रांची की खासियत: मदरसा इस्लामिया की स्थापना में हिंदू भाइयों का योगदान

!!डॉ जमशेद कमर!! 15 अगस्त 1917 को अंजुमन इस्लामिया की स्थापना होने के कुछ दिनों बाद रांची में शिक्षा का दीप जलाने के लिए मदरसा इस्लामिया की स्थापना का निर्णय लिया गया. एक सितंबर 1917 को मौलवी अब्दुल करीम की अध्यक्षता में हुई बैठक में रांची में एक मदरसा की स्थापना पर सहमति बनी. मौलाना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 11, 2017 11:34 AM

!!डॉ जमशेद कमर!!

15 अगस्त 1917 को अंजुमन इस्लामिया की स्थापना होने के कुछ दिनों बाद रांची में शिक्षा का दीप जलाने के लिए मदरसा इस्लामिया की स्थापना का निर्णय लिया गया. एक सितंबर 1917 को मौलवी अब्दुल करीम की अध्यक्षता में हुई बैठक में रांची में एक मदरसा की स्थापना पर सहमति बनी. मौलाना ने एक योजना प्रस्तुत किया. 17 अक्तूबर को एक और बैठक डोरंडा में हुई़ इसमें मौलाना आजाद भी शामिल हुए.

इसमें लगभग 200 रुपये चंदा स्वरूप प्राप्त हुए. डोरंडा में मुंशी जहूर ने दो हजार रुपये की लागत का एक मकान अंजुमन को देने का वादा किया. 16 नवंबर 1917 से मदरसा इस्लामिया की प्रारंभिक कक्षाएं शुरू कर दी गयी. मोहिउद्दीन अहमद नाम के एक आठ वर्षीय बच्चे ने तीसरे वर्ग में पहले छात्र की हैसियत से नामांकन कराया. मौलाना आजाद के हमनाम इस छात्र के पिता का नाम शेख अली जान था़ पहले दिन आठ छात्रों ने नामांकन कराया. 27 जनवरी 1918 को मदरसा इस्लामिया रांची भवन का शिलान्यास शहर के आम जनों के बीच रखा गया.

जुलाई में रांची ईदगाह में मुसलमानों की एक गोष्ठी हुई़ इसे मौलाना ने संबोधित किया. इस गोष्ठी में राय साहब ठाकुर दास के अलावा हिज ऑनर के घुड़सवार भी मौजूद थे. 03-04 नवंबर को मदरसा इस्लामिया रांची का पहला वार्षिक सम्मेलन मदरसा के उदघाटन के अवसर पर आयोजित हुआ. जिन व्यक्तियों ने मदरसा की विभिन्न बैठकों में भाग लिया, उसमें हाजी गनी लतीफ, इस्माइल मोहम्मद, कालीपद घोष, राय साहब अमरेंद्र नाथ बनर्जी, राय साहब ठाकर दास, बाबू गोरखनाथ वकील, एसके सहाय, बाबू विपिन चंद्र पाल मौलवी अब्दुल करीम, मौलाना कादिर बख्श आदि शामिल थे. प्रतिष्ठित हिंदुओं ने भी सभा की कार्यवाही में भाग लिया. बाबू विपिन चंद्र पाल ने अपने भाषण में यह बात कही कि वे हैरत में पड़ गये जब उन्हें सभा में आने की दावत दी गयी. नहीं तो वे यही सोचते थे कि खुफिया विभाग में उनके अपने दोस्तों के सिवा किसी को भी रांची में उनकी मौजूदगी का पता नहीं है.

उन्होंने हिंदू-मुसलिम एकता पर अपने भाषण में खास तौर पर जोर दिया. उल्लेखनीय है कि विपिन चंद्र पाल राष्ट्रीय आंदोलन के सुप्रसिद्ध नेता थे. सभा में आम तौर पर वक्ताओं ने मौलाना आजाद का नाम बड़ी निष्ठा से लिया. मौलाना ने जलसे को संबोधित किया और अंत में मदरसा की सहायता करनेवालों विशेषकर राय साहब ठाकुर दास का शुक्रिया अदा किया. इस अवसर पर अल्ताफ हुसैन खां, रिटायर्ड सब-इंस्पेक्टर को पदक से सम्मानित किया गया.

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