.

क्या है मामला :

यह मामला सब इंस्पेक्टर, टीजीटी, पीजीटी, दंत चिकित्सक, वायरलेस इंस्पेक्टर, रेडियो इंस्पेक्टर नियुक्ति परीक्षा से संबंधित है. प्रार्थियों की ओर से दायर अपील याचिकाओं में कहा गया है कि जेपीएससी व जेएसएससी ने विज्ञापनों में उनके जाति प्रमाण पत्र पर विचार नहीं किया. उन्हें सामान्य कैटेगरी में डाल दिया गया. वह जिस कैटेगरी में आते है, यदि उनका जाति प्रमाण पत्र पर विचार किया जाता, तो उनका चयन हो जाता, क्योंकि उन्हें कट ऑफ मार्क्स से काफी अधिक अंक प्राप्त हुआ है.

खंडपीठ ने तय किया तीन इश्यू

1. खंडपीठ ने फैसले में कहा है कि विज्ञापन की यह शर्त, जिसमें जाति प्रमाण पत्र एक निर्धारित तिथि के अंदर जमा करना है तथा उसे एक खास फॉर्मेट में जमा करना है, यह संविधान के खिलाफ है या नहीं.

2. दूसरे जो अभ्यर्थी जाति प्रमाण पत्र को आवेदन की अंतिम तिथि के बाद जमा करते हैं, उसके बाद उन्हें आरक्षित वर्ग से सामान्य वर्ग में शिफ्ट किया जाता है, यह अधिकार जेपीएससी या जेएसएससी को है या नहीं.

3. तीसरे इश्यू में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के राम कुमार जीजरोया का वर्ष 2016 का जजमेंट हर मामले में लागू होगा या नहीं.

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