रांची : पेड़ों के बदले लोन ले सकेंगे सूबे के आदिवासी किसान
बिपिन सिंह गुजरात की तर्ज पर ग्रीन किसान क्रेडिट कार्ड की दी जायेगी सुविधा रांची : स्थानीय आदिवासी किसानों को ग्रीन किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना सरकार के पास प्रस्तावित है. अगर इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल जाती है तो इस माइक्रो क्रेडिट प्लान के तहत किसान अपनी जमीन पर […]
बिपिन सिंह
गुजरात की तर्ज पर ग्रीन किसान क्रेडिट कार्ड की दी जायेगी सुविधा
रांची : स्थानीय आदिवासी किसानों को ग्रीन किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना सरकार के पास प्रस्तावित है. अगर इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल जाती है तो इस माइक्रो क्रेडिट प्लान के तहत किसान अपनी जमीन पर लगाये पेड़ के बदले लघु ऋण प्राप्त कर सकते हैं. प्रस्ताव को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक, राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के साथ ही कल्याण, राजस्व विभाग व वन निगम को समिति गठित करने की बात कही गयी है. गौरतलब हो कि गुजरात के डांग जिले में आदिवासियों के बीच ग्रीन किसान क्रेडिट कार्ड की योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है. वित्तीय संस्थानों के अनुसार झारखंड में यह योजना सफलता से चलायी जा सकती है.
कई विभागों का समन्वय जरूरी
इस योजना का दुखद पहलू यह है कि राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की पिछली बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा हो चुकी है पर अभी तक इसे जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जा सका है. आरबीआइ इस योजना को लागू करने के लिए सरकार से सहयोग चाहती है. इस योजना को धरातल पर उतारने के लिये कई विभागों को एक साथ आगे आना होगा. फिलहाल यह मामला सरकार और एसएलबीसी के पास लंबित है.
कोलैटरल सिक्योरिटी के तौर पर काम करेंगे पेड़
आदिवासी किसान वन से लगी अपनी जमीन पर उगाये गये पेड़ों का उपयोग वन विभाग द्वारा वैल्यू ऐडेड सर्टिफिकेट प्राप्त कर इसके एवज में ऋण लेने के लिये कोलैटरल सिक्योरिटी के तौर पर जमा कराकर कर सकते हैं.
बीमा कंपनियों की हो रही तलाश
आरबीआइ की पहल के बाद विभागों के साथ इस संबंध में एक बैठक हो चुकी है. प्रस्ताव के दौरान बैंक अधिकारियों ने कहा कि वह पेड़ों को ऋण की गारंटी के तौर पर रखने को लेकर सहज नहीं हैं. उनका कहना है कि अगर कोई गारंटी के तौर पर रखे पेड़ों को काट ले गया तो उसकी भरपायी किस तरह हो सकेगी, लिहाजा पेड़ों का पहले बीमा किया जाना आवश्यक है.
आदिवासी किसानों का वित्तपोषण लक्ष्य
झाड़-जंगल के मामले में झारखंड अन्य राज्यों से बेहतर है. लगभग 23,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इस नेचर का है. वन भूमि के आस-पास रह रहे आदिवासी किसानों की तादाद बहुत ज्यादा है. इस बात को ध्यान में रखकर ही आरबीआइ और सरकार इस योजना में दिलचस्पी दिखा रही है, जिससे उन्हें राहत प्रदान किया जा सके. आदिवासी किसान इससे प्राप्त होनेवाले लाभ को नर्सरी विकास के साथ ही उसका इस्तेमाल बागानों एवं वानिकी पौधों को लगाने, उगायी जानेवाली फसलों के विकास पर खर्च कर सकेंगे.
छोटी जरूरतें भी पूरी कर सकेंगे किसान
जरूरतमंद किसानों को बीज, उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं इत्यादि के इनपुट सप्लाई एवं सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ ही पशु चारा, मुर्गी दाना, डेयरी फीड, मछली दाना इत्यादि के वितरण, मुर्गीपालन, डेयरी प्रोजेक्ट एवं दुग्ध उत्पादन के अलावा कृषि मशीनरी-उपकरणों को किराये पर लेने, रखरखाव तथा मरम्मत लघु-सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, भूमि विकास एवं अन्य कृषि कार्यकलापों के लिए ऋण लेने की बेहतर सुविधा मिल सकेगी.
ऋण की सीमा : आवश्यकता पर आधारित.
पात्रता : निजी स्वामित्व, पट्टेदारों, स्थाई काश्तकारी का अधिकार रखनेवाले आदिवासी किसान ही इस योजना के अंतर्गत ऋण व ग्रीन किसान क्रेडिट कार्ड के लिए पात्र होंगे.
झारखंड में केसीसी की स्थिति : एसएलबीसी की अंतिम रिपोर्ट की मानें तो राज्य में सभी तरह के किसानों के लिए कुल किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के 15 लाख 65 हजार 431 एकाउंट खोले गये हैं. इसके तहत विभिन्न बैंकों के द्वारा ऋण के तौर पर 6 हजार 868 करोड़ रूपये प्रदान किए गये.
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