विकास के नाम पर लूटे जा रहे आदिवासी : हेमंत

रांची : दुनिया की कुल आबादी का पांच प्रतिशत आदिवासी हैं. यह विडंबना है कि इनकी दुनिया की गरीबी में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है. झारखंड में भी खनिज निकालने के लिए कई आदिवासी समूहों को उनकी जमीन जायदाद से बेदखल किया गया, पर इसका यहां के आदिवासियों को पूरा लाभ नहीं मिल पाया, जिसकी परिकल्पना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 18, 2020 7:53 AM

रांची : दुनिया की कुल आबादी का पांच प्रतिशत आदिवासी हैं. यह विडंबना है कि इनकी दुनिया की गरीबी में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है. झारखंड में भी खनिज निकालने के लिए कई आदिवासी समूहों को उनकी जमीन जायदाद से बेदखल किया गया, पर इसका यहां के आदिवासियों को पूरा लाभ नहीं मिल पाया, जिसकी परिकल्पना सरकार ने नहीं की होगी. यहां 1951 तक आदिवासियों की आबादी 30-35 प्रतिशत थी, लेकिन आज उनकी संख्या मात्र 26 प्रतिशत रह गयी है.

यह बहुत ही गंभीर और चिंताजनक है. सेमिनार में इस पर भी गहन मंथन हो और विस्तृत जानकारी जुटायी जाये. ये बातें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आड्रे हाउस में ‘आदिवासी दर्शन’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उदघाटन सत्र में कही. इस सेमिनार का आयोजन डॉ राम दयाल मुंडा ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीट्यूट और झारखंड सरकार के कल्याण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है. सीएम ने कहा कि विकास के आधुनिक मॉडल की ग्लोबल भूख आदिवासियों को लूट रही है. हम सड़कें और बिल्डिंग बनायें, बड़े-बड़े उद्योग व कारखाने लगायें, लेकिन गरीब आदिवासी सड़कों पर चलने के लायक ही नहीं रहे, तो वह कैसा विकास?

प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखने में आदिवासी समुदाय की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है और आगे भी रहेगी. प्राकृतिक सौंदर्य की अपनी पहचान है और विकास के नाम पर इसे ईंट, कंक्रीट और पत्थर से नुकसान नहीं पहुंचाना हमारा कर्तव्य होना चाहिए़

आदिवासी दर्शन को महत्व देना जरूरी : राज्यपाल

मौके पर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समुदायों के धर्म-दर्शन और रीति-रिवाजाें पर बड़े पैमाने पर गंभीर चर्चा आवश्यक है. वह प्रकृति के संरक्षक हैं और प्रकृति की पूजा करते हैं. हर समय खुश रहते हैं और खुश रहने की सीख देते हैं. दर्शनशास्त्र की ज्ञान शाखा में आदिवासी दर्शन पर वृहद चर्चा हो सकती है. यह समाज मौखिक परंपरा पर आधारित रहा है, इसलिए इसमें दस्तावेजीकरण की परंपरा भी नहीं रही है. राज्यपाल ने कहा कि 21वीं सदी में ‘आदिवासी दर्शन’ को अहमियत देना होगा.

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