वनभूमि पट्टे के खारिज दावे की समीक्षा हो : डॉ मीनाक्षी

रांची : झारखंड इंडिजिनस एंड ट्राइबल पीपुल फॉर एक्शन द्वारा ‘वन अधिकार अधिनियम और आदिवासी’ विषय पर सत्यभारती सभागार में परिचर्चा का आयोजन किया गया. इसमें एशिया पेसेफिक इंडिजिनस यूथ नेटवर्क फिलिपींस की अध्यक्ष डॉ मीनाक्षी मुंडा ने कहा कि झारखंड में 30 नवंबर तक व्यक्तिगत वन पट्टा के दावों की संख्या 105363 और सामूहिक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 2, 2019 2:20 AM
रांची : झारखंड इंडिजिनस एंड ट्राइबल पीपुल फॉर एक्शन द्वारा ‘वन अधिकार अधिनियम और आदिवासी’ विषय पर सत्यभारती सभागार में परिचर्चा का आयोजन किया गया. इसमें एशिया पेसेफिक इंडिजिनस यूथ नेटवर्क फिलिपींस की अध्यक्ष डॉ मीनाक्षी मुंडा ने कहा कि झारखंड में 30 नवंबर तक व्यक्तिगत वन पट्टा के दावों की संख्या 105363 और सामूहिक दावा की संख्या 3667 थी.
इनमें सिर्फ 58053 व्यक्तिगत और 2090 सामूहिक दावों का ही निबटारा किया गया. जिन 48,887 दावों का अब तक निष्पादन नहीं हुआ या जिन्हें खारिज किया गया है, राज्य सरकार उनकी गंभीरतापूर्वक समीक्षा करे आदिवासी हित में कदम उठाये.
जटिल है वन पट्टा के लिए दावे की प्रक्रिया : झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के प्रकाश भुइयां ने कहा कि आदिवासियों के लिए वन पट्टा के दावे का जो प्रावधान है, वह अत्यंत जटिल है. इस कारण पूरे प्रपत्र को सही ढंग से भर पाना भी एक बड़ी चुनौती है. सरकारी तंत्र भी कई बार इनके दावों को लेकर उन पर समुचित कार्रवाई के प्रति उदासीन है.
उमेश नजीर ने कहा कि युवाओं को भी समाज के लिए आगे आना होगा. वे खुद जागरूक बनें और इसके साथ अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करें. अलोका कुजूर ने कहा कि हमें न्यायालय के निर्णय का सम्मान करना चाहिए और उन कड़ियों पर भी मंथन करना चाहिए, जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई. संध्या सिंह कुंटिया ने कहा कि जंगल और आदिवासी के बीच के अटूट संबंध है. यह हमारे अस्तित्व और जिंदा रहने से जुड़ा है.
पुनीत मिंज ने कहा कि राज्य सरकार को आदिवासियों के हित में ठोस कदम उठाने चाहिए. परिचर्चा में कार्तिक लिंडा, संदीप एक्का, रेणु मुंडा, अमनदीप मुंडा, रश्मि लकड़ा, सुखदेव उरावं, नीलम कुजूर, सुरभि मिंज, फूलचंद भगत, संदीप उरांव सहित विभिन्न सामाजिक संगठन के सदस्य, विद्यार्थी और शोधार्थी शामिल थे.

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