अभी भी चोरी के कोयले से जलते हैं कई घरों के चूल्हे

लातेहार : इसे भी एक अजीब विडंबना ही कहा जायेगा कि जिस लातेहार की धरती में कोयले का अकूत भंडार है, जहां लगातार 100 वर्षों तक भी खुदायी की जाये तो कोयला का भंडार कम नहीं होगा. उसी लातेहार की रत्नगर्भा धरती में लोगों को चूल्हा जलाने तक के लिए कोयला मयस्सर नहीं हो रहा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 14, 2019 1:19 AM

लातेहार : इसे भी एक अजीब विडंबना ही कहा जायेगा कि जिस लातेहार की धरती में कोयले का अकूत भंडार है, जहां लगातार 100 वर्षों तक भी खुदायी की जाये तो कोयला का भंडार कम नहीं होगा. उसी लातेहार की रत्नगर्भा धरती में लोगों को चूल्हा जलाने तक के लिए कोयला मयस्सर नहीं हो रहा है.

अगर उपलब्ध भी हो रहा है तो महंगे दामों पर. लोगों को 400 से 500 रुपये प्रति बोरा कोयला खरीद कर काम चलाना पड़ रहा है. जिला मुख्यालय के निवासी साइकिलों से चोरी का कोयला बेचने वालों पर आश्रित हैं. हालांकि शहर में रसोई गैस की प्रचुर उपलब्धता के कारण कोयले पर निर्भरता बहुत हद तक कम हुई है. पहले शहर में मात्र एक गैस एजेंसी थी, आज कई गैस एजेसियां हो गयी है. बावजूद इसके शहर के तमाम होटलों और मध्यम तथा निम्न वर्गीय परिवारों के चूल्हे कोयले से ही जलते हैं.

यह कोयला सिकनी तथा तुबेद जैसे क्षेत्रों से अवैध रुप से उत्खनन किया गया होता है या फिर मालगाड़ियों से चुराया गया रेलवे का कोयला होता है. इससे न सिर्फ सरकार को प्रति महीना लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है वरन अवैध उत्खनन हो भी हवा मिल रही है. प्रतिदिन सुबह शहर की सड़कों पर चोरी किये गये कोयले को साइकिलों पर लाद कर बेचने जानेवालों की कतार लगी रहती है. दीगर बात यह भी है कि कभी जंगलों से अाच्छादित लातेहार जिले में अब ढूंढ़ने से भी जलावन की लकड़ियां नहीं मिल रही है.

जंगलों में वन समितियों ने जलवान की लकड़ियाें को काटने पर प्रतिबंध लगा दिया है, इस कारण भी जलावन की लकड़ियों की समस्या हो गयी है. एक समय था, जब शहर के थाना चौक पर जंगलों से लकड़ियां बेचने वालों की मंडी लगती थी. लेकिन अब जलावन की लकड़ियां बाजार में बिक्री के लिए नहीं आती और इसका नाजायज फायदा चोरी कर कोयला बेचनेवाले उठा रहे हैं. यही कारण है कि शहर के लोग अब एक सरकारी कोयला डीपो की मांग कर रहे हैं.

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